शैशव का प्रभात
सुन्दर था
मन निश्छल,निश्चिंत
दिल कांच सा स्वच्छ
चंचलता से भरा
नटखट
यौवन काल
मादकता का रूप
आँखों को आराम ना था
तन,मन में
हिम्मत और जोश
आशा और प्रकाश से
भरा था
अब जीवन का
संध्या काल है
चेहरे की
लालिमा कम
हो गयी
आशाएँ और आकांषाएँ
घट गयी
व्यवहार में नरमी
आ गयी
दिन शांती से
कट जाए
निरंतर सब से
निभ जाए
ना कोई दुर्भावना
ना कोई,भय मन में
इच्छा मन में बसी
जीवन-सूर्य बिना बताए
चुपके से अस्त
हो जाए
18-07-2011
1201-81-07-11
2 टिप्पणियाँ:
alag dhang se likhi bahut sunder prastuti.badhaai aapko.
please visit my blog.thanks
सुन्दर, सात्विक इच्छा है...
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