शनिवार, 9 जुलाई 2011

बंसी की धुन

बंसी की धुन तुम यूँ न बजाया करो |
हमें पल -पल तुम यूँ न सताया करो |
देखो पनघट पे आते  है ग्वाले बड़े ,
तुम ऐसे  हमें न बुलाया करो |
बृज  की ग्वालन मुझे जो देख लेंगी यहाँ |
मुझसे रूठ कर वो दूर चली जाएँगी न ?
तुम तो अपनी अदाओं से मना लोगे उन्हें ,
मैं तो हरपल मनाती रह जाउंगी  न ?
तुम हो नटखट से सबका बस दिल चुराते हो |
कौन क्या कहेगा इसकी खबर कहाँ लेते हो |
अपनी धुन में हर दम मग्न रहते हो |
कोई कुछ भी कहे तुम कहाँ सुनते हो |
सारी दुनिया को बस अपना ही कहते हो |
मैं बाट जोहते - जोहते थक जाती हूँ |
तुम न जाने किस गली में बंसी बजाते  हो |
खुद से पहले नाम तो तुमने मुझको दिया |
क्या तुम भी  मुझे उतना ही चाहते हो ?
चलो जाने दो अब ये शिकवे - गिले |
छेडो  बंसी की एसी धुन की हम ये मान लें |
मैं हूँ तेरी तू है मेरा फिर से दुनिया जान ले |
मैं हूँ तेरी तू है मेरा फिर से दुनियां जान ले | 

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