मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

दहेज कुप्रथा से बेटी को बचाने में सरकार और कानून असफल

 


आजकल रोज समाचारपत्रों में महिलाओं की मौत के समाचार सुर्खियों में हैं जिनमे से 90 प्रतिशत समाचार दहेज हत्याओं के हैं. जहां एक ओर सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए गाँव और तहसील स्तर पर "मिशन शक्ति" कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही है, सरकारी आदेशों के मुताबिक परिवार न्यायालयों में महिला के पक्ष को ही ज्यादा मह्त्व दिया जाता है वहीं सामाजिक रूप से महिला अभी भी कमजोर ही कही जाएगी क्योंकि बेटी के विवाह में दिए जाने वाली "दहेज की कुरीति" पर नियंत्रण लगाने में सरकार और कानून दोनों ही अक्षम रहे हैं.  

        एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .

                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,

                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं                  इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी बेटी को ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।

       यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

     दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा-3 के अनुसार - 

    दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा।

धारा 4 के अनुसार - 

दहेज की मांग के लिए जुर्माना-

       यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।

    हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं, किन्तु जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़ियों की निंदा की जाती है उस तरह दहेज के दानी कर्णधारों की आलोचना क्यूँ नहीं की जाती है. 

      जब हमारे कानून ने दहेज के लेन और देन दोनों को अपराध घोषित किया है तो जब भी कोई दहेज हत्या का केस कोर्ट में दायर किया जाता है तो बेटी के सास ससुर के साथ साथ बेटी के माता पिता पर केस क्यूँ नहीं चलाया जाता है. हमारे समाज में बेटी की शादी किया जाना जरूरी है किन्तु क्या बेटी की शादी का मतलब उसे इस दुष्ट संसार में अकेले छोड़ देना है. बेटी के सास ससुर बहू को अपने बेटे के लिए ब्याह कर अपने घर लाते हैं वे उसे पैदा थोड़े ही करते हैं किन्तु जो माँ बाप उसे पैदा करते हैं वे उसे कैसे ससुराल में दुख सहन करने के लिए अकेला छोड़ देते हैं. आज तक कितने ही मामले ऐसे सामने आए हैं जिनमें दहेज के लोभी ससुराल वालों से तंग आकर बहू ने ससुराल में आत्महत्या कर ली और उस आत्महत्या की जिम्मेवारी भी ससुरालवालों पर डालकर केवल उन्हीं पर केस दर्ज किया गया और न्यायालयों द्वारा उन्हें ही सजा सुनाई गई जबकि ससुराल में बहुओं द्वारा आत्महत्या का एक पक्ष यह भी है कि जब मायके वालों ने भी साथ देने से हाथ खड़े कर दिए तो उस बहू /बेटी के आगे अपनी जिंदगी के ख़त्म करने के अलावा कोई रास्ता न बचने पर उसने आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम को उठाने का फैसला किया और ऐसे में जितने दोषी ससुराल वाले होते हैं उतने ही दोषी बहू/बेटी के मायके वाले भी होते हैं किन्तु वे बेचारे ही बने रहते हैं. 

         बेटी को उसके ससुराल में खुश दिखाने का दिखावा स्वयं बेटी पर कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा हमारे समाज में निश दिन आने वाली दहेज हत्या या बहू द्वारा आत्महत्याओं की खबरें हैं. जिन पर रोक लगाने के लिए सरकार और कानून से भी आगे बेटी के माँ बाप को ही आना होगा और उन्हें यह समझना होगा कि बेटी की शादी जरूरी है किन्तु उसका साथ छोड़ना जरूरी नहीं है. यदि ससुराल वाले बेटी को दहेज के लिए प्रताडित करते हैं, तंग करते हैं तो अपनी बेटी को अपने घर वापस लाकर जिंदगी दीजिए और तब कानून की शरण में जाकर उसे न्याय दिलाईये, यह नहीं कि पहले ससुराल वालों की प्रताड़ना से बचाने के लिए उनकी गलत मांगों को पूरा करते रहें और फिर उनके द्वारा बेटी की हत्या कर दिए जाने पर उन्हें सजा दिलाएं और मृत पुत्री को न्याय क्योंकि मृत्यु के बाद जब शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है तो बेटी को दुख में अकेले छोड़ देना पुत्री के माता पिता के भी पाप में ही आता है और जब तक बेटी को अपने माता पिता का ऐसा मजबूत साथ नहीं मिल जाता है तब तक बेटी का जीवन बचाने में वास्तव में सरकार और कानून भी असफल ही नजर आता है. 

