प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा
सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस
सम्बंधित पांच गीतों को रखा गया है ....बेटी, पुत्र, पुत्र-वधु , माँ, बेटे का फोन .......| प्रस्तुत है चतुर्थ गीत
---माँ......
जितने भी पदनाम सात्विक ,उनके पीछे 'मा' होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा,
आत्मा हो अथवा परमात्मा ||
जो महान सत्कर्म जगत के,
उनके पीछे 'माँ' होती है |
चाहे हो वह माँ कौसल्या,
जीजाबाई या यशुमति माँ ||
पूर्ण शब्द माँ, पूर्ण ग्रन्थ माँ ,
शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
की पहली सीढ़ी होती माँ ||
माँ अनुपम है वह असीम है,
क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती ,
माँ की ममता रूपी गागर ||
माँ मानव की प्रथम गुरू है,
सभी सृजन का मूल-तंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा,
वाणी रूपी मूल-मन्त्र माँ ||
सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे,
कर पाए माँ का गुण गान | 'श्याम' करें पद-वंदन माँ ही ,
करती वाणी-बुद्धि प्रदान ||
4 टिप्पणियाँ:
माँ की महिमा अद्भुत व महान है।
धन्यवाद दत्त जी व शास्त्री जी ...
माँ की महिमा का सुन्दर चित्रांकन्।
bahut achchhi rachna hai. pasand ya naapasand ka to prashn hi nahi uthata.
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