शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

माँ सरस्वती ( बाल गीत )---डा श्याम गुप्त

            आजकल जो बाल गीत लिखे जारहे हैं उनमें अधिकांश.. ..मैं बलशाली.... मैं सबसे अच्छा  बच्चा..कितने अच्छे पिल्ले...मैंढक...तितली..आदि के मनोरन्जक गीत ही लिखे जारहे हैं....बच्चों के लिये अपनी संस्क्रिति, सभ्यता , पुरा ग्यान के गीत भी यदि लिखे जायं तो उनमें प्रारम्भ से ही अपने संस्कार, शुचि संस्कारों को जानने की इच्छा उत्पन्न होगी.....यहां हम कुछ एसे गीतों को प्रस्तुत करेंगे जो बच्चों को अपने  देवी-देवताओं के रूप-भावों , प्रिय नेताओं,व अन्य ग्यानवर्धक तथ्यों व बातों के बारे में बतायेंगे......प्रस्तुत है ..बाल गीत ..माँ सरस्वती ...

माँ सरस्वती ( बाल गीत ) ----
                                   चित्र-साभार... 
                               
माँ सरस्वती की हे बच्चो !
क्यों हम सब पूजा करते हैं ?
क्या हैं माँ के हंस मोर सब ,
क्यों बैठी हैं श्वेत कमल पर ?

माँ के कर में वीणा क्यों है?
श्वेत वस्त्र क्यों धारण करतीं ?
माला पुस्तक हाथ लिए वे,
क्या हमको समझाती रहतीं ?

जल टिकता है कहाँ कमल पर,
श्वेत वस्त्र सा निर्मल मन हो |
बैर-भावना सभी बुराई ,
टिके न बच्चो! सुलझा मन हो ||

नाग विषैले खाया करता,
पर तन रंग विरंगा मनहर |
करें बुराई नष्ट सदा  जो-                                                         
बन जाता तन मन अति सुन्दर ||

वीणा-पुस्तक भाव है बच्चो!
मन में प्यारे भाव सजाओ|
पढो पुस्तकें ज्ञान बटोरो,
फिर सारे जग में फैलाओ ||

माला के मनकों के जैसा ,
रखो  एकता का तुम ध्यान |
अच्छा बुरा परखने के हित,
बनो हंस के रूप सामान ||

इसीलिये हम पूजा करते,                                               
दें माँ वाणी को सम्मान |
ज्ञान ज्योति फैले सब जग में,
माँ देती है सबको ज्ञान ||





6 टिप्पणियाँ:

शिव शंकर ने कहा…

बहुत सुंदर और सार्थक रचना .आभार

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

माँ की स्तुति के रूप में बालगीत बहुत सुंदर है..... आभार

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति गुप्ता जी .

हरीश सिंह ने कहा…

सुन्दर बालगीत, डॉ. गुप्ता जी आप कहा गायब हो जाते है. आप एक बार इस परिवार में अवश्य आया करिए...... भले ही कमेन्ट के रूप में.

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद,शिवशंकर,मिथिलेश व डा मोनिका जी...
-----सच ही है ये देव मूर्तियां, शास्त्र आदि यूंही नहीं है इन सबके मूल में आदर्श की प्रतिष्ठा सांकेतिक रूप में निहित है....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद , हरीश जी ...

"और भी काम होते हैं जमाने में ब्लोग के सिवा" ....कुछ दिन से आवश्यक कार्यवश बाहर होने से नेट पर नहीं था....

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