प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | षष्ठ सुमनान्जलि में रस -श्रृंगार के गीतों को पोस्ट किया गया था | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच गीतों को रखा गया है ....बेटी, पुत्र, पुत्र-वधु , माँ, बेटे का फोन .......| प्रस्तुत है प्रथम गीत ....बेटी ...
बेटी तुम जीवन का धन हो ,
तुम हो सारे घर की छाया,
सबके मन यह प्यार समाया ||
तेरा घुटनों के बल चलना,
रुदन, रूठना और मचलना |
गुड्डे और गुडिया लेने को,
जिद करना, मनवाकर हंसना ||,
मम्मी ने पायल दिलवाई,
नांच- नांच कर खुशी मनाई |
पुलकित मन हो दौड़ दौड़ कर,
सारी सखियों को दिखलाई ||
दादी ने जब आग मंगाई ,
झोली में भरकर ले आई |
फ्राक जल गयी खबर नहीं कुछ ,
पैर जला रोई चिल्लाई ||
जो कहें परायाधन तुझको,
वे तो सबही अज्ञानी हैं |
तुम उपवन की कोकिल मैना ,
चहको, करलो मनमानी है ||
इस जग की तो रीति यही है,
संसृति का संगीत यही है |
हो जब प्रियतम के घर जाना ,
दुनिया की सब रीति निभाना ||
यादें तो बरबस आयेंगी,
रोते मन को सहलायेंगी |
पर ये तो सुख के आंसूं हैं बेटी प्रिय घर ही जायेंगी || -----चित्र --गूगल साभार ....
3 टिप्पणियाँ:
अति सुंदर भावप्रद गीत। सचमुच बेटियाँ बड़े भाग्य से व बड़ी प्यारी होती हैं।
जो कहें परायाधन तुझको,
वे तो सबही अज्ञानी हैं |
तुम उपवन की कोकिल मैना ,
चहको, करलो मनमानी है ||
bahut sundar .aabhar
धन्यवाद देवेन्द्र जी व शिखा जी....
एक टिप्पणी भेजें