मुहब्बतों के दायरों को यूँ कम ना कीजिये ,
जितना हो सके खुशबू को फैलने दीजीये ।
इसी की बदौलत है खुशियों की रोसनाई ,
शाम को सुबह की मुहब्बत में ढलने दीजिये ।
कर रहे भवरे शिद्दत से कलियों से आरज़ू ,
सब्र करो जनाब मुहब्बत से खिलने तो दीजिये ।
ये सारे मशायल दुनिया के हल हो जायेंगे ,
बस दिलों को दिलों से मिलने तो दीजिये ।
‘कमलेश ‘समझ जाएँ वो हाल-ए-दिल अपना ,
बस मुहब्बत भरे लबों को हिलने तो दीजिये
जितना हो सके खुशबू को फैलने दीजीये ।
इसी की बदौलत है खुशियों की रोसनाई ,
शाम को सुबह की मुहब्बत में ढलने दीजिये ।
कर रहे भवरे शिद्दत से कलियों से आरज़ू ,
सब्र करो जनाब मुहब्बत से खिलने तो दीजिये ।
ये सारे मशायल दुनिया के हल हो जायेंगे ,
बस दिलों को दिलों से मिलने तो दीजिये ।
‘कमलेश ‘समझ जाएँ वो हाल-ए-दिल अपना ,
बस मुहब्बत भरे लबों को हिलने तो दीजिये
1 टिप्पणियाँ:
Sundar Rachana
Please visit on my blogs also.
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://rishabhpoem.blogspot.in/
एक टिप्पणी भेजें