शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

तकलीफ में जीना बहुत मुश्किल होता है, होता है ना ?


तकलीफ में जीना बहुत मुश्किल होता है,
होता है ना ?
और जब हम यह जानते हों कि
इस तकलीफ को हम शायद मिटा भी नहीं सकते
तब ??
अपने निजी जीवन की तकलीफों को तो
अक्सर मिटा ही लेते हैं हम
कभी आसानी से तो कभी कठिनाईयों से
मगर अपने आस-पास और दूर की तकलीफों का क्या करें
जिनके बारे में रोज पढते हैं और देखते हैं !
हमारे ही आसपास बहुत सारे लुटेरे रहते हैं
जो तरह-तरह से हमारे वतन को लूटते हैं
और बेरहम हैं वो इतने कि
खुद के पकडे जाने के भय से
किसी की ह्त्या भी कर देते हैं,या करवा देते हैं !!
हमारे आस-पास हमारे राज्य या देश का लूटा जाना
कोई कुछ पैसों-भर का खेल नहीं है दोस्तों
यह खेल है करोडों का,अरबों का,खरबों का
मगर यह खेल कुल इतना भर भी नहीं दोस्तों
यह प्रश्न का वतन की आबरू का
इसके माथे का शर्म से झुक जाने का
और उसके बावजूद भी हमारे सत्तानशीनों की बेहयाई का
और अपनी तमाम करतूतों के बावजूद के जा रही थेथरई का !!
ऐसा क्यूँ है दोस्तों कि हमारे वतन में जो भी,जहां भी
सत्ता में है,मद में चूर है
और मादरे-वतन की इज्ज़त का उसे कुछ होश ही नहीं है !!
ऐसा क्यूँ है दोस्तों कि यहाँ हर ताकतवर
कमजोरों पर जुल्म-ही-जुल्म ढाने को तत्पर है
और किसी भी मानवीयता का उसमें लेश मात्र भी नहीं है.....
इस तकलीफ के साथ जीना मुश्किल ही नहीं,असंभव है दोस्तों
और अपनी या हम सबकी इस तकलीफ का क्या करना है
आईये हम सब मिलकर सोचते हैं
और सोचकर कुछ कर गुजरते हैं क्योंकि
तकलीफ में जीना बहुत मुश्किल होता है,
होता है ना ?

2 टिप्पणियाँ:

virendra sharma ने कहा…

हाँ तकलीफ होती है ,बहुत तकलीफ होती है ,लेकिन परिवर्तन की बयार बहने लगी है ,अँधेरी रात धेहने लगी है .

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut badhiyaa prastuti.privartan hoga pr dhire-dhire.pr rah aasan nhi.

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