शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

बिछे पथ पर नयन


 डा. आकुल
(1)
हैं उसी के हित बिछे पथ पर नयन , 
लौट कर जो फिर कभी आता नहीं .
(2)
तुम सलज गुलाब थीं , 
मृदु गंध बनकर उड़ गयीं . 
रह गए हैं शूल प्रतिपल , 
प्राण में चुभते हुए .

 डा. आकुल

7 टिप्पणियाँ:

ana ने कहा…

bahut achchha likha hai aapne.....ati sundar

shyam gupta ने कहा…

सुन्दर कविता व भाव....

---पर मुझे लगता है "सलज" शब्द हिन्दी में प्रयोग होता है क्या ?...वह सलज्ज होता है...

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

आदरणीय डा. श्याम गुप्ता जी , "सलज"(हि. वि. ) शब्द हिन्दी में प्रयोग होता है .इसका अर्थ है सम्पूर्ण , समूचा , पूरा .
और..... हिंदी में सलज्ज शब्द भी प्रयोग होता है... उसका अर्थ है ---जिसको लज्जा हो . (कृपया देखिए ---हिंदी शब्दकोश ; श्री गंगा पुस्तकालय , वाराणसी का प्रष्ट : ६३६ )


आपने गंभीरता पूर्वक अवलोकन किया , मैं आपके प्रति ह्रदय से आभारी हूँ .

http://abhinavanugrah.blogspot.com/

आशुतोष की कलम ने कहा…

सुन्दर कविता..विरह वेदना का आकर्षक का चित्रण

Kailash Sharma ने कहा…

आहूत मर्मस्पर्शी रचना...

shyam gupta ने कहा…

--सम्पूर्ण , समूचा , पूरा ---यह अर्थ तो कहीं नहीं मिला हां...
---हिन्दी-हिन्दी शब्द्कोश व भारतीय साहित्य संग्रह के अनुसार...

------सलज = पुं० [सं० सल=जल] पहाड़ी बरफ का पानी। वि० सलज्ज। लजीला।
--यथा..

--मुझको सलज लोचन तुम्हारे

-- सलज गुलाबी गालों वाली / सुमित्रानंदन पंत ...

-- वस्तुतः .. सलज गुलाब...अधिक जम नहीं रहा था ...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

वाकई बहुत बढिया

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