शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

सरकार ने दिखाया गरीबों को ठेंगा

मंगल यादव
हरियाणा न्यूज

वाह रे! मेरी देष की सरकार!
साहब 5 रूपये 50 पैसे में पानी एक बोतल भी खरीद में नही पड़ती। अनाज कैसे मिलेगा। 32 रूपये के भोजन में एक टाइम पेट भरना मुषिकल है। किसने ये रिपोर्ट बनार्इ, क्या वह धरती पर रहता है या नहीं। सरकार ने तो महंगार्इ की सारी हदें पार कर दी हैं। रोज-रोज सभी चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। ये उक्त बातें नोएडा में मोची का काम करने वाले एक षख्य की हैं।



सरकार ने पहले महंगार्इ बढ़ार्इ फिर गरीबों का क्या खूब भददा मजाक उड़ाया! ऐसी सरकार जिसके नेता खुद को अर्थषास्त्री मानते हैंं। खुद सोचें आप क्या प्रतिदिन के हिसाब से अनाज 5.50, दाल 1.02, दूध 2.33 खाध तेल, फल 0.44, चीनी 0.70, नमक और मसाले 0.78 पैसे, रसोर्इ गैस 3.75 पैसे, मासिक खर्च मकान किराया 49.10 पैसे, षिक्षा 29.60 पैसे और जूते-चप्पल 9.60 पैसे से आप अपना गुजर-बसर कर रहें हैं। यह रहे सरकार के आंकडे जिन्हें आप हर महीने खर्च करते हो

आप सोचिए क्या 49.10 पैसे में कोर्इ मकान आपको किराये पर मिलेगा। 9.60 पैसे में क्या आपको कोर्इ जूता-चप्पल मिलेगी। क्या आपकी पढ़ार्इ की फीस 29.60 पैसे है। जी नहीं, अ्रगर आप उक्त मूल्य की कोर्इ भी चीज खरीदने जायेंगे तो आपको दुकानदार डंडे लेकर भगायेगा। फिर क्यों सरकार गरीबों की उपहास कर रही है।क्या सरकार चलाने वाले लोग किसी दूसरे लोक से आये हैं। अगर हां, तो हमें ऐसी सरकार नहीं चाहिए। जो हमारी मजाक के साथ-साथ भावनाओं से खेले।

आप कल्पना कर सकते हैं, एक रिक्क्षा चलाने वाला आदमी, एक मोची का काम करने वाला आदमी, सब्जी बेचने वाला आदमी, हम आप जो दैनिक मजदूरी करते हैं। क्या इस मजदूरी से और इतने पैसे में अपना घर चला सकते हैं। सरकार को मध्यम वर्ग को नहीं सही, कम से कम गरीबों का तो ख्याल रखना चाहिए आज देष में न जाने कितने लोग भूखे पेट सोते हैं, रहने के लिए घर नहीं और फुटपाथ पर जीवन बसर करने को मजबूर हैं। क्या उनका मजाक इस सरकार ने उड़ाया हैं।

आज भी देष की 70 फीसदी आबादी गांवों में अपना जीवन बसर करती हैं। उन गांव वालों को ख्याल तो सरकार को करना चाहिए था। क्या हमारे देष के राजनेता पूरे देषवासियों को अपनी तरह समझ रहे हैं सरकार की इस रिपोर्ट से तो यही साफ होता है कि देष में गरीबी तो है ही नहीं, जब आप किसी रेड़ी पर खाना खाने जाते है तो 15 रूप्ये की सब्जी और 2 रूपये की रोटी मिलती है उससे आप अंदाजा लगाइये की एक वक्त का खाना ही लगभग 25 से 30 रूपये में खाया जाता हैं। तो क्या यह सरकारी आंकडे़ बाकर्इ देष के लोगों के साथ धोखा हैं।

1 टिप्पणियाँ:

फहद ने कहा…

हां इस सरकार को और योजना आयोग को लगता हैं कि 32 रु गुजारा के लिए काफी हैं तो इनकी सैलरी भी उसी हिसाब से कयों नही तय होती हैं।

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