सोमवार, 19 दिसंबर 2011

माँ......प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (क्रमश:)- ..गीत 3-.माँ.....डा श्याम गुप्त..........




              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा

सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस 
सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है  तुर्थ  गीत 
 
---माँ......
जितने भी पदनाम सात्विक ,
उनके पीछे  'मा' होता है |
चाहे धर्मात्मा,  महात्मा,
आत्मा हो अथवा परमात्मा ||

जो महान सत्कर्म जगत के,
उनके पीछे 'माँ' होती है |
चाहे हो वह माँ कौसल्या,
जीजाबाई या यशुमति माँ ||

पूर्ण शब्द माँ, पूर्ण ग्रन्थ माँ ,
शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हर एक सफलता,
की पहली सीढ़ी होती माँ ||

माँ अनुपम है वह असीम है,
क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती ,
माँ की ममता रूपी गागर ||

माँ मानव की प्रथम गुरू है,
सभी सृजन का मूल-तंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा,
वाणी रूपी मूल-मन्त्र माँ ||

सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे,
 कर पाए माँ का गुण गान |
'श्याम' करें पद-वंदन माँ ही ,
करती वाणी-बुद्धि प्रदान ||

4 टिप्पणियाँ:

देवेंद्र ने कहा…

माँ की महिमा अद्भुत व महान है।

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद दत्त जी व शास्त्री जी ...

vandana gupta ने कहा…

माँ की महिमा का सुन्दर चित्रांकन्।

जय शंकर ने कहा…

bahut achchhi rachna hai. pasand ya naapasand ka to prashn hi nahi uthata.

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification