शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

हादसों पर बनी शानदार फिल्मे .

आपदा को केंद्र बनाकर कई फिल्मे बनी है .ख्यात हालीवुड प्रोडूसर माइक मेदयोव ने घोषणा की है कि उन्होंने लातिन अमरीकी देश चिली में गत वर्ष हुए खान हादसे ( जिसमे 33 खनिक 69 दिन के बचाव अभियान के बाद दुर्घटना ग्रस्त खान से सकुशल निकाले गए थे )पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए है . फिल्म उन भुक्तभोगी श्रमिको के अनुभव पर आधारित होगी . विदित हो कि माइक मेदयोव अपनी अन्य फिल्मों के अलावा ' ब्लेक स्वान ' और 'शटरआइलैंड ' के लिए प्रसिद्धी पा चुके है . उन्होंने पटकथा लिखने का जिम्मा सोंपा है पुएरटो रिको के ओस्कर विजेता जोस रिवेरा को .
विध्वंस या कहे आपदा की श्रेणी में आने वाली पहली फिल्म भी अमेरिका से ही थी .1974 में होलीवुड के दो बड़े स्टूडियो '20th सेंचुरी फोक्स और वार्नर ब्रोदार्स ने मिलकर बड़े बजट की फिल्म ' द टावरिंग इन्फेर्नो ' बनाई थी . 138 मंजिला बिल्डिंग के उदघाटन की पार्टी में एक छोटे से शोर्ट सर्किट से आग लगती है और सारे मेहमान 81 वे माले पर फंस जाते है . सन फ्रांसिस्को के दमकल कर्मी अपनी जान पर खेल कर कुछ लोगों को बचाने में कामयाब होते है . इस फिल्म ने भवन निर्माण के दोरान सुरक्षा नियमों की अनदेखी को उठाया था और जनता को जागरूक करने में अहम् भूमिका अदा की थी . स्वाभाविक है , फिल्म ने शानदार कमाई की थी और ढेर सारे पुरूस्कार भी बटोरे थे .
द टावरिंग इन्फर्नो की सफलता ने भारत में यश चोपड़ा को प्रेरित किया था . यश राज फिल्म हमेशा से ही 'प्रेम' को केंद्र में रखकर कहानिया बुनते रहे थे . उनके इस निर्णय ने फिल्म इंडस्ट्री को चौंका दिया था .सलीम जावेद को कहानी लिखने का भार सौंपा गया और इस जोड़ी ने देश की भीषण त्रासदी चसनाला खान दुर्घटना जिसमे 372 खनिक कालकलवित हुए थे , को विषय बनाते हुए ' काला पत्थर '(1979 ) की पटकथा लिखी थी . बेहतर निर्देशन , यादगार संगीत और चुस्त पटकथा के बावजूद फिल्म को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी . अमिताभ बच्चन के करियर की यह एक मात्र फिल्म थी जिसमे वे एक बार भी नहीं मुस्कुराए थे .इस फिल्म के एक साल बाद बी . आर चोपड़ा 'द बर्निंग ट्रेन ' (1980 )लेकर आये . यह फिल्म उस समय बनी ' बुलेट ट्रेन' पर आधारित थी . यंहा प्रकृति खलनायक न होकर मनुष्य की इर्ष्या को हादसे का कारण बनाया गया था .दिल्ली से बम्बई के बीच चलने वाली ट्रेन को उदघाटन के दिन ही खलनायक के षड्यंत्र का शिकार होना पड़ता है. आग से घिरी बेकाबू ट्रेन को रोकने के प्रयास उस समय के हिसाब से अदभूत थे .चोटी के सितारों से सजी होने के बावजूद फिल्म दर्शकों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी थी. परन्तु राहुल देव बर्मन का सुरीला संगीत आज तक ताजा है .
इन दोनों ही फिल्मों के साथ एक रोचक तथ्य भी जुड़ा हुआ है. चूँकि उस समय दोनों ही फिल्मे बमुश्किल अपनी लागत निकल पाई थी , परन्तु बरसों बाद जब टेलीविजन राईट बिकने की शुरुआत हुई तो दोनों ही फिल्मो के राईट उनकी मूल लागत से कंही ज्यादा में बिके थे. दोनों ही फिल्मे एक दशक बाद ' हिट' श्रेणी में आई थी



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