शनिवार, 4 जून 2011

पहले अपने गिरेबान में झांककर देखो शाहरुख़

कल टीवी पर देखा और आज पेपर में पढ़ा, बड़बोले शाहरुख का बयान। कोई समर्थन नहीं दूंगा जो जिसका काम है उसको वही करना चाहिए। ऐसा लगा मानो बाबा रामदेव का पूरा आंदोलन शाहरुख के समर्थन पर टिका है। अगर समर्थन नहीं दिया, तो बेचारे बाबा तो कहीं के नहीं रहेंगे। शाहरुख जो बात आप दूसरों के लिए कहते हैं क्या वहीं अपने जीवन पर भी लागू करते हैं। जहां तक मेरी जानकारी है शायद आप फिल्मों में काम करते हैं। फिल्मों में आप क्या करते हैं इसकी मुझे कोई खास जानकारी नहीं है। कुछ मित्रों ने बताया कि आप अभिनेता है। वो लोग अगर ऐसा कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। आपका वर्तमान वक्तत्व पढ़ने के बाद मेरे मन में भी एक प्रश्न उठा कि अगर आप अभिनेता हैं तो क्रिकेट से आपका क्या लेना-देना। लेकिन वहां काफी सक्रिय दिखते हैं। वो अलग बात है कि क्रिकेट का मैदान इस व्यापारी कम अभिनेता को अभी तक कोई खास सफलता नहीं दिला पाया है। यह वक्तव्य आप पर भी उतना ही लागू होता है जितना बाबा पर। अगर यह वक्तव्य आपने अपने अनुभवों के आधार दिया है तो भी गलत है।
अगर आप खुद को सफल मानते हैं तो भी आपको सफलता को सहजता से लेना चाहिए। गंभीरता से कभी नहीं। गंभीरता से ली गई सफलता अक्सर दुखदायी होती है। और अगर यह सर चढ़कर बोलने लगे तो, समझ लेना चाहिए कि पतन की तरफ जाने वाली पहली सीढ़ी पर आप अपना कदम रख चुके हैं। आप बॉलीबुड से जुड़े हैं तो आपने राजकिरण का नाम भी सुना होगा। वो भी सफल अभिनेता था। पर आज कहां और किस हालत में जी रहा है कोई नहीं जानता। और भी कई नाम हैं जिन्होंने सफलता के उच्चतम शिखर को चूमा उनमें एक परवीन बॉबी का भी नाम है। एक समय बॉलीवुड में उनकी तूती बोलती थी। फिर एक समय ऐसा भी जब वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठी। मृत्यु भी दर्दनाक ही मिली। 72 घंटे अपने कमरे में मृत अवस्था में पड़ी रही और किसी को भनक तक नहीं मिली। ऐसे और भी किस्से हैं जो शिखर पर पहुँचे पर वहां के सन्नाटे को बरर्दाश्त नहीं कर पाए।
खैर छोड़िए इन सब बातों से आपका क्या लेना-देना। बाबा रामदेव ने दुनिया को क्या दिया है यह सिर्फ उनसे पाने वाले जानते हैं। आप नहीं। शाहरूख आपको कभी दिल्ली एअरपोर्ट पर रेड कार्पेट वेलकम मिला है? शायद नहीं। उसके लिए आपको जुगाड़ बैठा कांस जैसे विदेशी फिल्म समारोहों में जाना पड़ता है। जहां से आप लोगों के स्वागत के तो कम फज़ीहत के किस्से खूब सुनने को मिलते हैं। फिर भी आप बाबा की बात करते हैं!
क्या आपने अपने और बाबा के सामाजिक सराकारों में कभी एकरूपता पाई है। उनके सरोकार लाखों लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। और आप बड़ी-बड़ी कम्पनियों से पैसा लेकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। जिन उत्पादों की महिमा का आप जोर-शोर से बखान करते हैं, क्या सचमुच उनके पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक आधार होता है? सच कहा जाय तो उन उत्पादों को आप लोग कभी जांचते परखते तक नहीं हैं, उनका इस्तेमाल करने की बात तो बहुत दूर की है। दरअसल जिन उत्पादों के लिए आप टीवी पर बेहूदगी करते नज़र आते हैं उनका उत्पादन शोषण, अन्याय, विस्थापन और झूठ पर टिका होता है। उनका प्रचार करके आप और आप जैसे अनेक लोग आम जनता की भावनाओं से खेलते हुए कृत्रिम मांग पैदा करके भोगवाद और असंयम को बढ़ावा से रहे होते हैं।
याद रखिए, सूरज की तरफ मुख करके उस पर थूकने से थूक, थूकने वाले के चेहरे पर ही गिरता है। सूरज तो वैसे ही अपने प्रकाश से दुनिया को प्रकाशित करता रहता है।
अंत में इतना ही कहूंगी कि बाबा तो भारतीय जन-मानस के बहुत गहरे तक जुड़े हुए हैं। और इन समस्याओं पर काफी अरसे से जन-जागरण अभियान भी चला रहे हैं। बाबा को आप जैसों की सलाह और समर्थन की आवश्यकता नहीं है। उन्हें पता है कि वे क्या कर रहे हैं और भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में हम सब उनके साथ है। इस मामले में आप अपनी ज़ुबान बंद ही रखे तो अच्छा होगा।
चलते-चलते एक बात और कहूंगी। कभी वक्त मिले तो महात्मा गांधी को ज़रूर पढ़िएगा। तभी आपको मुद्दों को उठाने और उसके सही और गलत तरीकों का ज्ञान हो सकेगा।
-प्रतिभा वाजपेयी.

3 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छा धारदार लेख ... काश यह लेख वो पढ़ सकते जिनके लिए लिखा गया है ..

हरीश सिंह ने कहा…

सच बात है, कोई अपना काम नहीं कर रहा है, शाहरुख़ नेता की तरह बयान दे रहे है. मंत्री, सांसद, विधायक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. योग गुरु राजनीती कर रहे हैं. यदि सभी लोग अपने काम करने लगे तो किसी को भी अपने काम छोड़कर दूसरे का काम न करना पड़े. सब अपनी जगह सही और सब अपनी जगह गलत. न काहू से दोस्ती न काहू से बैर. जय सिया राम
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kirti hegde ने कहा…

apna kaun dekhta hai

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