गुरुवार, 16 जून 2011

मारिया... कैस जौनपुरी

यह कहानी कैस जौनपुरी साहब ने मेल द्वारा भेजी है...  
प्रथम भाग ....... 
मारिया  नाम था उसका...मारिया से मिलने  से पहले करीम की जिंदगी एक अलग तरीके से चल रही थी...जहाँ वो खुद अपनी मर्जी का मालिक हुआ करता था...जहाँ वो सिर्फ अपनी सुनता था..और लोगों को भी सिर्फ अपनी सुनाता था...एक तरह से अपनी दुनिया का बादशाह था...लेकिन मारिया की एक झलक ने उसकी जिंदगी का रुख बदल दिया था...पता नहीं क्या जादू था मारिया की नजर में, कि वो उसके सामने आते ही एक छोटा सा बच्चा बन जाता था...और मारिया के एक इशारे पर चलना शुरू कर देता था...

ऐसा पहले नहीं था...पहले तो वो सिर्फ  खुद को अकलमंद समझता था...वो भी सबसे ज्यादा... बाकी दुनिया उसको अपने आगे छोटी लगती थी...जितने भी बुरे काम हो सकते हैं...सब किये थे उसने...लेकिन पता नहीं क्या ऐसा हुआ...कि अचानक वो सबकुछ छोड़ने के लिए तैयार हो गया...

उसकी हालत सर्कस के शेर जैसी हो गई थी...जो मारिया के एक इशारे पे बिना कुछ कहे...चुपचाप...उठ जाता था...बैठ जाता था...जिंदगी को अपने तरीके से जीने वाला इंसान...सारे तरीके भूल गया था...उसे खुद समझ नहीं आ रहा था...कि मारिया के चेहरे में ऐसा क्या था...जो उसकी जुबान पर ताला लगा देता था...

मारिया  बोलती बहुत थी...उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक रहती थी...हमेशा...जब वो बोलती थी...तो उसके सफ़ेद दांत करीम को किसी और ही दुनिया में लेकर चले जाते थे...जहां उसकी गुलाबी जीभ उसी की तरह चुलबुली सी हिलती-डुलती दिखाई देती थी...मारिया के मुंह के अंदर की नमी करीम को समुन्दर जैसी लगती थी...और वो मारिया को बस टकटकी लगाए बोलते हुए देखता रहता था...

यूँ तो करीम के लिए कभी कुछ मुश्किल  नहीं रहा..मगर पहली बार उसे लगा जैसे उसके अंदर जरा सी भी ताकत नहीं बची है...जिसे वो मारिया को दिखा सके...

मारिया  के लिए उसके दिमाग में  ऐसा कुछ था भी नहीं...लेकिन कुछ था जरूर...वो क्या था खुद करीम को भी नहीं मालूम हो रहा था...इसीलिए वो मारिया को बस चुपचाप बोलते हुए सुनता रहता था....मारिया उसे बोलती हुई बहुत अच्छी लगती थी...अगर थोड़ी देर के लिए भी मारिया चुप हो जाती तो करीम की हालत खराब होने लगती थी...करीम उदास नज़रों से जब मारिया को देखता था...तो मारिया मुस्कुरा देती थी...फिर करीम की सारी उदासी पल भर में गायब हो जाती थी...और मारिया भी बड़ी अजीब थी...एक पल में खामोश हो जाती थी...दूसरे ही पल में इतनी रफ़्तार से बोलना शुरू कर देती थी कि फिर रुकने का नाम नहीं लेती थी...बस यही अदा करीम को भा गई थी...इसलिए वो मारिया को ज्यादा मौका देता था बोलने का...और खुद उसके चेहरे के हाव-भाव देखता रहता था...

मारिया  बहुत गोरी थी...हद से ज्यादा...जरुरत  से ज्यादा...उसके गोरे चेहरे  पे ढेर सारे छोटे-छोटे तिल  थे जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा देते थे...ऊपरवाला भी किसी-किसी के साथ बहुत मेहनत कर बैठता है...उसने मारिया को भी बड़ी मेहनत से बनाया था...मगर करीम को अफसोस था कि “मारिया किसी और की जिंदगी थी...” और मारिया अपनी जिंदगी में बहुत खुश थी...

