वृज में यमुना तट पर खंजन..राधारानी के नयनों का उपमान |
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है षष्ठ गीत ....शरद ....
"जानि शरद ऋतु खंजन आये "
----- चित्र साभार
मन के दर्द उभर फिर आये |
अंतर्मन में खोजा, तुम हो,
क्यों खोये खोये अलसाए ||
वर्षा बीती शरद आगई,
तन-मन पीर पवन छलकाए |
मन के दर्द उभर फिर आये,
जानि शरद ऋतु खंजन आये ||
चंचरीक गुंजन मन झूले |
चातक दुःख मन वर्षा जाए,
कैसे स्वाति-बूँद जल पाए ||
निर्मल गगन मध्य शशि सोहे,
पुलकित चित चकोर मन मोहे |
कुमोदिनी मन खिल खिल जाए,
जानि शरद ऋतु खंजन आये ||
खेतों की मेड़ों पर फूले,
धवल काँस के पुष्प घनेरे |
धवल केश बन वृद्धा नागरि,
वर्षा बैठी माला फेरे ||
धूल नहीं अब उड़े नगर में ,
पंक दिखे नहीं बीच डगर में |
सरिता सर निर्मलजल भाये ,
जानि शरद ऋतु खंजन आये ||
तुम अपने अंतर में खोये,
बैठे हो क्यों चुप चुप होकर |
अपने में क्यों आप समाये,
हम रह गए पराये होकर ||
अपने अंतर्मन को खोलो ,
प्रीति पगे मधुरिम स्वर बोलो |
शीत नेह प्रिय प्रीति जगाये,
जानि शरद ऋतु खंजन आये ||
----- चित्र साभार
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