                शालिनी कौशिक

                       एडवोकेट 

                 कैराना (शामली) 

                    

               

     

शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

मुंबई भ्रमण

मुंबई भ्रमण का ——————————- कभी कभी हम कहीं बाहर जाते हैं तो नई जगह पर ओटो ‘ टेक्सी या बस का सफ़र भी करना ही होता है और नए शहर की कुछ नई यादों को हम अपनी झोली में भर लाते हैं,लेकिन कभी कभी कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं कि अनजाने में ही छोटा सा सफ़र भी यादगार बन जाता है ।कुछ ऐसा ही कल हुआ । आजकल मैं सपत्नी मुंबई में बेटे के पास आया हूँ ।सनातन धर्मावलम्बी होने के कारण कभी कभी मंदिर दर्शन के विचार भी प्रबल हो जाते हैं तो मैं मंदिर भी चला जाता हूँ। मुंबई में भी सिद्धि विनायक और महालक्ष्मी मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं अतः मुंबई के सिद्धि विनायक और महालक्ष्मी मंदिर जाने का विचार बना । हम सभी घर से दोपहर को कैब द्वारा सिद्धि विनायक मंदिर गए और वहाँ आराम से दर्शन किए। दोपहर को इसलिए ताकि अधिक भीड़ का सामना न करना पड़े,क्योंकि हमने सुना था कि सुबह शाम वहाँ बहुत भीड़ होती है और अधिक भीड़ में हो सकता है गणपति महाराज की कृपा दृष्टि हम पर कुछ कम पड़ पाए । दोपहर का निर्णय सही भी रहा क्योंकि उस समय हमें दर्शन के लिए अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी । वहाँ से महालक्ष्मी मंदिर के लिए टैक्सी से रवाना हुए तो टैक्सी में बैठते ही हमें अहसास हो गया कि यह टैक्सी ड्राइवर तो ड्राइवर के साथ साथ मुंबई दर्शन के लिए अच्छा गाइड भी है ।लगभग 15-20 मिनट के सफ़र में उसने पूरे रास्ते के इतिहास के साथ वर्तमान के दर्शन बड़े ही मज़ेदार ढंग से करा दिए । कल 13 जून तारीख़ थी जगह जगह आदित्य ठाकरे के नाम के बड़े बड़े होर्डिंग लगे थे तो उसने बताया कि आज साहिब का जन्म दिन है ।साहिब …..के नाम पर हमने उसकी तरफ़ देखा तो उसने स्पष्ट किया ,साहिब आदित्य ठाकरे का जन्म दिन है आज …. बहुत अच्छा है साहिब …. बहुत काम कराया है मुंबई में ….. महाराष्ट्र का भावी मुख्य मंत्री है साहिब ……। ये जो कोस्टल रोड बन रहा है वो साहिब के प्रयास से बन रहा है। कई बार आधी रात को भी देखने आजाते हैं कि काम ठीक हो रहा है या नहीं अगले साल 2023 में बन कर पूरा हो जाएगा ।