सोमवार, 28 मार्च 2011

होलिका दहन (आग) से अल्लाह ने पैग़म्बर इब्राहीम (प्रहलाद) को बचाया Allah saves Ibrahim from the fire.

(यह लेख इस्लाम व हिन्दू धर्म की समानताओं पर आधारित है और हिन्दू-मुस्लिम एकता व सौहार्द को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिखा गया है)

आँखें खोलने पर सब पता चल सकता है, जहाँ एक तरफ कई महान लोगों ने इस्लाम और हिन्दू धर्म में समानता वाली किताबें लिख डाली वहीँ यह पूर्णतया सत्य ही है कि एक दुनियाँ में कई मान्यताएं नहीं हो सकती सिवाय एक  के ! दुनियाँ एक, उसे चलाने वाला एक तो फिर बाक़ी सब एक से ज्यादा कैसे हो सकते हैं.

जिस तरह से प्रहलाद की कहानी है ठीक उसी तरह से पैग़म्बर इब्राहीम की हक़ीक़त भी. प्रहलाद की कहानी तो सभी जानते हैं मगर भारतीय जन मानस के ज़ेहन में पैग़म्बर इब्राहीम की हक़ीक़त का कोई अक्स मौजूद नहीं. तो आइये आज जानते हैं उन्हीं के बारे में!

इस बात से कई दानिशमंदो का इनकार नहीं कि भारत वर्ष में भी नबियों का आना हुआ हो सकता है, कुछ लोगों को तो राम और कृष्ण को भी नबियों की श्रेणी में लाने की कोशिश की हैमनु की कहानी से हूबहू मिलती-जुलती जीवनी नुह (अ.) की भी है जिससे हम भारतीयों को जानने और समझने की आवश्यकता है. अगर सच्चे और साफ़ दिल से इन सभी विषयों को जो कि आप में समानता लाने के उद्देश्य को सफल बनायें, का अध्ययन अब अति आवश्यक है वरना बिना जानकारी के हम पूर्वाग्रही बनते चले जा रहे है जिसका नतीजा सिर्फ़ विनाश है विकास कत्तई नहीं !

भक्त प्रहलाद की काहानी:
क बार असुरराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन था। मौका देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसकी गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए। वे उसे प्रतिदिन धर्म और ईश्वर महिमा के बारे में बताते। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया। वहाँ प्रहलाद का जन्म हुआ।

बाल्यावस्था में पहुँचकर प्रहलाद ने एकेश्वर-भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह ईश्वर का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया। उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाए।

होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि तब तक कभी हानि नहीं पहुँचाएगी, जब तक कि वह किसी सद्वृत्ति वाले मानव का अहित करने की न सोचे। अपने भाई की बात को मानकर होलिका भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई। उसका अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद हँसते हुए अग्नि से बाहर आ गया

मकामे इब्राहीम (काबा में) 
पैग़म्बर इब्राहीम (अ.) की जीवनी:
पैग़म्बर इब्राहीम के पिता आज़र अपने ज़माने के श्रेष्ठतम मूर्तिकार व मूर्तिपूजक थे. उनकी बनाई हुई मूर्तियों की पूजा हर जगह की जाती थी. आज़र कुछ मूर्तियों को इब्राहीम (अ.) को भी खेलने के लिए खिलौने बतौर दे दिया करते थे. एक बार उन्होंने अपने पिता द्वारा निर्मित मूर्तियों को एक मंदिर में देखा और अपने पिता से पूछा 'आप इन खिलौनों को मंदिर में क्यूँ लाये हो?' 'यह मूर्तियाँ ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती हैं, हम इन्ही से मांगते है और इन्ही की इबादत करते हैं.', पिता आज़र ने बच्चे इब्राहीम (अ.) को समझाया. लेकिन आज़र की बातों को बालक इब्राहीम (अ.) के मानस पटल ने नकार दिया.

जीवनी लम्बी है पाठकों की सुविधानुसार इसे संक्षेप में कुछ यूँ समझ लीजिये कि इब्राहीम अलैहिसलाम ने सूरज चाँद या मुर्तिओं में किसी को भी अपना माबूद (पूज्य) मानाने से इनकार कर दिया क्यूंकि सूरज सुबह उग कर शाम अस्त हो जाता, चाँद रात में ही दिखाई देता और मूर्तियों के बारे में उनका क़िस्सा ज़रूर आप तक पहुँचाना चाहता हूँ कि एक बार वो मुर्तिओं को देखने रात में मंदिर गए और वहां एक बहुत बड़ी मूर्ति देखी बाक़ी छोटी-छोटी मूर्ति भी देखी. उन्होंने छोटी सभी मूर्तियों को तोड़ दिया और चले आये अगले दिन लोगों ने पूछा कि 'इन छोटी मूर्तियों को किसने तोडा' तो इब्राहीम (अ.) ने कहा - 'लगता है रात में इस बड़े बुत से इन छोटे बुतों का झगड़ा हो गया होगा जिसके चलते बड़े बुत ने गुस्से में आकर इनको तोड़ डाला होगा, ऐसा क्यूँ न किया जाये कि बड़े बुत से ही पूछा जाये कि उसने ऐया क्यूँ किया.' लोगों ने कहा - ये बुत नहीं बोलते हैं'

