अनशन तो क्षेत्रीय सांसद के समक्ष करना चाहिए ''अन्ना जी''
अन्ना जी ने कहा है कि -'' .... नए लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बेहद कमजोर है और इससे समाज का भला नहीं होने वाला है। अन्ना ने साफ किया कि अनशन के लिए 2-3 जगहों पर विचार हो रहा है। यदि उन्हें जगह नहीं मिली तो वह जेल में ही अनशन करेंगे।''......[टीम अन्ना ने अपने 30 दिसंबर से शुरू होने जा रहे जेल भरो आंदोलन के लिए अब एकऑनलाइन कैंपेन शुरू किया ] [ नवभारत टाइम्स से साभार]
अन्ना जी कभी सोनिया गाँधी जी के आवास के समक्ष अनशन करने के लिए कहते हैं तो कभी राहुल गाँधी जी के आवास के समक्ष .कभी दिल्ली में तो कभी महाराष्ट्र में .कभी जंतर -मंतर पर तो कभी रामलीला मैदान में ....पर कभी वे यह क्यों नहीं कहते की अपने क्षेत्र के सांसद के समक्ष अनशन कीजिये .जब संविधान ने कानून बनाने का अधिकार जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले हमारे सांसदों को दिया है तो सर्वोच्च कानून निर्माण संस्था ''संसद '' की गरिमा को बनाये रखते हुए हम क्यों न अपने ही क्षेत्र के सांसद को अपने विचारों से अवगत कराएँ .हम कैसा लोकपाल चाहते हैं ? यह हमारा प्रतिनिधि -हमारा सांसद संसद में लोकपाल पर बहस के दौरान रखे तो लोकतंत्र - प्रजातंत्र का अनुशासित रूप प्रकट होगा पर जनता को उत्तेजित कर ''जेल भरो '' जैसे आन्दोलनों से अन्ना जी स्वयं तो चर्चित कर सकते हैं पर देश की जनता का इससे कोई कल्याण नहीं होने वाला है .ऐसे आन्दोलन लोकतान्त्रिक प्रणाली से चुनी हुई सरकार पर ही प्रश्न चिन्ह लगाती है और जो संस्था लोकतंत्र की बात करती है वो लोकतान्त्रिक तरीकों को क्यों नहीं अपनाती ?क्षेत्रीय सांसद को घेरिये यदि जनता के अधिकारों का हनन हो रहा है. यदि पूरे देश में जनता अपने सांसदों को लोकपाल के मुद्दे पर घेरेगी तो संसद में जैसा जनता चाहती है वैसे ही लोकपाल विधेयक को लाये जाने की बहस होगी जिसका परिणाम शुभ ही होगा .अन्ना के ''जेल भरो '' आन्दोलन ''का मैं कड़ा विरोध करती हूँ .
शिखा कौशिक
[विचारों का चबूतरा ]
3 टिप्पणियाँ:
शिखा जी, जैसे अन्ना जी का अभिव्क्ति में अभिव्क्ति का अधिकार है, वैसे ही आपको भी है, मगर आपके ऐसा कहने को अन्ना वाले यह करार देंगे कि या तो आप कांग्रेसी हैं या फिर भ्रष्टाचार की समर्थक, असल में हमारे मीडिया ने अन्ना को खुदा बना दिया है, उसकी बुराई पाप है
तेजवानी जी -आपने ठीक लिखा है पर अन्ना जी हो या राहुल गाँधी जी ....जिसकी भी बात संविधान के विरूद्ध हो उसकी आलोचना होनी ही चाहिए .जेल भरो जैसे कार्यक्रम जनता की ही मुसीबत का कारन बन जाते हैं .अन्ना जी ये बखूबी जानते होंगे फिर भी ऐसे आह्वान कर वे जनता ....विशेष कर युवाओं को दिग्भ्रमित कर रहे हैं .यह बहुत अफ़सोस की बात है .
---यदि एसा ही होता तो राजाओं के विरुद्ध क्रान्तियां नहीं होतीं...फ़्रान्स की क्रान्ति नहीं होती...न स्वाधीनता सन्ग्राम.....
--- आपकी यह बात( सान्सदों को घेरना) भी एक उचित साधन है...यदि सभी अपने अपने सान्सदों का घिराव करें ,एक साथ तो...परन्तु जब राष्ट्रीय स्तर पर अन्ना व उनकी टीम के प्रति खुली गुन्डागर्दी हो रही है तो स्थानीय सान्सदों की गुन्डागर्दी का ल्या कहना, सब जानते है...सम्मिलित प्रयासों का एक अर्थ यह भी होता है कि व्यक्तिगत स्तर पर वह कार्य नहीं हो पारहा है।...अन्ना के प्रयास को वजूद मिलने का यही कारण है...
---आज अन्तर केवल साधन में है, साध्य तो वही है .सान्सद की अवमानना व सन्सद की अवमानना एक ही बात है......आज जब प्रत्येक सान्सद ही सन्सद की व लिये गये शपथ की अवमानना कर रहा है तो उस सन्सद की, सान्सद की एव स्वयं अपने स्वार्थ-रत इन्हें सन्सद में भेजने वाली जनता की अवमानना का क्या अर्थ है...
----जब देश का सम्पूर्ण जन जिसने सन्सद को चुना है वही आन्दोलनरत है तो सन्सद की क्या मान्यता रह जाती है..
---क्या कोई भी बडा जनआन्दोलन सर्वदा ही पूर्णरूप से सफ़ल व स्पष्ट होता है ?
--- भ्रष्ट जनता, सरकार,जनप्रतिनिधि के त्रिगु्ट-वर्ग के कारण प्रत्यक्ष रूप से भले ही इस आन्दोलन का कोई लाभ न होपाय परन्तु जन जागरण तो होता ही है ।...
----हां सबसे बडा सत्य तो यह है कि इस समस्या का मूल निदान किसी भी सन्स्था में निहित नहीं अपितु मानव के सदाचरण में निहित है ..यही तो नहीं कर पारहा है आज समाज अपने अपने स्वार्थ में रत..और यदि एसा होता है तो उसके लिये किसी लोकपाल की आवश्यकता नहीं है
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