शुक्रवार, 30 मार्च 2012

प्रेम काव्य ... नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार -रचना-१ ....



                  

              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ  रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभुरूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं  गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी प्रस्तुत है प्रथम रचना---देवानुराग ...बरवै छंद में ...   

शंकर-सुत, गणनाथ, गजआनन, विघ्नेश्वर :। 
करें  ह्रदय  में वासगौरी-नंदन प्रभु  सदा ।।   

वाणी भाव विभाव, अक्षर अर्थ-समूह रस 
भरें ह्रदय में भाव, मतिदा मातु सरस्वती ।। 

वीणा, पुस्तक हाथ, माँ वाणी, माँ शारदे
करें ह्रदय में वासमेरी जड़ता को  हरें ।। 

क्षीर-सिन्धु में वासशेषनाग शय्या बने।
करें ह्रदय में वास,विष्णु रमापति चतुर्भुज ।।

जटा गंग शशि माथ, कर डमरू गल व्याल धर,
करें ह्रदय में वास , वृषा-रूढ़ शिव-शम्भु नित ।।

चार वेद कर धारि, चतुरानन जग-रचयिता
मन में करें निवास,आदि-देव ब्रह्मा सदा ।।

धनुष बाण ले हाथ, पंकज-लोचन, श्याम तनु
करें ह्रदय में वास , सीतापति श्री राम प्रभु ।।

ग्वाल-बाल हैं साथ, अधर मुरलिया पीत पट 
सदा ह्रदय में वास, हाथ लकुटि गोपाल श्री ।।

मन में करें प्रकाश, शिवा भवानी अम्बिका
मन में करें निवास, शैलसुता  गौरी  उमा

कर्म प्रभाव प्रकाश , रिद्धि-सिद्धि-श्री प्रदाता 
करें ह्रदय में वास, लक्ष्मी विष्णु-प्रिया सदा ।।

सिय जग-जननी मातु, रामप्रिया श्रीजानकी
मन में करें निवास, भूमिसुता जग-वन्दिता ।।

छूटें  भव-संताप, राधे  राधे  रटत  ही
सदा ह्रदय में वास, श्याम-प्रिया राधा करें ।।






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