जब करीम ने मारिया से अपने दिल की बात कही...और मारिया से अपने बारे में पूछा तो मारिया ने कहा था...”तुम मेरी जिंदगी में आये एक ऐसे इंसान हो जिसे मैं जिंदगी भर याद रखूंगी...” करीम ने इतने से ही सब्र कर लिया था...अपनी गुनाहों की दुनिया छोड़कर...जिसमें वो बहुत खुश रहता था...और जिस दुनिया में रहते हुए ही उसे मारिया मिली थी...उस खूबसूरत दुनिया को छोड़कर...एक अलग तरीके की दुनिया शुरू करने चल दिया था...जिसमें वो कभी कदम भी नहीं रखना चाहता था....वो दुनिया थी...इंसानों की दुनिया...जहाँ लोग एक-दूसरे के लिए जीते हैं...जिस दुनिया में मारिया जीती थी...

करीम, मारिया को अपनी बेशरम दुनिया में नहीं घसीट सका...मगर मारिया के चहरे की कशिश उसे खुद वापस उस दलदल में जाने नहीं दे रही थी...कशमकश ये थी कि...मारिया उसकी नहीं हो सकती थी...और सच तो ये था कि वो मारिया को कभी हासिल करना चाह भी नहीं रहा था...वो तो बस सारी दुनिया को भूलकर बस मारिया को देखते रहना चाहता था...ये बात उसने मारिया को बताई भी थी...लेकिन मारिया खुदा का बनाया हुआ ऐसा नूर थी...जिसके आगे आते ही करीम सबकुछ भूल जाता था...वो भूल जाता था कि अपनी दुनिया में वो एक कमीना किस्म का इंसान हुआ करता था...मगर मारिया के रूहानी चेहरे के सामने आते ही करीम एक फकीर जैसा हो जाता था...उसे कुरआन की आयतें याद आना शुरू हो जाती थीं...

और जब मारिया करीम की नज़रों से दूर  हुई तो सिर्फ कुरआन की आयतें ही रह गईं उसके पास...जिनको  करीम दुहराता रहता था...फिर लोगों ने करीम को सचमुच का फकीर समझ लिया...और करीम अपनी गुमनाम अँधेरे वाली दुनिया से बाहर आ गया था....उसकी हालत सचमुच के फकीर जैसी होने लगी थी...भूखा-प्यासा...

करीम, मारिया के रूहानी चेहरे को याद करके कुरआन की आयतें पढ़ता था...जिनमें खुदा की तारीफ़ होती थी...और करीम के चेहरे पर एक खामोश मुस्कुराहट.....लोगों ने करीम की मर्जी के बिना उसे खुदा का नेक बन्दा मान लिया...और धीरे-धीरे...करीम के आस-पास लोगों की भीड़ जुटने लगी...

करीम अब एक बाबा बन चुका था...”करीम बाबा...” लोग उसके सामने सिर झुकाने लगे...करीम मना करता था...तो लोग इसे करीम का बडप्पन समझते थे...करीम के लाख समझाने के बावुजूद लोग उसकी इज्जत करते थे...करीम लोगों से दूर भागता था...लोग उसका पीछा करते हुए उसके पास आ जाते थे...इस तरह करीम बाबा की बात आसपास के इलाकों में पहुँचने लगी...और पहुँचते-पहुँचते मारिया तक भी पहुँच गई....

वक्त बीता...हालात  बीते...मारिया को भी...जिंदगी में किसी फकीर की दुआओं की जरुरत पड़ी...और इसी जरुरत को लेकर मारिया भी करीम बाबा के पास पहुंची...करीम ने मारिया को देखते ही पहचान लिया...करीम के चेहरे पर लोगों ने पहली बार हंसी देखी थी...ये हंसी थी करीम के अब तक के इंतज़ार की...जो तब पूरी हुई जब उसकी बेपनाह खूबसूरत मारिया एक बेबस की तरह उसके सामने खड़ी थी...मगर मारिया को इस बात का इल्म भी नहीं था कि ये वही करीम है...जो उसकी एक ऊँगली के इशारे पे उठता-बैठता था...कई बार उसने मजाक में भी करीम को अपनी उंगली से इशारा किया था...जिसे देखकर करीम बेबस हो जाता था...फिर मारिया खिलखिलाकर हंस देती थी...

