रविवार, 4 दिसंबर 2011

पुत्र ......प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (क्रमश:)- ..गीत 2-..पुत्र ....डा श्याम गुप्त..........




           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | षष्ठ सुमनान्जलि में रस -श्रृंगार  के गीतों को पोस्ट किया गया था | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है द्वितीय गीत ...पुत्र ...

यादों के झूले में जब जब  ,
 मन पींगें भरता है |                              
मन में तेरे प्रिय बचपन का,      
वह स्वप्न उभरता है ||


कारों से खेला करना , वह-
बचपन , रोना- गाना |

ठंडा ठंडा कोल्ड-ड्रिंक सब,

गट गट गट पी जाना ||


तेज तेज वह ट्राई-साइकल ,

चारों और घुमाना |

स्कूटर की ही भाँति,घरर-घर ,

करके स्टार्ट कराना ||



यादों के मेले में, मन का-

वह अक्स उभरता है |

मन में तेरे प्रिय बचपन का,

वह स्वप्न उभरता है ||



वह मशीन खाना खाने की ,

यादें जो आती हैं |

खाना ठीक तरह से खाना ,

मम्मी समझाती हैं ||



पैसे वाले उस नेकर का,

इतिहास निखरता है |

मन में प्रिय ! तेरे बचपन का ,

वह अक्स उभरता है ||



दूर रह रहे हो, कैसे हो ,

मन भर भर आता है |

मम्मी का दिल तो उड़ उड़ कर ,

आने को करता है ||



बातें फोटो फोन से भला ,

दिल कब तक भरता है |

मन में प्रिय तेरे बचपन का ,

वह स्वप्न उभरता है ||


1 टिप्पणियाँ:

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar .badhai

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