अवनीश कुमार
एक बार एक बच्चे ने पूछा कि कुर्सी और टोपी में क्या फर्क है। वहां मौजूद सभी लोग बच्चे का मुंह देखने लगे। तभी एक आदमी ने बच्चे को समझाया कि बेटा अब इनमें कोई फर्क नहीं रह गया है। दोनों एक समान हैं। जिसके पास इन दोनों में से कोई एक भी हो तो उसकी पावर ही अलग ही होती है और जिसके पास यें नहीं होती है उसे कोई नहीं जानता है। कुर्सीके बारें में वैसे भी तुम बचपन से सुनते आ रहे हो। अपने देश में हर नेता चाहता है कि उसके पास कुर्सीहो। वो आदमी उस बच्चे को बता ही रहा था कि बच्चा बीच में ही बोलते हुए कहने लगा कि टोपी से क्या होता है। उस आदमी ने उसे फिर से समझाना शुरू किया कि टोपी भी कुर्सी की ही तरह होती है। यह कभी भाव बढा देती है और कभी भाव गिरा देती है। बच्चा सिर खुजलाने लगा। बच्चे को सिर खुजलाते देखकर उस आदमी ने उसे उदाहरण देकर समझाना शुरू किया और कहा कि देखो एक है हमारे गांधीवादी नेता की टोपी। जिनकी टोपी से पूरा देश हिल गया। उनकी टोपी की अहमियत ये थी कि जिसके पास वो टोपी है समझो उसके पास लालबत्ती है। कोई उसको रोक नहीं सकता। क्या नेता और क्या अफसर सबके सब इस टोपी के पीछे। तो हो गई ना टोपी भी कुर्सी के बराबर। बच्चे ने फिर उत्संुकतावश पूछा लेकिन टोपी से आदमी के भाव कैसे गिर जाते हैं। उस आदमी ने बच्चे को फिर से उदाहरण देकर समझाना शुरू किया कि एक हमारे नेताजी हैं। प्रधानमंत्रीजी बनने का ख्वाब पाले हुए हैं। नेताजी थे थोडा हिन्दूवादी। उन्होंने भी सोचा क्यों न चुनाव से पहले थोडा वजन कम कर लिया जाए। चुनावों में भागदौड ज्यादा करनी पडेगी। वजन कम हो जाएगा तो भागदौड में आसानी रहेगी। सो बैठ गये उपवास पर। धीरे-धीरे नेताजी के साथ हर धर्म के लोग जुडने लगे। सभी लोग मानने लगे कि नेताजी इस बार बदल गये हैं और वें हिन्दू मुसिलम सिख ईसाई सब भाई-भाई की नीती पर चल रहे हैं। अब जैसे ही नेताजी का उपवास खत्म हुआ हर धर्म के लोग उनके लिए उपहार लेकर आने लगे। कोई फूलमाला लेकर आया, तो कोई तलवार लेकर। हमारे एक मुल्लाजी को जाने क्या सूझा। अपनी जेब से टोपी निकालकर लगे नेताजी को पहनाने, लेकिन नेताजी तो नेताजी ठहरे। मुल्लाजीकी टोपी पहनने से साफ इंकार कर दिया। बेचारे मुल्लाजी तो अपना सा मुंह लेकर वहां से चलते बने।लेकिन दूसरी पार्टी वालों की नजर नेताजी की इस करतूत पर पडी तो उन्होंने तुरंत ही नेताजी को लपेटना शुरू कर दिया। नेताजी की किरकिरी होने लगी और नेताजी जो एकता का भाषण दे रहे थे,। उसकी भी हवा निकल गई। बच्चा थोडी देर तक तो चुप रहा। फिर बच्चा बोला-टोपी का कमाल तो मेरी समझ में आया। लेकिन अगर कूर्सी में पावर है तो हमारे प्रधानमंत्री के पास कूर्सी होने के बावजूद भी पावर क्यों नहीं है। बच्चे के इस सवाल पर वो आदमी चुपचाप वहां से खिसक लिया।
गुरुवार, 22 सितंबर 2011
कुर्सी और टोपी में फर्क
9/22/2011 03:40:00 pm
avneesh
2 comments
2 टिप्पणियाँ:
अच्छी रचना है, साधुवाद
धन्यवाद.....
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