आज मारिया खामोश थी...और करीम हंस रहा  था...अपने ऊपर...मारिया के हालात  के ऊपर...ऊपरवाले के ऊपर...जिसने  करीम को ना चाहते हुए भी...ऐसी  हालत में पहुंचा दिया था...और जिसने मारिया के रूहानी नूर को भी दरकिनार कर दिया था...और मारिया आम लोगों की तरह उसके पास आई थी...एक झूठे बाबा के पास....जो खुद मारिया के अफ़सोस में ऐसा हो गया था...

करीम को हंसी आ रही थी...अपने ऊपर...उसने जिस दुनिया को छोड़ा....उसी  दुनिया के लोग उसके पास  दुआ के लिए आते थे...और खुद करीम मारिया से बिछड़ने के बाद इस हालत में पंहुचा था...

करीम ने अपने आस-पास के लोगों को थोड़ी देर के लिए जाने के लिए कहा...मारिया सिर झुकाए  करीम के पास खड़ी थी...करीम के मुंह से एक दर्द भरी आवाज निकली...”मारिया....!” मारिया की नज़र अचानक उठी और करीम के दाढ़ी भरे चेहरे पर पड़ी...मारिया को लगा जैसे उसके किसी अपने ने उसे आवाज दी हो...मगर वहाँ कोई उसका अपना नहीं था....वो करीम की आँखों को तो पहचान रही थी मगर उस चेहरे को नहीं पहचान पा रही थी...जो अब एक भयानक रूप ले चुका था...

करीम को अपने और मारिया के हालात पर बड़ी दया आई...उससे मारिया की ये हालत देखी न गई...उसने अपना मुंह फेर लिया...और मारिया की तरफ पीठ करके खड़ा हो गया...उसे लगा अभी मारिया पूछेगी...”करीम..! क्या तुम ठीक हो...?” जैसे मारिया उससे पूछती थी...जब करीम पहली बार मारिया से मिला था...

मारिया  करीम को उदास या परेशान देखकर  यही कहती...थी...”करीम...! क्या तुम ठीक हो...? मगर आज मारिया खामोश खड़ी थी...वो मारिया.... जो कभी बहुत बोलती थी...और इतना बोलती थी कि रुकने का नाम नहीं लेती थी...आज शुरू होने का नाम नहीं ले रही थी....करीम को ये बात खाए जा रही थी कि “मारिया इतनी चुप क्यों है...?” और खुद करीम इसलिए चुप था क्योंकि वो अपनी मारिया को देखकर वापस उसी हालत में पहुँच गया था....और मारिया की ऊँगली के एक इशारे का इन्तजार कर रहा था...आखिर चुप्पी मारिया ने ही तोड़ी...”सुना है आप लोगों को दुआ देते हैं...?” मारिया की आवाज सुनकर करीम का दिल बैठ गया...पलट कर आँखों में आंसू लेकर वो मारिया के सामने आ गया...उससे अब और इन्तजार न हुआ...मारिया सहम गई....करीम ने कहा...”डरो मत....मैं हूँ...करीम...” मारिया ने कहा...”हां...ये तो मुझे भी मालूम है कि आप करीम बाबा हैं...” मारिया अब भी नहीं समझ पा रही थी...करीम ने कहा...”मारिया...! तुम भूल गई...” अब मारिया के होश उड़ गए...उसने पूछा...”आपको मेरा नाम कैसे मालूम....?” करीम को हंसी आ गई...मारिया को ये हंसी कुछ जानी-पहचानी लगी...मगर उम्र का तकाजा और वक्त की रफ्तार में बहुत कुछ बदल चुका था...

करीम ने कहा...”तुमने कभी किसी से कहा था...तुम उसे पूरी जिंदगी याद रखोगी...” मारिया को करीम बाबा एक पागल लग रहा था...मारिया समझ नहीं पा रही थी...इसलिए पूछ भी नहीं पा रही थी...”क्या तुम ठीक हो...?” जिसका इंतज़ार करीम कर रहा था...करीम ने मारिया के सामने आकर कहा...”तुम्हें देखकर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा रहा है...उस अँधेरे में और अँधेरा घिरता जा रहा है....अँधेरे के भीतर और अँधेरा...और उस अँधेरे के भीतर भी और अँधेरा....सब अँधेरा....मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है....” कहते हुए करीम बाबा मारिया के बहुत नजदीक आ चुका था...

