प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है...
भौहें बनाईं कमान भला , हैं-
कौन यहाँ मृग-बाघ धरे ,
पंकज नाल सी बाहें प्रिया, उर-
प्रथम भाग (क)- संयोग श्रृंगार में --पाती, क्या कह दिया , मान सको तो, मैं चाँद तुझे कैसे....., प्रिय तुमने किया श्रृंगार , पायल, प्रियतम जब इस द्वारे आये, सखि ! कैसे व मांग सिंदूरी ...आदि ९ रचनाएँ प्रस्तुत की जायगीं | प्रस्तुत है अष्ठम गीत ..रति-श्रृंगार में ....
सखि कैसे ....?
सखि री ! तेरी कटि छीन,
पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?
बोली सखी मुसकाय , हिये-
उर-भार तिहारो धरतीं हैं जैसे ||
भौहें बनाईं कमान भला , हैं-
तीर कहाँ पे, निशाना हो कैसे ?
नैनन के तूरीण में बाण ,
धरे उर पैनी कटार के जैसे ||
कौन यहाँ मृग-बाघ धरे ,
कहौ,बाणन वार शिकार हो कैसे ?
तुम्हरो हियो मृग भांति पिया,
जब मारे कुलांच, शिकार हो जैसे ||
प्रीति तेरी मन मीत, प्रिया -
उलझाए ये मन, उलझी लट जैसे |
लट सुलझाय तो तुम ही गए,
प्रिय, मन उलझाय गए कहो कैसे ?
ओठ तेरे बिम्बाफल भांति,
किये रचि, लाल अंगार के जैसे |
नैन तेरे प्रिय, प्रेमी चकोर ,
रखें मन जोरि अंगार से जैसे ||
अनहद -नाद को गीत बजे,,
संगीत, प्रिया अंगडाई लिए से |
कंचन-काया के ताल-मृदंग पे ,
थाप तिहारी कलाई दिए से ||
प्रीति भरे रस बैन तेरे , कहो -
कोकिल-कंठ भरे रस कैसे ?
प्रीति की वंशी तेरे उर की,पिय -
देती सुनाई मेरे उर में से ||
पंकज नाल सी बाहें प्रिया, उर-
बीच धरे हो, क्यों अँखियाँ मीचे |
मत्त मतंग की नाल सी बाहें ,
भरें उर बीच , रखें मन सींचे ||
2 टिप्पणियाँ:
रीति कालीन कवि रसलीन की याद ताज़ा करदी नख शिख वर्रण में .बहुत सुन्दर प्रेम सरोवर में डुबकी लगवाती रचना मुग्धा भाव लिए .
धन्यवाद वीरूभाई ...आपने श्रृंगार शिरोमणि रसलीन का उल्लेख करके बड़ी हौसला अफजाई की है...आभार...
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