रविवार, 3 जुलाई 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--संयोग( क्रमश:)- गीत-5 ---डा श्याम गुप्त





7 टिप्पणियाँ:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

संयोग श्रृंगार का बहुत सुन्दर गीत....

प्रेम रस में सराबोर रचना ने मन प्रसन्न कर दिया ...

शिव शंकर ने कहा…

प्रिय, तुमने किया श्रृंगार ||

टूट गए दृढ़ता के बंधन हम कर बैठे प्यार |
तेरे तन की गर्मी से उठ आई बरखा बहार |
बगटुट मनुवा ऐसे दौड़े जैसे मस्त बयार |


गुप्ता जी ,बहुत सुन्दर गीत से हमे रुबरु कराये आपने इसके लिये आपका आभार ।

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद झंझट जी....आपकी गज़ल पढ़ी --सुन्दर व गीतमयी व नवीन भाव प्रस्तुति के लियी बधाई ...

--आभार...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद शिव शंकर जी....

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत .
सो गए परिणाम, लेकिन स्वप्न अब भी जग रहे

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद नागेश जी...

shyam gupta ने कहा…

हम त्रुटियों से अधिक सीखते हैं...अतः त्रुटियाँ( जो किसी को भी महसूस होती हैं) भी अवश्य इंगित करनी चाहिए ...इससे वार्तालाप के द्वार व ज्ञान के मार्ग खुलते हैं ....

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