प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है...
प्रथम भाग (क)- संयोग श्रृंगार में --पाती, क्या कह दिया , मान सको तो, मैं चाँद तुझे कैसे....., प्रिय तुमने किया श्रृंगार , पायल, प्रियतम जब इस द्वारे आये, सखि ! कैसे व मांग सिंदूरी ...आदि ९ रचनाएँ प्रस्तुत की जायगीं | प्रस्तुत है चतुर्थ गीत ---
मैं चाँद तुझे कैसे कहदूं .....
मैं चाँद तुझे कैसे कहदूं ,
वो बदली में छुप जाता है |
तेरा सुन्दर मुखड़ा प्रियवर ,
घूंघट को भी दमका जाता है ||
बदली से निकल कर वो चंदा ,
अपनेपन पर इठलाता है |
तेरा चिलमन जब हटता है,
वह खुद ही शरमा जाता है ||
जो दाग चाँद के माथे पर ,
उसका कोई भी नाम नहीं |
तेरे मुखड़े का सुन्दर तिल,
मुखड़े को भी दमकाता है ||
वो घटता बढ़ता रहता है,
इक रोज कहीं खो जाता है |
यह रूप मगर इस घर भर को ,
तो प्रतिदिन ही महकाता है ||
वो रातों को ही आता है,
हर सुबह कहीं खोजाता है |
यह सुन्दर आनन तेरा प्रिय,
प्रतिपल मुझको हरषाता है ||
वह दूर दूर ही रहता है ,
विरहा में सदा सताता है |
तेरे अंतस का अपनापन ,
तन मन जगमग कर जाता है |
उसकी अपनी भी ज्योति कहाँ ,
है प्रभा सूर्य की बिखराता |
तेरे यौवन की ज्योति निरख ,
है दिनकर भी सहमा जाता ||
मैं चाँद तुझे कैसे कह दूं,
वह बदली से घिर जाता है |
तेरा यह सुघड़ सलोना मुख ,
घूंघट को भी दमकाता है ||
3 टिप्पणियाँ:
क्या आपकी अर्चानो की तारीफ करनी जरुरी है, यदि हां तो शब्दकोष देखना पड़ेगा. लाजबाब प्रस्तुति स्वागत..
धन्यवाद हारीश जी....शायद आपका मतलब रचनाओं से है----बिलकुल नहीं ..जिसको जो जैसा लगे वह कहे....
धन्यवाद दीपक जी.....
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