बड़े शहरो में रहने वाले लोग ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों को उतनी अहमियत नहीं देते देखा जाय तो यही कहना श्रेयस्कर होगा की ग्रामीण अंचल के पत्रकारों को बड़े शहरों में देखने का नजरिया कुछ अलग होता है। पर देखा जाय तो ग्रामीण अंचल के पत्रकार एक अभाब ग्रस्त जीवन जीने के साथ जो पत्रकारिता करते है। वह निश्चय ही प्रशंसनीय है। यह सौ फीसदी सत्य है की देश की 80 प्रतिशत आबादी गाव में बसती है। पर गावो की समस्याओ को न तो समाचार पत्र में और न ही न्यूज़ चैनल में विशेस जगह दी जाती है। सारी खबरे महानगरो पर ही आश्रित रहती है।
एक नहीं कई मामले मैंने देखे है। किसी समाचार पत्र में [नाम नहीं लूँगा] शुक्रवार को एक खबर छपी थी की दो मुस्लिम है गुजरात के जो मोदी को ही वोट देंगे। मैं सोचा शीर्षक के बाद कुछ विशेष मसाला होगा। पर बहुत ही सामान्य खबर थी और उसे मुख्य पेज पर स्थान दिया गया था। मैं सोचता रहा आखिर क्यों ..?
चैनलो पर छोटी छोटी घटनाये यदि महानगरो की है तो प्रमुखता से दिखाई जाती है या छप जाती है। पर उससे बड़ी घटना या खबर छोटे नगरो या ग्रामीण क्षेत्रो में घटती हैं तो वह चैनल या अख़बार के लिए मायने नहीं रखता है। क्योंकि वह खबर लिखने वाला पत्रकार एक छोटे से कसबे का है। आखिर बड़े पत्रकारों को यह कैसे हजम हो की छोटी जगह का पत्रकार मुख्य पेज पर आये। एक तो कम संसाधन में मेहनत का काम करे दुसरे उसके हौसले को भी नहीं देखा जाता। शोषण की बात उठाने वाला कितना शोषित खुद होता है इसकी कल्पना न तो कोई करता है और न ही उसके तकलीफों को महसूस करता है।
मिथिलेश द्विवेदी और डिंपल मिश्र
आज दिल कह रहा था कुछ लिखने का जो सच हो। बिना किसी लाग लपेट के वह भी डंके की चोट पर। हो सकता है किसी को कुछ बुरा लगे पर क्या करे अपनी आदत ही बेलगाम है।
डिंपल मिश्र एक बेसहारा महिला जो पति की बेवफाई का शिकार हुयी। अपनी बच्ची को लेकर किसी तरह जीवन गुजर बसर करती रही। पिता ने मरने से पहले एक छत सर पर छोड़ दी थी। अपनी बच्ची को लेकर दर दर की ठोकर खा रही महिला लोंगो से गुहार लगा रही थी। उसे सबसे बड़ा डर यह था की जब उसकी बेटी बड़ी होगी तो उससे पूछेगी की उसका बाप कौन है वह क्या बताएगी। उसे यह चिंता नहीं थी की उसका पेट कैसे भरेगा। उसे सिर्फ यह चिंता थी की उसका सम्मान कैसे रहेगा। वह पिछले चार महीने से लोंगो को अपना दुखड़ा सुना रही थी। पर कोई सुनने को तैयार नहीं। लोग भरोषा देते थे की वे उनके साथ है पर कैसे साथ हैं यह कोई बताने को तैयार नहीं था। वह मजाक बन गयी थी।
