मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है....शायद आप लोगों से उसका उत्तर मिल जाए...। भारत में मंत्री ज्ञान और वरिष्ठता के आधार पर बनाए जाते हैं या फिर उनकी पहुंच पार्टी के आला नेताओं तक होती है जो उनकी चाटुकारिता करने पर ईनाम में दिया जाता है...। अगर मंत्री विद्धान और अनुभवी बनाए जाते है तो मंत्रियों के बोल हमेशा विवादों में क्यों रहते हैं.. अक्सर मंत्री काम से कम बेतुके बोल से ज्यादा सुर्खियों में रहते हैं..। यदि चाटुकारिता करने वाले अयोग्य नेताओं को मंत्री बनाया जाता है तो आखिर क्यो.. ? क्या मंत्रालय किसी पार्टी की घर की राजनीति विरासत है जिसे हर कोई इस्तेमाल करे...। क्या ये देश की जनता के साथ धोखा नही है..। अगर धोखा है तो ऐसे लोगों को न्यायलय के कटघरे में क्यों नही खड़ा किया जाता है...। यूपी के दो बड़े नेताओं बेनी प्रसाद वर्मा और आजम खां की ही बात कर लेते हैं...। एक उत्तर प्रदेश सरकार में तो दूसरे केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं..। ये नेता सरकार में महत्तवपूर्ण स्थान रखने के साथ-साथ मंत्री होने के नाते जनता के प्रति जवाबदेह भी हैं...। अगर इन नेताओं के बोल सुनेगें आप तो बस यूं ही कह उठेगे कि ये तो किसी अनपढ़ की भाषा है..लेकिन ये सचमुच अनपढ़ नहीं हैं इन नेताओं की शिक्षा में योग्यता भी ठीक-ठाक है..। पहले आपको बेनी बाबू के बोल की बात करते हैं. जो केंद्र की यूपीए सरकार में इस्पात मंत्री हैं। बेनी प्रसाद वैसे आये दिन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं..। अपने पुराने साथी मुलायम सिंह की आलोचना करते समय ये भूल कि वे एक मंत्री हैं...। मंत्री के जुबान से असंसदीय भाषा अच्छी नहीं लगती..। बेनी प्रसाद वर्मा ने अभी हाल में ही मुलायम सिंह झाड़ू लगाने वाले से बदतर कहा ..बेनी ने मुलायम को कहा कि वे प्रधानमंत्री आवास की झाड़ू लगाने लायक भी नहीं है उन्हें प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न नही देखना चाहिए..। बेनी यहीं तक नही रुके उन्होंने मुलायम की पार्टी सपा तक को झूठी तक कह डाला..। बेनी ने कहा कि समाजवादी पार्टी झूठ और धोखे पर आधारित पार्टी है और इसे कांग्रेस ही खत्म करेगी..। यानी बेनी ने सपा के सभी नेताओं को झूठा और धोखेबाज कह डाला..। यही बेनी प्रसाद की गिनती 2007 में सपा छोड़ने से पहले मुलायम सिंह के करीबियों में की जाती थी..। इसके पहले भी बेनी प्रसाद कई दफा मुलायम को अनेकों प्रकार की अशोभनीय टिप्पड़ियों से नवाज चुके हैं..। मेरे कहने का मतलब साफ है बेनी प्रसाद को मंत्री होने के नाते कम से कम अमर्यादित भाषा बोलने से बचना चाहिए..। बेनी यदि शिक्षित योग्य नेता हैं तो वे ऐसी बातें क्यों बोलते हैं.. ऐसे बेतुके बोल से कांग्रेस खुद को अलग रखकर जनता से पल्ला नही झाड़ सकती..। अब आपको बताते हैं समाजवादी पार्टी के फायर ब्रांड नेता आजम खान के बेतुके बोल के बारे में भी..। यूपी सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले आजम खान भी बेनी से कम नही हैं..। पहली जुलाई को यूपी के कैबिनेट मंत्री आजम खान ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की तुलना लंगूर से की..। आजम इसके पहले भी कई नेताओं पर विवादित टिप्पणी कर चुके हैं..। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ 2007 में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने और नफरत फैलाने वाला भाषण देने को लेकर आजम खान पर केस भी दर्ज है। आजम ताजमहल पर भी विवादित भाषा का इस्तेमाल कर चुके हैं... उनके मुताबिक ताजमहल बना कर शाहजहां ने फिजूलखर्ची कर दी थी। अखिलेश यादव के इस तेज तर्रार मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि अगर ताजमहल को गिराना हो तो सबसे आगे चलने को तैयार हैं। ऐसे बड़ बोले जनप्रतिनिधियों से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। नेताओं के ऐसे बयानों से जनता में क्या संदेश जाएगा ..सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे तो ऐसा बेतुका बयान देने वालों में सिर्फ आजम खान और बेनी प्रसाद वर्मा ही नही है.. ऐसी टिप्पड़ियां करने वाले नेताओं और मंत्रियों की लंबी लिस्ट हैं..। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी कुछ ऐसी ही टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं..। सुशील कुमार शिंदे मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी और आरएसएस को हिंदू आतंकवादी तक कह डाला। आरएसएस की शाखा में जाने वालों को आतंकी प्रशिक्षण तक बात कह डाली है शिंदे ने। गृहमंत्री की चाटुकारिता करते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री पल्लम राजू तो बकायदे सुशील कुमार शिंदे के बेतुके बोल का समर्थन भी कर चुके हैं...। कांग्रेस के वरिष्ठ दिग्विजय सिंह की बेबाक टिप्पणी की बात ही निराली है..। जब किसी मीडिया वाले के पास कोई न्यूज मशाला न हो तो लोग दिग्गी की राह पकड़ते हैं..। दिग्विजय सिंह तो विवादित बोल के लिए ही जाने जाते हैं..। उन्हें तो कांग्रेस पार्टी का भी परोक्ष समर्थन भी प्राप्त है.। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस से ना जाने कब अलग-थलग पड़ चुके होते दिग्विजय सिंह..। महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की बात तो पूछिए मत ..नफरत की राजनीति करने वाले नेता महाराष्ट्र के सीएम बनने की ख्वाब भी देख रहे हैं...। मुझे अभी तक ये समझ में नही आया ऐसा नेता चुनाव कैसे जीत जाते हैं... । बेतुके बोलने वाले और भी नेता हैं जो अलग-अलग पार्टियों और राज्यों में हैं..। राजनीति में लोग एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते रहते हैं लेकिन कोई मंत्री या नेता अपनी मर्यादा को भूल जाए..बड़ी शर्मनाक बात है। देश की सेवा करने लिए आइएएस और पीसीएस या कोई भी सरकारी या गैरसरकारी नौकरी के लिए लोगों की शैक्षिक योग्यताएं देखी जाती हैं..। इंटरव्यू में बोलने-चालने के ढंग को जांचा जाता है..। और तो और यदि कोई जानवर खरीदे तो अच्छी तरह उसके गुण-अवगुण देखे जाते हैं । यह देश का अभाग्य ही है जब हम देश की सत्ता को नेताओं के हाथ में सौंपते हैं तो कुछ भी नेताओं का नहीं देखते जो सही मायने में देखना चाहिए..। चुनाव के दौरान लोग क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद और जाति-धर्म को देखकर वोट दे देते हैं..। फिर यही चुने हुए नेताओं की गलत हरकतों की वजह से खुद को शर्मशार होना पड़ता है..।
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