हम कौन थे?क्या हो गए?और क्या होंगे अभी?...............
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी.
आज कुछ ब्लोग्स पर ''शिखा कौशिक जी''द्वारा प्रस्तुत आलेख ''ब्लोगर सम्मान परंपरा का ढकोसला बंद कीजिए''चर्चा में है और विभिन्न ब्लोगर में से कोई इससे सहमत है तो कोई असहमत.चलिए वो तो कोई बात नहीं क्योंकि ये तो कहा ही गया है कि जहाँ बुद्धिजीवी वर्ग होगा वहां तीन राय बनेंगी सहमति ,असहमति और अनिर्णय की किन्तु सबसे ज्यादा उल्लेखनीय टिप्पणियां ''दीपक मशाल जी ''की और ''डॉ.रूप चन्द्र शास्त्री जी ''की रही .एक और दीपक जी पुरुस्कृत सभी ब्लोगर्स का पक्ष लेते हैं जबकि शिखा जी द्वारा किसी भी ब्लोगर पर कोई आक्षेप किया ही नहीं गया है उनका आक्षेप केवल चयन प्रक्रिया पर है तो दूसरी और डॉ.रूप चन्द्र शास्त्री जी ''खट्टा मीठा तीखा पचाने की सलाह देते हैं भूल जातेहै कि ''जो डर गया वो मर गया'' की उक्ति आजकल के नए ब्लोगर्स के सर चढ़कर बोल रही है.दोनों में से कोई भी आलेख के मर्म तक नहीं पहुँचता जिसका साफ साफ कहना है कि पहले आप सम्मान दिए जाने के दिशा निर्देश तैयार कीजिये और जिस तरह अन्य पुरुस्कारों के आयोजन में होता है नामांकन चयन इत्यादि प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही सम्मान के हक़दार का चयन कीजिये. अन्यथा जैसा कि सभी सम्मानों के आयोजन में विवाद पैदा हो जाते हैं वैसा ही यहाँ हो जाने में कोई देर नहीं है.
साथ ही दीपक 'मशाल' जी ने तो हद ही कर दी उन्होंने तो शिखा जी को यहाँ तक कह दिया कि ''वे भी एक इनाम लिए बैठी हैं''उन्हें यह जानकारी तो होनी ही चाहिए कि शिखा जी ने ये पुरस्कार महाभारत-१ के नाम से आयोजित प्रतियोगिता में जीता है और इसमें क्रमवार ढंग से सभी कुछ किया गया था.पहले प्रतियोगिता का विषय घोषित किया गया फिर भाग लेने की तिथि निर्धारित की गयी उसके बाद क्रमवार अभ्यर्थियों के आलेख प्रकाशित किये गए और अंत में डॉ.श्याम गुप्त जी और डॉ.अनवर जमाल जी को निर्णायक के रूप में निर्णय करने के लिए कहा गया अंत में उन आलेखों में से चयन किये जाने के बाद शिखा जी को विजेता घोषित किया गया.क्या ऐसी पारदर्शिता वे इन सम्मान समारोह में अपनाई गयी ,अपने तर्कों द्वारा साबित कर सकते हैं?जिन सम्मान समारोहों के पक्ष में वे खड़े हैं उनमे केवल अंतिम स्थिति दिखाई देती है और वह है ''विजेता घोषित करने की''उससे पहले चयन प्रक्रिया का कोई नामो-निशान नहीं है.और रही पुरुस्कार पाने वाले ब्लोगर्स के लेखन आलेखन क्षमता की तो वह देखना निर्णायक मंडल का काम है हमारा नहीं.
आज यदि हम देखते हैं तो हमें इस बात पर गर्व होता है कि हम ब्लॉग जगत से जुड़े हैं उस ब्लॉग जगत से जो देश की समस्याओं को उठाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है और दे भी रहा है.ऐसे में यदि यहाँ कोई गलत बात सर उठाती है तो उसे कुचलने में हर जागरूक ब्लोगर को अपना योगदान देना चाहिए न कि लेखक की व्यक्तिगत महत्वकांक्षा पूरी न होने जैसी तुच्छ बात कह कर उसे हतोत्साहित करने का प्रयास किया जाना चाहिए.स्पष्ट तौर पर शिखा जी के आलेख का मर्म यही है कि ये सम्मान समारोह क्योंकि पूर्ण रूप से पारदर्शिता पर आधारित नहीं हैं इसलिए मात्र ढकोसला बन कर रह गए हैं ऐसे में इससे अच्छा यही है कि ''ब्लोगर मीट'' का आयोजन हो जहाँ हर कर्त्तव्य निष्ठ ब्लोगर को अन्य ब्लोगर का प्यार व् सराहना मिले कवि श्रेष्ठ ''दुष्यंत सिंह ''के शब्दों में मैंने उनके आलेख का यही मर्म समझा है-
''हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.''
