सोमवार, 30 अप्रैल 2012

भज ले राधे श्याम ....प्रेम काव्य ... नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार (क्रमश:) -रचना--4 .... डा श्याम गुप्त




              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ  रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभुरूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं  गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी प्रस्तुत है--चतुर्थ रचना ...
भज ले राधे श्याम ...
तेरा क्या होगा अंजाम 
नर तू भजले राधे-श्याम ।
गीता की तू राह पकडले,
भक्ति-प्रीति ह्रदय में जकडले।
राधा-प्रिय, राधे मन-मोहन,
भजले तू घनश्याम ।
तेरा क्या होगा अंजाम ।।
प्रभु से लगा प्रति की डोरी,
उनके पैर पकड़ बरजोरी ।
राधे-मोहन दिव्य नाम तू,
रट ले सुबहो-शाम।
तेरा क्या होगा अंजाम ।।
जीवन राह कठिन होजाए,
कर्महीनता तुझे सताए।
क्या करना, कैसे करना है,
जब यह बात समझ नहिं आये।
नटवर के गीता-स्वर सुनले,
भज गोविन्दम नाम ।।
तेरा क्या होगा अंजाम,
नर तू भजले राधे-श्याम ।।
                                      ---चित्र गूगल साभार ..
  
 

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