उसकी बातों से हम समझ गए कि यह पक्का शिव सैनिक है । रास्ते में एक पाँच मंज़िला खूब सूरत बंगले की ओर इशारा करते हुए उसने बताया कि यह बंगला मुकेश अम्बानी ने अपनी बेटी इशा अम्बानी को गिफ़्ट दिया है । तीन हज़ार करोड़ का बंगला है ।इसमें तीस कमरे हैं दो लोग रहते हैं और तीन सो नौकर है । मुझे भी एसा ससुराल मिल जाता तो आज टैक्सी नहीं चलाता …….। थोड़ी दूर पर ही रेसकोर्स फ़ील्ड था उसे देखते ही बोला यहाँ पर कुछ गधे,घोड़ों पर रुपए लगा कर घोड़े के जीतने की उम्मीद करते हैं। हमें आश्चर्य हुआ कि यह क्या कहा रहा है । उसने स्पष्ट किया कि यहाँ घोड़ों की रेस होती है ।लोग घोड़ों पर इस उम्मीद में पैसा लगाते हैं ,कि उनका घोड़ा जीतेगा …… वह आगे बोला कि यदि जिताना ही है तो स्वयं को जिताओ घोड़े को क्या जिताना ….?वास्तव में उसकी बात में दम था । मैंने मन ही मन सोचा अगर यह बात घोड़े पर पैसा लगाने वाले लोगों की समझ में आ जाए तो घुड़ दौड़ की यह दुकान ही बंद हो जाएगी । रास्ते में दिखाई देती अधिकांश बंगले और बिल्डिंगों के बारे में भी पूरा लेखा जोखा उससे पास था चाहे वो किसी फिल्म के ऐक्टर का हो या किसी अन्य का ।रास्ते में भीड़ को देख उसने बताया यहाँ पास ही लता जी का घर है यहाँ से ब्रिज बनना था लेकिन लता जी ने कोर्ट में केस कर दिया ,लेकिन अब वे तो नहीं हैं मगर कोर्ट में केस चल रहा है । दूर सामने एक ऊँची सी बिल्डिंग देख कर वह बोला वो बिल्डिंग मुकेश अम्बानी की है वहाँ तीन सो कमरे हैं दो लोग रहते हैं हेलीपेड भी है । उसके ड्राइवर को भी साढ़े तीन लाख रुपए महीने मिलता है मेरी घरवाली को मैं एक लाख रुपए भी दे दूँ तो एक साल का राशन लाकर घर में भर लेगी । वह बोला आपको मालूम है महा लक्ष्मी मंदिर से सुबह पाँच बजे लक्ष्मी जी अम्बानी के घर चली जाती हैं और रात को नो बजे तक वहीं रहती हैं लक्ष्मी जी ……! और अब सरकार भी उनकी है इसलिए सबसे ज़्यादा अच्छे दिन उनके ही आयें हैं।महालक्ष्मी मंदिर पहुँच कर हमने देखा कि मंदिर के बाहर से ही अम्बानी की बिल्डिंग दिखाई दी,तब हमें समझ आई उसकी बात । इस थोड़ी सी देर का यह सफर एक यादगार सफर बन गया । एक आम आदमी की समझ…… सोच…जो जीवन को वास्तव में स्वयं के बल पर जीता है स्वयं की मेहनत से रोज़ नित नए घरोंदे बनाता है । डा योगेन्द्र मणि कौशिक कोटा