एक दो बार खबरे भी छपी पर फार्मेल्टी के तौर पर।
मिथिलेश द्विवेदी। भदोही के ऐसे पत्रकार का नाम जिसे कोई डर या लालच विचलित नहीं कर सकता। उसके लिए पत्रकारिता पूजा है। समर्पण है। मेरा सौभाग्य है की दैनिक जागरण में लगभग तीन साल मिथिलेश जी के सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। मैं भले ही अख़बार से अलग हो गया पर उनसे मेरा जुडाव हमेशा बना रहा। वे मुझे बड़ा भाई मानते रहे और मैं उन्हें अपना गुरु मानता रहा। कुछ ऐसा ही प्रेम है हम दोनों के बीच।
डिंपल मिश्र की बार बार गुहार सुनकर वे विचलित हो गए और उसके हौसले को मजबूत किये जब वह आने को तैयार हुयी तो उन्होंने सहयोग का भरोषा जगाया। मुझे आश्चर्य होता है की दैनिक जागरण के सम्मानित संपादक ने उनका साथ दिया और वे लग गए मिसन में। अपनी बेटी को गोद में लेकर म्हणत मजदूरी करने वाली एक लड़की को उल्हासनगर के लोंगो ने चन्दा देकर भदोही भेज दिया और जिस भदोही के एक युवक ने उसे धोखा दिया था उसी भदोही के एक पत्रकार ने उसे सम्मान दिला दिया। मिथिलेश के समर्पण और पत्रकारिता के के प्रति आश्था ने डिंपल के साथ हजारो हाथ कर दिए। ऐसे हालत पैदा हुए की सभी मीडिया को डिंपल के साथ खड़ा होना पड़ा। मिथलेश ने यह दिखा दिया की गाव में रहने वालो पत्रकारों में प्रतिभा की कमी नहीं है। कमी सिर्फ यह है की वे चाटुकार नहीं है । उन्हें मठाधीशों के चरण वंदन करने नहीं आता है। वे सम्मान के भूखे है। यह गाव में रहने वाले एक पत्रकार की निष्ठां ही थी की मुंबई से लेकर पूरे देश की मीडिया इस मुद्दे पर एकजुट दिखाई दी। जिस संस्थान ने मिथिलेश के साथ हमेशा अन्याय किया है। उसी ने उन्हें आत्मिक शांति की अनुभूति भी करायी। जो गरीब अबला आत्महत्या की बात करती थी आज उसका मनोबल मजबूत हुआ है। वह सम्मान की भूखी थी और उसे सम्मान मिल गया। अब आचल नहीं पूछेगी की उसका बाप कौन है। और यह सब हुआ सिर्फ और सिर्फ डिंपल के विश्वास और डिंपल के मुह्बोले भाई मिथिलेश द्विवेदी के कारण। आज यदि भदोही की मीडिया का नाम पूरे देश में उछला है तो उसका श्रेय सिर्फ मिथिलेश जी को जाता है। और दुसरे उनके सहयोगियों के समर्थन का भी जो उनके साथ कंधे से कन्धा मिलकर खड़े रहे।
एक नहीं कई मामले मैंने देखे है। किसी समाचार पत्र में [नाम नहीं लूँगा] शुक्रवार को एक खबर छपी थी की दो मुस्लिम है गुजरात के जो मोदी को ही वोट देंगे। मैं सोचा शीर्षक के बाद कुछ विशेष मसाला होगा। पर बहुत ही सामान्य खबर थी और उसे मुख्य पेज पर स्थान दिया गया था। मैं सोचता रहा आखिर क्यों ..?
