प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभुरूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी । प्रस्तुत है प्रथम रचना---देवानुराग ...बरवै छंद में ...
शंकर-सुत, गणनाथ, गजआनन, विघ्नेश्वर :।
करें ह्रदय में वास , गौरी-नंदन प्रभु सदा ।।
वाणी भाव विभाव, अक्षर अर्थ-समूह रस ।
भरें ह्रदय में भाव, मतिदा मातु सरस्वती ।।
वीणा, पुस्तक हाथ, माँ वाणी, माँ शारदे !
करें ह्रदय में वास , मेरी जड़ता को हरें ।।
क्षीर-सिन्धु में वास, शेषनाग शय्या बने।
करें ह्रदय में वास,विष्णु रमापति चतुर्भुज ।।
जटा गंग शशि माथ, कर डमरू गल व्याल धर,
करें ह्रदय में वास , वृषा-रूढ़ शिव-शम्भु नित ।।
चार वेद कर धारि, चतुरानन जग-रचयिता ।
मन में करें निवास,आदि-देव ब्रह्मा सदा ।।
धनुष बाण ले हाथ, पंकज-लोचन, श्याम तनु ।
करें ह्रदय में वास , सीतापति श्री राम प्रभु ।।
ग्वाल-बाल हैं साथ, अधर मुरलिया पीत पट ।
सदा ह्रदय में वास, हाथ लकुटि गोपाल श्री ।।
मन में करें प्रकाश, शिवा भवानी अम्बिका ।
मन में करें निवास, शैलसुता गौरी उमा ।
कर्म प्रभाव प्रकाश , रिद्धि-सिद्धि-श्री प्रदाता ।
करें ह्रदय में वास, लक्ष्मी विष्णु-प्रिया सदा ।।
सिय जग-जननी मातु, रामप्रिया श्रीजानकी ।
मन में करें निवास, भूमिसुता जग-वन्दिता ।।
छूटें भव-संताप, राधे राधे रटत ही ।
सदा ह्रदय में वास, श्याम-प्रिया राधा करें ।।
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