मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य-- गीत---दीपक राग.(-सुमनान्जलि-४.).--डा श्याम गुप्त




  प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा  --     रचयिता---डा श्याम गुप्त  

  ------ प्रेम के विभिन्न  भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं  तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत  चतुर्थ -सुमनांजलि- प्रकृति - में प्रकृति में उपस्थित प्रेम के विविध उपादानों के बारे में,  नौ विभिन्न अतुकान्त गीतों द्वारा प्रस्तुत किया गया है जो हैं--भ्रमर गीत, दीपक-राग, चन्दा-चकोर, मयूर-न्रित्य, कुमुदिनी, सरिता-संगीत, चातक-विरहा, वीणा-सारंग व शुक-सारिका... । प्रस्तुत है  द्वितीय गीत--दीपक राग... 

पतंगा परवाना दीवाना ,
क्या प्रदर्शित करता है, तुम्हारा -
यूं जल जाना ?
दीपक कहाँ -
प्रीति की रीति को पहचानता है !
क्या व्यर्थ नहीं है ,
तुम्हारा यूं छला जाना ?

अर्ध मूर्छित परवाना तडफडाया ,
बेखुदी में यूं बड़बड़ाया ;
अरे दुनिया वालो -
यही तो सच्चा प्यार है,
प्यार के बिना तो जीना बेकार है |
शमा, बुलाये तो सही,
मुस्कुराए तो सही,
परवाना तो एक नज़र पर -
मिटने को तैयार है |
इसीलिये अमर-प्रेम पर,
शमा-परवाना का अधिकार है ||

दीपशिखा झिलमिलाई ,
लहराकर  खिल खिलाई |
दुनिया वाले व्यर्थ शंका करते हैं ,
प्यार करने वाले-
जलने से कहाँ डरते हैं |
पतंगों के प्यार में  ही तो हम -
तिल तिल कर जलते हैं |

वे मर मर कर जीते हैं ,
जल जल कर मरते हैं |
हम तो पिघल पिघल  कर ,
आखिरी सांस तक,
आंसू बहाते हैं |

पतंगे की किस्मत में-
ये पल कहाँ आते हैं ?    ----क्रमश: तृतीय गीत- चन्दा-चकोर ...


8 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

दीपशिखा झिलमिलाई ,
लहराकर खिल खिलाई |
दुनिया वाले व्यर्थ शंका करते हैं ,
प्यार करने वाले-
जलने से कहाँ डरते हैं |
पतंगों के प्यार में ही तो हम -
तिल तिल कर जलते हैं
bahut sundar prastuti.

हरीश सिंह ने कहा…

शमा, बुलाये तो सही,
मुस्कुराए तो सही,
परवाना तो एक नज़र पर -
मिटने को तैयार है |
इसीलिये अमर-प्रेम पर,
शमा-परवाना का अधिकार है ||
bahut sundar

आशुतोष की कलम ने कहा…

mujhe lagta hai wo patenge ka samparpan nahi mrigmarichika hoti hai..
samarpan karne ke baad jalne ka sawal hi nahi dono ke astitva ekakar ho jaenge..


sundar rachna ....

shyam gupta ने कहा…

---सही सोचा व कहा आशुतोष--प्रेम म्रगमरीचिका ही तो है प्रेमी आखिर तक नहीं जान पाते कि वो छले जायगे या उ्नका प्रेम परवान चढेगा---पर यह जानकर भी उसमें कूद जाना ही सच्चा प्रेम कहा जाता है---

---सही है----समर्पण करने से पहले ही तो दोनों जलते हैं..यह प्रेम है ...समर्पण के बाद तो अस्तित्व ही नहीं रहता...यह परिणति है....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद शालिनी जी व हरीश जी....

--प्रेम कौ पन्थ कराल महा,
तरवारि की धारि पै धावनो है....

Anita ने कहा…

सच्चे प्रेम में मिट जाना ही होता है, सुंदर भावपूर्ण कविता !

हल्ला बोल ने कहा…

समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे

देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल

गंगाधर ने कहा…

aabhar, sundar abhivyakti

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