सोमवार, 27 जनवरी 2020

सरहदों के मौसम एक से 
बस अलग था तो 
मार दिया जाना पंछियों का
जो उड़कर उस पार हो लिए

रंगनी थी दिवार
कि जब तक खून लाल ना हो
जमीन भींग ना जाए
और हम सोते रहें

देर रात जश्न मनाते 
शराब पी बे- सूद
अपनी औरतों को मारते
हम अलग नहीं

चौराहे 
अलग रंग के
अलग शहरों के 
घटना एक सी
रेप कर दिया
चाकू मार दिया
हम एक हैं अलग नहीं

ये खून हरा है
खून बहेगा तबतक
जबतक वो लाल नहीं होता
मरेगी औरतें, मारेगा आदमी
होंगे रेप
चलेंगे चाकू

आदमी सोच रहा
हम हरे खून वाले 
जब बहेंगे 
तब बहेगा जहर 
तो खून लाल कर दो देवता
या पानी बना बहा दो सब
आ जाने दो प्रलय
अब जलमग्न हो जाने पर ही धूल पाएगी दुनिया

हम हो पायेंगे इंसान
तब ये खून लाल होगा

Deepti Sharma

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

#क्या वाकई निर्भया

जो दिखाई देता है, हम सभी जानते हैं कि वह हमेशा सत्य नहीं होता है किन्तु फिर भी हम कुछ ऐसी मिट्टी के बने हुए हैं  कि तथ्यों की जांच परख किए बगैर दिखाए जा रहे परिदृश्य पर ही यकीन करते हैं और इसका फायदा भले ही कोई भी उठाता हो लेकिन हम अपनी भावुकतावश नुकसान में ही रहते हैं. 
अभी दो दिन पहले ही तेलंगाना में एक पशु चिकित्सक डॉ प्रियंका रेड्डी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गयी और हत्या भी ऐसे कि लाश को इस बुरी तरह जला दिया गया कि उसकी पहचान का आधार बना एक अधजला स्कार्फ और गले में पड़ा हुआ गोल्ड पैंडैंट और मच गया चारों ओर कोहराम महिला के साथ निर्दयता का, सोशल मीडिया पर भरमार छा गई #kabtaknirbhaya की, सही भी है नारी क्या यही सब कुछ सहने को बनी हुई है, क्या वास्तव में उसका इस दुनिया में कुछ भी करना इतना मुश्किल है कि वह अगर घर से बाहर कहीं किसी मुश्किल में पड़ गई तो अपनी इज्ज़त, जिंदगी सब गंवाकर ही रहेगी, आज की परिस्थितियों में तो यही कहा जा सकता है किन्तु अगर बाद में सच कुछ और निकलता है तब हम सोशल मीडिया पर क्या लिखेंगे? सोचिए.
          स्टार भारत पर प्रसारित किए जा रहे सावधान इंडिया में दिखाए गए एक सच ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया और उनकी दिखाई गई एक सत्य घटना के बारे में सर्च की और थोड़ी मशक्कत के बाद मुझे वह घटना इस तरह प्राप्त भी हो गई, जिसे आप सब भी पढ़ सकते हैं -
कक्षा आठ की छात्रा आरती हाथरस के मुरसान थाना क्षेत्र के गांव करील में पिछले छह साल से अपने मामा भूरा के घर रह रही थी। गांव वालों ने बताया कि भूरा के घर से धुंआ उठने पर जब वे घर के अंदर गए तो उन्हें आरती जली मिली। थोड़ी देर तक तो वे समझे कि ये बहू ममता है, लेकिन बाद में उसकी पहचान आरती के रूप में हुई। दरअसल ग्रामीणों को आरती की पहचान में इसलिए गफलत हुई क्योंकि उसके हाथ में चूड़ियां और पांव में बिछुआ थे। ममता ने आरती को क्यों मारा, इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। वारदात के समय मामी और भांजी ही घर पर थे।
ऐसे ही थोड़ा अवलोकन अब इस मामले का करते हैं, ध्यान दीजिये - 
डॉक्टर को हैदराबाद-बेंगलुरु हाईवे पर स्थित जिस टोल प्लाजा पर आखिरी बार देखा था, वहां से करीब 30 किमी दूर एक किसान ने गुरुवार सुबह उसका जला हुआ शव देखा। उसने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर के परिवार के लोगों को घटनास्थल पर बुलाया। अधजले स्कार्फ और गले पड़े गोल्ड पेंडेंट से डॉक्टर के शव की पहचान हुई। पुलिस को आसपास से शराब की बोतलें भी मिलीं। 
        जैसे कि उपरोक्त पहले मामले में............ आगे पढ़ें नीचे दिए लिंक 👇
शालिनी कौशिक एडवोकेट 

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

हम बेख़बर थे.....!!

हम बेख़बर थे ,अपने कल के लिए
क़दम ठिठके ,एक पल के लिए।

बहुत दूर जाते, दिखे वो सभी
रुक गए थे राह में, जिनके लिए।

मन्ज़िल की राह, कुछ दुशवार थी
हाथों से कांटे चुने थे इनके लिए।

जख़्म रिसते रहे,पर दर्द काफूर था
नहीं वक़्त था ,उफ़ करने के लिए।

आसमां में दिखी,एक चिड़िया उड़ती हुई
चोंच में दबाए कुछ तिनके लिए।

कमलेश' आबाद है दुनिया इस उम्मीद पर
 कुछ छोड़ जाएं अच्छा
कल के लिए।।💐

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

हम बेख़बर थे ...!!💐

हम बेख़बर थेअपने कल के     लिए
क़दम  ठिठके एक पल के लिए।

वो बहुत दूर जाते, दिखे वो     सभी
रुक गए थे राह में, जिनके लिए।

मन्ज़िल की राह, कुछ दुशवार    थी
हाथों से कांटे चुने थे इनके लिए।

जख़्म रिसते रहे,पर दर्द काफूर   था
नहीं वक़्त था ,उफ़ करने के लिए।

आसमां में दिखी,एक चिड़िया उड़ती हुई
चोंच में दबाए कुछ तिनके लिए।

कमलेश' आबाद है दुनिया इस उम्मीद पर,
कुछ ना कुछ छोड़ जाएं अच्छा
कल के लिए।।💐

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

बुधवार, 17 जनवरी 2018

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

बुधवार, 22 नवंबर 2017

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