गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

अब अश्क बहते नहीं,कोई कुछ कहे तकलीफ होती नहीं


313-02-11
अब
अश्क बहते नहीं
कोई कुछ कहे तकलीफ
होती नहीं
ग़मों से दोस्ती हो गयी
निरंतर सहने की आदत
 हो गयी
जीना अब मजबूरी हो गयी
रात कट तो जाती पर
गुजरती नहीं
बहारें भी खिजा सी लगती
फूलों से महक आती नहीं
जुदाई उनकी बर्दाश्त
होती नहीं
बिना उनके,किसी से कोई
मतलब नहीं
कोई हँसे या रोए असर
होता नहीं
वो ना मिले जब तक
जियूं या मरूं फर्क
पड़ता नहीं
23-02-2011 
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

4 टिप्पणियाँ:

Mithilesh dubey ने कहा…

sundar rchnaa aabhar.

हरीश सिंह ने कहा…

जीना अब मजबूरी हो गयी
रात कट तो जाती पर
गुजरती नहीं ........ achchhi prastuti

शिव शंकर ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना ,आभार

बेनामी ने कहा…

bahut sundar

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