शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

नेता का दिमाग घुटने में ?

आदरणीय अन्ना अंकल ,
कल हमारे संगीत वाले सर हमें देशभक्ति का गाना सिखा रहे थे,लेकिन बहुत ही गुस्से में थे. बोलने लगे,“ बच्चो,कहां का देश,और कैसा देश ! तुम्हारे सामने भला-चंगा खडा हूं.मुझे तो कल रिटायर होना पडेगा. और इधर नेता हैं कि 70 साल के हो जाएं,घुटने काम ना कर रहे हों,तो भी उन्हे रिटायर करने वाला कोई नहीं है.“
यह अन्याय की बात सुनकर हम तो हैरान रह गए, अंकल जी.
तभी चपडासी पानी लेकर आया,प्रिंसीपल को गालियां देता हुआ. सर की बात सुन कर बोला,“देश तो अब पाताल को जाएगा ही. यहां अंधे तो बच्चों को संगीत सिखाते हैं“
यह सुनते ही संगीत वाले सर चिढ गए. चिल्लाए,“ बकवास क्यों करता है,राम औतार के बच्चे ? मैंने संगीत गले से सिखाना होता है, आंखों से नहीं “
राम औतार उसी तर्ज़ पर बोला,“ तो तू भी जान ले,राम लुभाए कि नेता ने देश दिमाग से चलाना होता है, घुटनों से नहीं “
यह बहस ज्यादा देर नहीं चली, क्योंकि दोनो एकदम से “नवीन भारतीय संस्कृति“ पर उतर आए.यानी संगीत वाले सर जी तबले पर थाप की तरह राम औतार के सिर पर सितार मारने लगे. राम औतार इस भरोसे के साथ कि प्रिंसीपल उसने बनना नहीं,चपडासी से नीचे कुछ बना सकते, हुक्म बजाने की तरह सर के सिर पर जूत्ता बजाने लगा.
हम सभी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे तो पूरा स्कूल भागकर आया और उन्हे छुडवाया.
अंकल जी,हम तो हैरान रह गए कि इस तरह तो हम बच्चे भी नहीं लडते. जब हम बच्चे लडते हैं तो सारे सर एक ही बात कहते हैं “तुम्हारा क्या मकान बंट रहा था,जो बंदूक निकाल ली ?“ आज हमें समझ नहीं आया कि यहां कौन सा मकान बंट रहा था?
अंकल जी,हमें सबसे घटिया बात तो यह लगी कि ये बड़े लोग एक दूसरे की शारीरिक अक्षमता का मज़ाक उडा रहे थे.कोई अपाहिज या बीमार है तो इसमें उस बेचारे का क्या कसूर?
घर जाकर दादा जी से मैं पूछने लगा कि नेता को किस उम्र में रिटायर होना चाहिए ?
दादा जी गुस्से से बोले ' मैं कोई नेता तो हूँ नहीं . किसी नेता से ही पूछ ले जो सत्तर साल से ऊपर का हो ".
अब आप ही बताइए अंकल कि यह बात किससे पूछूं ?
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
प्रदीप नील

12 टिप्पणियाँ:

Urmi ने कहा…

सही मुद्दे को लेकर बहुत सुन्दरता से लिखा है आपने ! बेहतरीन पोस्ट!

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

@ बबली जी
समय निकाल कर मेरी पोस्ट देखने के लिए तो आभारी हूँ ही उससे ज्यादा हूँ आपके उत्साह बढाने वाले शब्दों से
धन्यवाद सहित
प्रदीप नील

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

@डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
सर , दूसरी बार मेरी कोई रचना आपने चर्चा-मंच के लिए चुनी ,यह आपका स्नेह है
मैं आभारी हूँ
धन्यवाद सहित,सादर
प्रदीप नील

Gyan Darpan ने कहा…

कहानी के बहाने आपने बहुत बढ़िया व्यंग्य लिखा|

पर आपके रिटायर होने की उम्र वाले सवाल का कोई शायद ही जबाब दे|

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तेजवानी गिरधर ने कहा…

very nice

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

@ रतन जी एवम तेजवानी जी ,
आभारी हूँ कि समय निकाल कर न केवल आपने रचना पढ़ी बल्कि अपने बहुमूल्य विचारों से भी अवगत कराया
आप जैसे साथियों का प्यार ही तो लिखने की प्रेरणा देता है
मेरा पूरा ब्लॉग ' सुनो अन्ना " ऐसी ही रचनाओं पर आधारित है
धन्यवाद सहित
प्रदीप नील

मन के - मनके ने कहा…

देश की दुर्दशा पर या यूं कहें,अपनी--- फिर एक बार हंसी आ गई.
कभी खुद पर,कभी हालात पर रोना आया.

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

@मन के - मनके
समय निकाल कर मेरी पोस्ट देखने के लिए तो आभारी हूँ ही उससे ज्यादा हूँ आपके उत्साह बढाने वाले शब्दों से
" हर बात पे रोना आया " वाली लाइन भी आप ही पूरी कर देतीं तो बात पूरी हो जाती
मेरे ब्लॉग www.neel-pardeep.blogspot.com पर आपका हमेशा स्वागत है
धन्यवाद सहित
प्रदीप नील

कविता रावत ने कहा…

badiya sateek vyang..

shyam gupta ने कहा…

बच्चों को एसी फ़ालतू बातों पर ध्यान नहीं देना है..िसके लिये बडॆ ही बहुत हैं ..उन्हें पढाई लिखाई पर ध्यान देना चाहिये.....

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

@ कविता रावत
अच्छा लगा यह जानकार कि मेरा व्यंग्य आपको अच्छा लगा
समय निकालने और टिप्पणी देने के लिए शुक्रगुजार हूँ
प्रदीप नील

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

@ Dr. shyam गुप्ता
आपने सही कहा अंकल जी कि बच्चों को बड़ों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए
हमारे हरियाणा में एक कहावत है " रांड तो रंडापा काट ले , रंडुए काटने दें तब ना "
बड़े लड़ रहे हों तो बच्चे पढ़ाई में ध्यान कैसे लगायें बेचारे ?
इसका मतलब आप ने मेरी रचना का बिलकुल वही अर्थ समझा, जो कईयों में से एक था
आप तो जानते ही हैं डा. साहब कि व्यंग्य के कई अर्थ होते हैं , लेकिन भावार्थ कितने समझ पाते हैं ?
किसी को मज़ा , किसी को सजा यही तो इसकी विशेषता है
बहरहाल आपको मज़ा आया , मेरा काम सार्थक हुआ
समय निकलने के लिए धन्यवाद
प्रदीप नील

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