313-02-11
अब
अश्क बहते नहीं
कोई कुछ कहे तकलीफ
होती नहीं
ग़मों से दोस्ती हो गयी
ग़मों से दोस्ती हो गयी
निरंतर सहने की आदत
हो गयी
जीना अब मजबूरी हो गयी
रात कट तो जाती पर
जीना अब मजबूरी हो गयी
रात कट तो जाती पर
गुजरती नहीं
बहारें भी खिजा सी लगती
फूलों से महक आती नहीं
जुदाई उनकी बर्दाश्त
होती नहीं
बिना उनके,किसी से कोई
बिना उनके,किसी से कोई
मतलब नहीं
कोई हँसे या रोए असर
कोई हँसे या रोए असर
होता नहीं
वो ना मिले जब तक
वो ना मिले जब तक
जियूं या मरूं फर्क
पड़ता नहीं
23-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
4 टिप्पणियाँ:
sundar rchnaa aabhar.
जीना अब मजबूरी हो गयी
रात कट तो जाती पर
गुजरती नहीं ........ achchhi prastuti
बहुत ही सुंदर रचना ,आभार
bahut sundar
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