इस तरह से उन्होंने अपने पिता और लोगों को भी इस्लाम का पैग़ाम सुनाया और मुसलमान बन जाने की सलाह दी लेकिन ऐसा हो न सका. लेकिन मूर्तियों के तोड़े जाने और अन्य हक़ीक़तों के जान जाने के उपरान्त उन्होंने इब्राहीम (अ.) को ख़ूब खरी-खोटी सुनायी और डांटा और वहां से चले जाने को कहा. लेकिन इब्राहीम ने कहा- मैं ईश्वर (अल्लाह) से आपके लिए क्षमा करने कि दुआ मांगूंगा.

पैग़म्बर इब्राहीम (अ.) को अल्लाह ने आग से बचाया:
स तरह से इब्राहीम एक अल्लाह की इबादत की शिक्षा लोगों को देने लगे. जिसके चलते हुकूमत की नज़र में आ गए और नमरूद जो कि हुकूमत का सदर था ने उन्हें जान से मरने का हुक्म दे दिया. उन्हें आग के ज़रिये ख़त्म करने का हुक्म जारी हुआ. यह खबर जंगल में आग की तरह फ़ैली और जिस जगह पर ऐसा कृत्य करने का फरमाना हुआ था, भीड़ लग गयी और लोग दूर-दूर से नज़ारा देखने आ पहुंचे. ढोल नगाड़ा और नृत्य का बंदोबस्त किया गया और वहां एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदा गया जिसमें ख़ूब सारी लकड़ियाँ इकठ्ठा की गयीं. फिर ऐसी आग जलाई गयी जैसी पहले कभी नहीं जली थी. उसके लपटे ऐसी कि बादलों को छू रही थी और आस पास के पक्षी भी जल कर निचे गिरे जा रहे थे. इब्राहीम (अ.) के हाथ और पैर को ज़ंजीर से जकड़ दिया गया था और एक बहुत बड़ी गुलेल के ज़रिये से बहुत दूर से उस आग में फेंका जाना था.

ठीक उसी समय जिब्राईल फ़रिश्ता (जो कि केवल नबियों पर ही आता था) आया और बोला: 'ऐ इब्राहीम, आप क्या चाहते हैं?' इब्राहीम चाहते तो कह सकते थे कि उन्हें आग से तुरंत बचा लिया जाए. मगर उन्होंने कहा, 'मैं अल्लाह की रज़ा (मर्ज़ी) चाहता हूँ जिसमें वह मुझसे खुश रहे.' ठीक तभी गुलेल जारी कर दी गयी और इब्राहीम (अ.) को आग की गोद में फेंक दिया गे. लेकिन अल्लाह नहीं चाहता था  कि उनका प्यारा नबी आग से जल कर मर जाये इसलिए तुरंत हुक्म हुआ, 'ऐ आग ! तू ठंडी हो जा और इब्राहीम के लिए राहत का सामान बन ! 

और इस तरह से अल्लाह का चमत्कार साबित हुआ. आग ने अल्लाह का हुक्म माना और इब्राहीम (अ.) को तनिक भी नहीं छुई बल्कि उनकी ज़ंजीर को ही छू सकी जिससे वह आज़ाद हो गए. इब्राहीम (अ.) बाहर आ गए और उनके चेहरे पर उतना ही सुकून और इत्मीनान था जैसे वो बाग़ की सैर करके आये हों या ठंडी हवा से तरो-ताज़ा होकर आयें हो और उनके कपड़े में रत्ती भर भी धुआँ नहीं बल्कि वे वैसे ही थे जैसे कि पहले थे.
लोगों ने इब्राहीम को आग से बच जाने की हकीकत देखी और आश्चर्यचकित हो गए और कहने लगे...... 'आश्चर्य है ! इब्राहीम (अ.) के ईश्वर (अल्लाह) ने उन्हें आग से बचा लिया.'

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इस तरह से भक्त प्रहलाद और इब्राहीम (अ.) के बीच काफ़ी समानताएं हैं जिसे हम नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते.  गहन अध्ययन के उपरान्त अवश्य सत्य की प्राप्ति हो जाएगी....आमीन !

