शनिवार, 18 अगस्त 2012

फव्वारा चौक का अन्ना ?

      आदरणीय अन्ना अंकल,
                  आपने भ्रष्टाचार  के खिलाफ जो आंदोलन छेड़ा उसका नतीज़ा यह हुआ कि आम आदमी अब सिर्फ नेताओं और कर्मचारियों को चोर मानने लगा है और उसे अपनी कोई भी कमी नज़र नहीं आती.
 अब  देखो न अंकल , औसत दूधिया दोनों समय पानी मिला कर दूध बेचता है और फिर भी  यह दावा करता है कि वह तो किसी तरह बच्चों का पेट पाल रहा है. इन नेताओं को देखो ना जो करोड़ों खा गए. बिल्कुल यही बात बिजली और पानी की चोरी करने वाला सोचता है और यही बात वह भी कहने लगा है जो नकली घी बनाता है या सोने में पीतल मिलाता है . किसी का बिना हैल्मेट के चालान कटने लगता है तो उसकी यही दलील होती है कि पुलिस वाले खुद तो हैल्मेट पहनते नहीं और हमारा चालान काटते हैं . यानि हर चोर अब नेताओं को चोर बता कर खुद को सही ठहराने  लगा है .
 अंकल जी, आप तो हमें शायद  यह सिखा रहे थे कि शराब  से कीड़े मर जाते है़ं इसलिए यह हानिकारक है जबकि हमने यह समझा कि शराब अच्छी चीज़ है जिसे पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं . आप को लगता नहीं कि आप कैसे-कैसे  चेलों के गुरू हो गए ?
इससे भी बड़ी बात तो यह अंकल जी, कि हम लोगों की नज़दीक की नज़र बहुत  कमज़ोर हो गई है और दूर की बहुत तेज.  हमें दिल्ली के राम लीला मैदान में खड़ा अन्ना तो दिखता है लेकिन मेरे अपने  शहर  के फव्वारा चौक पर खड़ा रहने वाला अन्ना नहीं दिखता . यह अन्ना ना तो खादी पहनता है और ना  गांधी टोपी ही  बल्कि पुलिस की वर्दी में  हर समय हैल्मेट पहने खड़ा रहने वाला हमारे शहर  का ट्रेफिक-इंचार्ज़ देवा सिंह है.  लेकिन हम इतने बेशर्म  हो चुके हैं कि हेलमेट लगाए धरती पर खड़े उस देवा सिंह के  पास से बिना हैल्मेट लगाए बाईक पर गुजरते रहते हैं और एक पल भी नहीं सोचते कि खाकी वर्दी वाला यह आदमी सारा दिन हैल्मेट क्यों पहने रहता है और तब भी जब वह बाईक पर नहीं होता  बल्कि चौक पर  खड़ा होता है ? इसके हाथ में लाठी नहीं है इसलिए हम इसे पुलिस वाला नहीं मानते और इसने गांधी टोपी नहीं पहनी इसलिए हम इसे अन्ना भी नहीं मानते. हम अन्ना का भक्त उसी को मानने लगे हैं जो कुछ भी करे लेकिन टोपी लगा ले जिस पर लिखा हो ” मैं भी अन्ना “ लेकिन यह बात हम बेवकूफों को कौन समझाए कि अन्ना तो मन से अन्ना होता है उसने चाहे गांधी टोपी पहन रखी हो या हैल्मेट .
खाकी वर्दी में कहते हैं बहुत नशा  होता है लेकिन इस इंस्पेक्टर को देख कर यह बात झूठ लगती है .यह नशे की बजाए प्रेरणा से लोगों को समझाना चाहता है . लेकिन हम जूत्ते से समझने वाले लोग....
कल को यही देवा सिंह पुलिसिया लाठी उठा कर खड़ा हो जाए कि आओ मेरे प्यारो आज देखता हूं कौन मेरे पास से बिना हैल्मेट लगाए गुजरता है ? तब क्या होगा ? लोग या तो रास्ता बदल जायेंगे या हैल्मेट लगा कर ही उधर से गुजरेंगे .लेकिन वही दलील फिर भी देंगे कि नेता तो देश  को लूट के खा गए उनका कोई पुलिस वाला  कुछ बिगाड़ता नहीं, हमने क्या अपराध किया है , एक छोटा सा हैल्मेट ही तो नहीं पहना .अंकल जी, आप को लगता नहीं कि आप कैसे-कैसे भक्तों के देवता हो गए ? 
आपका अपना बच्चा,
मन का सच्चा,
अकल का कच्चा
--- प्रदीप नील

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