सरहदों के मौसम एक से
बस अलग था तो
मार दिया जाना पंछियों का
जो उड़कर उस पार हो लिए
रंगनी थी दिवार
कि जब तक खून लाल ना हो
जमीन भींग ना जाए
और हम सोते रहें
देर रात जश्न मनाते
शराब पी बे- सूद
अपनी औरतों को मारते
हम अलग नहीं
चौराहे
अलग रंग के
अलग शहरों के
घटना एक सी
रेप कर दिया
चाकू मार दिया
हम एक हैं अलग नहीं
ये खून हरा है
खून बहेगा तबतक
जबतक वो लाल नहीं होता
मरेगी औरतें, मारेगा आदमी
होंगे रेप
चलेंगे चाकू
आदमी सोच रहा
हम हरे खून वाले
जब बहेंगे
तब बहेगा जहर
तो खून लाल कर दो देवता
या पानी बना बहा दो सब
आ जाने दो प्रलय
अब जलमग्न हो जाने पर ही धूल पाएगी दुनिया
हम हो पायेंगे इंसान
तब ये खून लाल होगा
Deepti Sharma
6 टिप्पणियाँ:
संकीर्ण मानसिकता संसार में नासूर बनकर सामने आती हैं तस्वीर भयावह बन जाती हैं
इंसान इंसान बना रहे तभी तक ठीक वर्ना शैतान बना तो फिर उसके इंसान बनने की उम्मीद नहीं रह पाती
बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
मैं भी इस मंच से जुड़ना चाहता हूँ।
अवश्य
bhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.
Sach hai
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
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