मारिया  खुद को पीछे करते हुए बोली...”मैं कुछ समझी नहीं...?” करीम ने हैरान होकर कहा...”मारिया....! तुम बिना लिपस्टिक के ज्यादा सुन्दर लगती हो....” अब मारिया को कुछ याद आ रहा था....करीम बाबा उसके सामने खड़ा था....मारिया ने हैरानी में आकर अपने मुंह पर अपना हाथ रख लिया...उसे लगा जैसे उसका कलेजा अभी मुंह से बाहर निकल आएगा...मारिया ने एक बार गौर से करीम बाबा को देखा.....और पूछा...”करीम.....? तुम....?” करीम की आँखों में आंसू थे...मारिया ने नजदीक आकर करीम की बांह पकड़कर उसे झकझोरा....”ये सब क्या है...?”

करीम कुछ  न बोल सका....मारिया के चेहरे पे एक बार पहले वाली मुस्कुराहट लौट आई थी...वो एक साथ रो भी रही थी...और हंस भी रही थी....फिर मारिया ने ये भूलकर कि वो यहाँ किस काम से आई थी...करीम को उसी अंदाज में समझाने लगी जैसे पहले समझाती थी....करीम भी रोते हुए बस मारिया को बोलते हुए देख रहा था...”तुम आज भी उतना ही बोलती हो...?” करीम ने रोते हुए ही कहा...मारिया हँसते-रोते हुए बोली...”ये क्या हाल बना रखा है तुमने...? कुछ और काम नहीं मिला...?” करीम ने कहा...”ये भी मैं ना चाहते हुए बना हूँ....लोगों को बहुत समझाया मगर कोई मानने के लिए तैयार ही नहीं था......”

मारिया  समझ नहीं पा रही थी कि...क्या करे...? बस हँसे जा रही थी...करीम को देखकर...और रोये जा रही थी...करीम की हालत को देखकर....बड़े-बड़े बाल...बढ़ी हुई दाढ़ी....ऐसा लग रहा था जैसे काफी दिनों से नहाया न हो....

मारिया  के पूछने पर करीम ने कहा....”किसके लिए सजूँ...अब कोई देखने वाला भी तो नहीं रहा....तुम तो सोने-चांदी के गहनों में खेल रही थी....मुझ जैसे को कुछ नहीं सूझा....यूँ ही पड़ा रहता था....लोगों ने बाबा बना दिया....करीम बाबा....” कहकर हँसने लगा...मारिया भी करीम के साथ-साथ हँसने लगी....

फिर अचानक एक गहरी ख़ामोशी छा गई....मारिया ने कहा....”बस...अब बहुत हो चुका...बंद करो ये सब ड्रामा....और चलो मेरे साथ....” करीम मुस्कुराते हुए बोला....

“छोड़कर गए थे जो, मुझे राहों में

आज वो आये हैं लेने, मुझे बाँहों में” 

“मैं अब कहाँ जाऊंगा...?” करीम ने दर्द भरी आवाज में कहा...मारिया ने करीम को बस एक नज़र घूरकर देखा और अपनी उंगली से इशारा किया....”मैं कुछ नहीं जानती....तुम बस चलो....मैंने कह दिया तो कह दिया....” इतना कहकर मारिया कमरे से बाहर निकल गई....करीम वहीं खड़ा सोचता रहा....मारिया तेज कदमों से चली जा रही थी...उसने पीछे मुड़कर देखा....करीम अभी उसी जगह खड़ा था....मारिया ने एक बार फिर करीम को अपनी तरफ आने का इशारा किया...इस बार करीम को अपनी वही पुरानी मारिया दिखाई दी...वो चुपचाप मारिया की तरफ चल दिया....करीम के शागिर्द करीम से जाते हुए पूछने लगे.....”बाबा किधर जा रहे हैं....?” करीम ने मुस्कुराते हुए कहा....”मेरा खुदा मुझे बुला रहा है....” सभी शागिर्द हैरान होकर देखने लगे....उन्होंने देखा...करीम, मारिया की तरफ बढ़ रहा था...मारिया के चेहरे पर वही रूहानी नूर चमक रहा था....
 

कैस जौनपुरी 

2 टिप्पणियाँ:

Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…

”मारिया....! तुम बिना लिपस्टिक के ज्यादा सुन्दर लगती हो....


पर मेरा ख्याल है, की सिर्फ मारिया ही नहीं, सारी नारियां भी बिना लिपस्टिक के सुन्दर लगती हैं. यानी प्राकृतिक सुन्दरता ही बड़ी चीज़ है, पर इसे कौन समझना चाहता है .

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