5 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

सही है...ईश्वर के भक्तों के साथ एसी घटनायें होती रहते हैं....
--बस कहानी में इतना फ़र्क है कि जहां प्रहलाद की कथा में बाकायदा भावना व चमत्कार को तर्क-सिद्ध किया गया है एवं सदाचरण से जोडा गया है,... वहीं इब्राहीम की कथा बस चमत्कार है तर्क सिद्ध नहीं.न उसे सदाचरण से जोडा गया है बस अल्लाह ने चमत्कार पूर्वक बचालिया...

Arunesh c dave ने कहा…

वाह इतनी अच्छी जानकारी के लिये आभार निश्चित ही हम सभी का जन्म एक ही सभ्यता मे हुआ है और हम सभी अपने विश्वासो के आधार पर एक ही ईश्वर की अलग अलग तरह से पूजा करते हैं ।

kirti hegde ने कहा…

सटीक जानकारी, पर मूर्ति पूजा गलत नहीं है. पत्थर भगवान नहीं होता पर पत्थर में भगवान होते हैं. यह विश्वास है.

Anita ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट ! बधाई !

गंगाधर ने कहा…

इस तरह से उन्होंने अपने पिता और लोगों को भी इस्लाम का पैग़ाम सुनाया और मुसलमान बन जाने की सलाह दी
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जरा अपनी ही बातो पर गौर फरमैयेगा सलीम साहब. एक इश्वर को मानने के लिए. मुस्लमान होना जरुरी नहीं है. सभी धर्म एक ही इश्वर को मानते हैं.
पर एकमात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो कण-कण में इश्वर को देखता है. हम तो आप में भी इश्वर को देखते हैं. बस इन्सान शैतानी हरकत न करे. मूर्ति भगवान नहीं होती. हा मूर्ति में भगवान हो सकता हैं. और यही विश्वास है जो हिन्दू मूर्ति पूजा करता है. हम तो सबकी पूजा करते हैं जहा पर भी हमें इश्वर की अनुभूति होती है.
अभी मैं आपकी फोटो दिखाकर कहू की यह कौन है तो लोग कहेंगे यह सलीम है. क्यों मुस्लमान भी तो उसे सलीम ही कहेगा न, कागज़ तो नहीं..जबकि है वह कागज़ का ही टुकड़ा. पर उसमे आपका अक्श झलकता है. आप ताजिया उठाते है यदि मैं उसे तोड़ दू तो आप यही कहेंगे की कुछ लकडिया कागज और अन्य सामान तोड़ दिया नहीं आप खून खराबे पर उतारू हो जायेंगे, .. कहेंगे की मेरे पैगम्बर के नवासे की ताजिया तोड़ दी.. आप यह एहसास करते है की उसमे कोई है जबकि वह सिर्फ आपकी श्रद्धा और विश्वास रहता है.
क्यों यदि मैं कब्रिस्तान पर जाकर किसी की कब्र पर पेशाब कर दू तो आप क्या कहेंगे. वहा तो मिटटी और कुछ पत्थर के टुकड़े ही रहते है. पर आपका विश्वास भी रहता है जो आपको आक्रोशित करेगा.
माफ़ कीजियेगा हमें ऐसी बातें नहीं कहने चाहिए. क्योंकि हम हिन्दू है, हम तो मस्जिदों में भी अपने भगवान को देखकर सर नवाते है. मजारो पर सर नवाते है. क्योंकि वहा भी मुझे अपना रब दीखता है. मुस्लमान बड़ी आसानी से मूर्ति तोड़ने की बात करता है. आखिर क्यों.,?
हम एक ही जगह पैदा हुए, एक ही इश्वर को मानते हैं. आपने सही कहा हमारी परम्पराए भी मिलती है. पर एक इश्वर को मानने के लिए मुस्लमान होना जरुरी नहीं है.
हमें गर्व है की हम हिन्दू है. क्योंकि हमारे मुहल्ले में जब ताजिया निकलता है तो हम भी शामिल होते है. हम मुसलमानों की इज्ज़त करते है... आप के मुहल्ले की तरह दहशत नहीं फैलाते जहा हम दीपावली पर दीप नहीं जला सकते. होली में रंग लगाते हुए डर लगता है.
क्या होगा जब सब मुस्लमान हो जायेंगे.. जिस दिन ऐसा हुआ पूरी पृथ्वी पर क़यामत आ जाएगी.. देख लीजिये मुस्लिम देशो का क्या हाल है. लड़ना और लडाना मुसलमानों की फितरत है और यह नहीं बदल सकती.
आपका लेख जानकारी भरा है इसके लिए आभार... मेरी बातों से आपको कष्ट पहुंचा हो तो उसके लिए क्षमा क्योंकि हम हिन्दू है और किसी का दिल दुखते है तो दर्द हमें भी होता है. भले ही आप मुस्लमान हो गए आखिर है तो हमारे भाई ही.

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