शालिनी कौशिक
शिखा कौशिक जी का आलेख आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
9 टिप्पणियाँ:
वाह भाई वाह शालिनी जी, आपने तो kamal कर दिया क्या हल्ला बोला है आपने, सच बात तो यह है की यही है ब्लोगिंग, जहाँ बिना डरे बेलौस लिखा जाय, आप दोनों ने लिखा और जम कर लिखा, लेकिन एक बात आप भूल गयी, भाई हरीश जी ने भ एक टिपण्णी ही लिखी थी शिखा जी की तारीफ में पर पोस्ट बन गयी कुछ जिक्र उन्होंने भी किया है. शायद कुछ जादा जोश में आकर इनाम भी रखा है, देख रहा हु सभी लोग तीर धनुष लेकर तैयार खड़े हैं, भारतीय ब्लॉग लेखक मंच की असली महाभारत तो यही है. जब आप लोंगो को सच बोलने का इतना ही जोश है तो मैं आपको हल्ला बोल पर आमंत्रित करता हूँ. आप हमारे आलोचक बनकर आयें और हमारी कमियां बताएं, विशेस रूप से शिखा और शालिनी जी, हम आपसे अपनी कमियां जानने को उत्सुक हैं. सच के लिए निडरता जरुरी है और आप निडर है तो आयें. आपका स्वागत है.
shalini ji aap ka sath rahe to fir kis bat ka dar .sarthak shuruaat .badhai .
Halla Bol.hum aap ke saath hai..
sabhi log halla bolen aur hindutva ka parcham lahrayen...
शालिनी जी, दिल्ली में एक संस्था द्वारा सम्मान दिए गए थे और सम्मान एवं पुरस्कार में अन्तर होता है। पुरस्कार जीते जाते हैं और सम्मान चयन समिति की अनुशंसा पर दिए जाते हैं। वे भी सीमित संख्या में। यहाँ जैसा कि ब्लाग-पोस्ट पढ़ने से विदित हुआ कि सारे ही ब्लागरों को सम्मान पत्र दिए गए। यह केवल एक भ्रम पालने और सम्मानों को हल्का करने का प्रयास जैसा है। वैसे भी उन सम्मानों का कोई महत्व नहीं होता जिन्हें कोई पंजीकृत और प्रतिष्ठित संस्था नहीं देती। ब्लोगर को ऐसे भ्रम पालने से बचना चाहिए। श्रेष्ठ लेखन ही उनका सम्मान है, बाकि तो अपने फायदे के लिए लगायी गयी दुकानदारी है।
शालिनी जी, आप तो काफी गुस्से में दिख रही है, अरे भाई गुस्सा ठीक नहीं है, अब देखिये नेता लोग खुद ही अपने चेलो चपाटो को पैसा देकर अभिनन्दन समारोह कराते हैं. खुद ही सिक्का देंगे और तुलवा लेंगे, भाई यह तो परम्परा चल रही है. देखिये यह मामला सलीम भाई और रविन्द्र जी के बीच का है. हालाँकि सलीम भाई जोश में आकर यह कार्यक्रम किये जिसका ब्लागर मीट से कोई मतलब नहीं था. कभी कभी आवेश में ऐसा काम हो जाता है. शिखा जी के उठाये गए मुद्दे अपनी जगह बिल्कुल सही हैं. पर आपने मेरा नाम ही नहीं लिया भाई हम भी तो कमेन्ट किये थे अब थोडा बड़ा हो गया तो क्या करे पर था तो कमेन्ट ही. निश्चित रूप से सम्मान और पुरस्कार में अंतर होता है और आपने समझा दिया है.
ajit ji v hareesh ji aap dono ki hi baten sateek hain .aabhar .
बात चाहे बेसलीका ही सही कहने का सलीका चाहिए
Bahut accha article.
शालिनी जी.. मैंने आपको और आपकी अनुजा शिखा कौशिक जी को कुछ पढ़ने का भी आग्रह किया था एक बार पुनः आग्रह करूंगा कि कृपया उस आग्रह की ओर भी ध्यान देवें.... आपने मेरी टिप्पणियों के जो भी अर्थ निकाले अच्छे लगे.. आपका ह्रदय से आभार.. :)
बाकी सब ठीक है सिर्फ इतनी प्रार्थना है कि हिन्दी ग़ज़लों के अग्रदूत श्री दुष्यंत कुमार जी का नाम गलती से आपने दुष्यंत सिंह लिख दिया है, कृपया उसे ठीक कर लें..
संभव हो तो एक पोस्ट को एक ही जगह लगाएं, हाँ अपनी बात का प्रचार कई जगह कर सकती हैं और भी माध्यम हैं.. ७-८ जगह लगाने से बाद में हम ब्लोगरों को ही तकलीफ होगी..
एक टिप्पणी भेजें