चैनलो पर छोटी छोटी घटनाये यदि महानगरो की है तो प्रमुखता से दिखाई जाती है या छप जाती है। पर उससे बड़ी घटना या खबर छोटे नगरो या ग्रामीण क्षेत्रो में घटती हैं तो वह चैनल या अख़बार के लिए मायने नहीं रखता है। क्योंकि वह खबर लिखने वाला पत्रकार एक छोटे से कसबे का है। आखिर बड़े पत्रकारों को यह कैसे हजम हो की छोटी जगह का पत्रकार मुख्य पेज पर आये। एक तो कम संसाधन में मेहनत का काम करे दुसरे उसके हौसले को भी नहीं देखा जाता। शोषण की बात उठाने वाला कितना शोषित खुद होता है इसकी कल्पना न तो कोई करता है और न ही उसके तकलीफों को महसूस करता है।
मिथिलेश द्विवेदी और डिंपल मिश्र
आज दिल कह रहा था कुछ लिखने का जो सच हो। बिना किसी लाग लपेट के वह भी डंके की चोट पर। हो सकता है किसी को कुछ बुरा लगे पर क्या करे अपनी आदत ही बेलगाम है।
डिंपल मिश्र एक बेसहारा महिला जो पति की बेवफाई का शिकार हुयी। अपनी बच्ची को लेकर किसी तरह जीवन गुजर बसर करती रही। पिता ने मरने से पहले एक छत सर पर छोड़ दी थी। अपनी बच्ची को लेकर दर दर की ठोकर खा रही महिला लोंगो से गुहार लगा रही थी। उसे सबसे बड़ा डर यह था की जब उसकी बेटी बड़ी होगी तो उससे पूछेगी की उसका बाप कौन है वह क्या बताएगी। उसे यह चिंता नहीं थी की उसका पेट कैसे भरेगा। उसे सिर्फ यह चिंता थी की उसका सम्मान कैसे रहेगा। वह पिछले चार महीने से लोंगो को अपना दुखड़ा सुना रही थी। पर कोई सुनने को तैयार नहीं। लोग भरोषा देते थे की वे उनके साथ है पर कैसे साथ हैं यह कोई बताने को तैयार नहीं था। वह मजाक बन गयी थी।
एक दो बार खबरे भी छपी पर फार्मेल्टी के तौर पर।
मिथिलेश द्विवेदी। भदोही के ऐसे पत्रकार का नाम जिसे कोई डर या लालच विचलित नहीं कर सकता। उसके लिए पत्रकारिता पूजा है। समर्पण है। मेरा सौभाग्य है की दैनिक जागरण में लगभग तीन साल मिथिलेश जी के सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। मैं भले ही अख़बार से अलग हो गया पर उनसे मेरा जुडाव हमेशा बना रहा। वे मुझे बड़ा भाई मानते रहे और मैं उन्हें अपना गुरु मानता रहा। कुछ ऐसा ही प्रेम है हम दोनों के बीच।
डिंपल मिश्र की बार बार गुहार सुनकर वे विचलित हो गए और उसके हौसले को मजबूत किये जब वह आने को तैयार हुयी तो उन्होंने सहयोग का भरोषा जगाया। मुझे आश्चर्य होता है की दैनिक जागरण के सम्मानित संपादक ने उनका साथ दिया और वे लग गए मिसन में। अपनी बेटी को गोद में लेकर म्हणत मजदूरी करने वाली एक लड़की को उल्हासनगर के लोंगो ने चन्दा देकर भदोही भेज दिया और जिस भदोही के एक युवक ने उसे धोखा दिया था उसी भदोही के एक पत्रकार ने उसे सम्मान दिला दिया। मिथिलेश के समर्पण और पत्रकारिता के के प्रति आश्था ने डिंपल के साथ हजारो हाथ कर दिए। ऐसे हालत पैदा हुए की सभी मीडिया को डिंपल के साथ खड़ा होना पड़ा। मिथलेश ने यह दिखा दिया की गाव में रहने वालो पत्रकारों में प्रतिभा की कमी नहीं है। कमी सिर्फ यह है की वे चाटुकार नहीं है । उन्हें मठाधीशों के चरण वंदन करने नहीं आता है। वे सम्मान के भूखे है। यह गाव में रहने वाले एक पत्रकार की निष्ठां ही थी की मुंबई से लेकर पूरे देश की मीडिया इस मुद्दे पर एकजुट दिखाई दी। जिस संस्थान ने मिथिलेश के साथ हमेशा अन्याय किया है। उसी ने उन्हें आत्मिक शांति की अनुभूति भी करायी। जो गरीब अबला आत्महत्या की बात करती थी आज उसका मनोबल मजबूत हुआ है। वह सम्मान की भूखी थी और उसे सम्मान मिल गया। अब आचल नहीं पूछेगी की उसका बाप कौन है। और यह सब हुआ सिर्फ और सिर्फ डिंपल के विश्वास और डिंपल के मुह्बोले भाई मिथिलेश द्विवेदी के कारण। आज यदि भदोही की मीडिया का नाम पूरे देश में उछला है तो उसका श्रेय सिर्फ मिथिलेश जी को जाता है। और दुसरे उनके सहयोगियों के समर्थन का भी जो उनके साथ कंधे से कन्धा मिलकर खड़े रहे।
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