सोमवार, 28 मार्च 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य वन्दना सर्ग...क्रमश:----डा श्याम गुप्त

सुमनान्जलि...वन्दना..---डा श्याम गुप्त

    प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा    
           रचयिता---डा श्याम गुप्त


भारतीय ब्लॉग लेखक मंच पर .... प्रेम महाभारत  के उपरान्त....प्रेम जैसे विशद विषय को आगे बढाते हुए व उसके विविध रंगों को विस्तार देते हुए ...आज से हम  महाकाव्य "प्रेम काव्य " को क्रमिक रूप में पोस्ट करेंगे । यह गीति विधा महाकाव्य में प्रेम के विभिन्न रूप-भावों -- व्यक्तिगत से लौकिक संसार ...अलौकिक ..दार्शनिक  जगत से होते हुए ...परमात्व-भाव एवं मोक्ष व अमृतत्व तक --का गीतिमय रूप में निरूपण  है | इसमें  विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय छंदों, अन्य छंदों-तुकांत व अतुकांत  एवं विविधि प्रकार के गीतों का प्रयोग किया गया है |
          यह महाकाव्य, जिसकी अनुक्रमणिका को काव्य-सुमन वल्लरी का नाम दिया गया है -- वन्दना, सृष्टि, प्रेम-भाव, प्रकृति प्रेम, समष्टि प्रेम, रस श्रृंगार , वात्सल्य, सहोदर व सख्य-प्रेम, भक्ति श्रृंगार, अध्यात्म व अमृतत्व ...नामसे  एकादश सर्गों  , जिन्हें 'सुमनावालियाँ' कहा गया है , में निरूपित है |
      प्रथम सुमनांजलि -वन्दना..१० रचनायें--.   जिसमें प्रेम के सभी देवीय व वस्तु-भावों व गुणों की वन्दना की गयी  है......प्रस्तुत है वंदना ९ व १०.....
            ९-प्रेम तत्व वंदना ...
प्रेम  तेरी वन्दना, मैं क्या करूँ, कैसे करूँ |
प्रेम तो है स्वयं वंदन, वन्दना मैं क्या करूँ ||

प्रेम की जो अर्चना , कर पाय मानव सत्य ही |
यह जगत आदर्श बनकर, प्रेममय हो स्वयं ही ||
प्रीति की ही रीति को मन में बसाए जो जिए |
कर्म की आराधना से सत्य पथ पर चल लिए ||

प्रेम ही जो हो नहीं तो विश्व का व्यवहार क्या |
ज़िंदगी जो हो नहीं तो मृत्यु का व्यापार क्या ||

धर्म आस्था त्याग माया भोग तप जो कर्म सब |
क्षमा करूणा मोह ममता, प्रेम के ही धर्म सब ||

प्रेम ही ईश्वर अलौकिक, प्रेम लौकिक व्यंजना |
प्रेम ही मन की सुरीली तान, प्रभु अभ्यर्थना ||

जन्म जीवन मृत्यु रचना रचयिता, या ब्रह्म सब |
प्रेम से उत्पन्न सब कुछ , प्रेम-लय हों तत्व सब ||

प्रेम ही जीवन-जगत का मूल है,  आधार है |
प्रेम की ही वन्दना तो 'श्याम, कृति का सार है ||

       १०-प्रेमी युगल वन्दना .....
वन्दों प्रिय नर-नारि,रति-अनंग सम रूप धर |
जासु कृपा संसार, चलै सकल कारन-कारन ||

राधे-मोहन रूप या,  पति-पत्नी के तत्व  |
माया-ब्रह्म स्वरुप, जग में प्रेमी-प्रेमिका ||

अमर प्रेमिका रूप , अमर प्रेम, प्रेमी अमर |
प्रेमी अमर अरूप, कालिका  औ प्रेमी भ्रमर  ||

प्रेमी युगल प्रतीति,श्याम ह्रदय रस रंग नित |
वीणा-सारंग३  प्रीति, दीपक जरै पतंग ,जस  ||

स्वाति-बूँद के हेतु,सब दुःख सहे सहेज ,जो |
प्रेम-परीक्षा देख, पपिहा 'श्याम, सराहिये ||

इक दूजे मन माहिँ, अंतरतम तक होयं लय |
अमर-तत्व पाजाहिं, सच्चे प्रेमी-प्रेमिका ||

इक दूजे के अंग, सुख-दुःख खो जो रम रहें |
सो   पावें    रस रंग,  सोई   प्रेमी-प्रेमिका  ||

मन   प्रेमी  होजाय, युगल-रूपप्रिय चित धरे |
नलिनी खिल-खिल जाय,ध्यान धरे शशि-चंद्रिका७  ||

जीवन सफल सुहाय, दर्शन प्रेमी युगल के |
मन पंकज खिल जाय, जैसे देखे रवि-प्रभा||    क्रमश:---द्वितीय  सुमनांजलि ...सृष्टि ..


 [कुंजिका--  १= स्त्री-पुरुष ही प्रेम का मूल उपादान है ...२=  कली व भंवरे के प्रेम का स्वरुप ...३= वीणा की तान पर हिरण का मुग्ध होकर शिकारी के जाल में फंस जाने की कथा का संकेत ...४= दीपक के ऊपर पतंगे ( शमा-परवाना ) के जल मरने के साहित्यिक तथ्य का संकेत...५ = पपीहा सिर्फ स्वाति-नक्षत्र का ही जल पीता है इस साहित्यिक कथ्य का संकेत....६= प्रेमी-प्रेमिका या राधा-कृष्ण का युगल स्वरुप ...७= कमलिनी या कुमुदिनी का पुष्प सिर्फ चांदनी में ही खिलता है |...८= कमल का पुष्प दिन में सूर्योदय होने पर ही खिलता है रात में सूर्यास्त पर बंद होजाता है | ]

8 टिप्पणियाँ:

गंगाधर ने कहा…

ज्ञानवर्धक, स्वागत .

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर व गहन वर्णन !

poonam singh ने कहा…

बहुत सुंदर व गहन वर्णन !

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत सुंदर व गहन वर्णन !

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद, मिथिलेश, पूनम जी, रूबी जी अनिता व गंगाधर....मन पंकज खिलि जाय....

kirti hegde ने कहा…

बहुत सुंदर व गहन वर्णन !

shyam gupta ने कहा…

thanx-kirti ji...

आशुतोष की कलम ने कहा…

श्याम तो है स्वयं वंदन, वन्दना मैं क्या करूँ ||

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