आज भारतीय सिनेमा वयेस्क हो गया है ये कहकर फ़िल्म निर्माता और कलाकार दर्शको के सामने गंदे संवाद और अश्लील हरकत वाली फिल्म प्रस्तुत कर रहे है .१ जुलाई को सिनेमा घरो में आई फ़िल्म डेल्ही बेल्ही ने तो सारे हदे पार कर गई .डेल्ही बेल्ही आमिर खान के निर्देशन में बनी थी जिससे दर्शको को एक अच्छी फिल्म देखने की उमीद थी लेकिन उस फिल्म को देख कर दर्शक अपने को ठगा सा महसूस कर रहे है.
मिस्टर प्रफेशनल के नाम से मसहूर आमिर खान ऐसी फिल्म दर्शको के सामने रखेगे ये लोगो को कुछ हजम नही हो रहा . डेल्ही बेल्ही फ़िल्म में इंटरवल के पहले तक लोगो को अश्लील संवाद और अश्लील हरकते कर के दर्शको के मनोरंजन का असफल प्रयास किया जाता है .विजय राज की एंट्री से फिल्म में कुछ नया मोड़ आता है लेकिन पूरी फ़िल्म में गन्दी गालिया ,अश्लील हरकते ही देखने को मिलती है . ये कौन सा नया वेयास्क्पन है फिल्मी जानकारों और समीक्षकों को भी नही समझ आ रहा है.............. .लोगो को समझ में नही आ रहा की सेंसर बोर्ड का कार्य क्षेत्र क्या है ?............. कैसी फिल्मो को सिनेमा घरो में पहुचनी चाहिए ?
भारतीय सिनेमा इन सी ग्रेड फिल्मो से अपने पतन के तरफ अग्रसर है . इसे बचाने के लिए जल्द कोई उपाय करना होगा नही हम अपनी संस्कृति ,सभ्यता सब कुछ खो देगे एक बड़ा वर्ग सिनेमा देख कर अपना मनोरंजन करता है जिनमे बच्चे भी शमिल है ................सिनेमा देखने से बच्चो पर बड़ा गहरा असर पड़ता जिससे ऐसी फिल्मे समाज को पतन के तरफ ही ले जाएगी .ऐसी फिल्मो से समाज को बचाने के लिए सेंसर बोर्ड को कठोरता पूर्वक कार्य करना चाहिए इसमे नरमी बरतना घातक सिद्ध हो सकता है .फिल्म निर्माताओ को भी ऐसी फिल्मो को बनाने से बचना चाहिए तभी एक अच्छे और साफ सुथरे समाज की हम कल्पना कर सकते है .
6 टिप्पणियाँ:
शिव शंकर जी बहुत दिन बाद आये ब्लॉग पर लेकिन देर से आये दुरुस्त आये और एक बहुत ही जटिल समस्या से रूबरू कराया ,आपने सही कहा आज कल की फिल्मो में कहानी कम और गलियां ज्यादा है पता नही मुझे तो ये लगता हें की फिल्म वाले हमे और बच्चों को फिल्मो के माध्यम से गलियां देना सिखा रहा है ,अभी २०११ जितनी भी फिल्मे आयीं है उसमे गलियां और अश्लीलता भरी है ,इस पर सेंसर बोर्ड को मोटी रकम खिलाई जा रही है ,और एक बात मै आपके बात से पूरी तरह सहमत हुं ,और ६ जुलाई को मर्डर -२ रिलीज हो रही है इसे देखिये इसमें कितनी अश्लीलता है ,अब मै क्या कहुं शिव जी आप तो सब कहानी जानते है , ऐसी समस्या से हम ब्लोगरो को भी सोचने पर मजबूर करने के लिये अभार
बहुत दिन बाद वापस आये आप एक अच्छी रचना के साथ स्वागत.
व्यक्ति के अन्दर जितनी गन्दगी भरी होती है, वह कभी न कभी किसी न किसी माध्यम से बाहर निकलती है। इसलिए इस फिल्म के माध्यम से भी शायद निकली है। अपने असली चेहरे को लेकर।
सिनेमा ही क्यों?
हास्य के नाम पर तो चैनल भी खुली अश्लीलता परोस रहे हैं!
जो बिकता है वही दिखाया जाता है, रामायण देखने कितने लोग गए थे? और कितनों को पता है कि कुछ समय पहले "रामायण" रिलीज हुई थी
सही समय सही आलेख--आये दिन हर अखबार , टीवी , सिनेमा में अश्लीलता परोसी जारही है...
---आमिर खान की कौन सी फिल्म एसी है जिसमें अश्लीलता, उल-जुलूल व्यर्थ की मूर्खतापूर्ण बातें न हों...
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