बुधवार, 13 अप्रैल 2011

परिवर्तन की लहर ...!!

जमाने में अब एक लहर रही है ,
सुनहरे रंगों भरी इक सहर रही है ,

कोई देखे ना देखे इसके ज़लाल को ,
बन के जलजला और कहर रही है ,

जो समझते है इसे सिर्फ पत्तों का धुवां ,
तपिश उसकी सबको अभी से नजर रही है ,

हिल जाएँगी उनकी भी इमानो की चूलें ,
अब तक जो वक़्त से बे-असर रही हैं ,

वो बे-जुबां भी अब बोलने लगे हैं ,ज़नाब ,
'कमलेश'अब जंतर-मन्तर से , सही खबर रही है

8 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

sundar abhivyakti, abhar.

Vaanbhatt ने कहा…

jantar-mantar se khabar aa rahi hai...per bakaul sameer ji saanp doorben liye baithe hain...

Satish Saxena ने कहा…

आभार इन खूबसूरत लाइनों को पढवाने के लिए ! आपको शुभकामनायें !!

आकाश सिंह ने कहा…

बदलाव तो आनी ही है | जब पाप का घड़ा भर जाता है तो फूटने में भी देर नही होता |
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सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद |
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एक अच्छी कविता के लिए मेरे ब्लॉग पे आप आमंत्रित हैं |
www.akashsingh307.blogspot.com

shyam gupta ने कहा…

लहर तो है....अब देखिये लहर कहां तक पहुंच पाती है..

Anita ने कहा…

कविता अच्छी लगी, सार्थक संदेश देती है !

विभूति" ने कहा…

bhut hi khubsurat panktiya hai...

Prabhat PARWANA ने कहा…

bahut sahi bhai bahut sahi kaha, aasha aap mere blog apr bhi najar daalenge and commment bhi....http://prabhat-wwwprabhatkumarbhardwaj.blogspot.com/

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