6/23/2011 05:24:00 pm
shyam gupta
1 comment
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है- पंचम -सुमनान्जलि..समष्टि-प्रेम....जिसमें देश व राष्ट्र -प्रेम , विश्व-वन्धुत्व व मानव-प्रेम निहित ...७ गीत व कवितायें ...... देव दानव मानव, मानव धर्म, विश्व बंधुत्व , गीत लिखो देश के, बंदेमातरम , उठा तिरंगा हाथों में व ऐ कलम अब छेड़ दो.... प्रस्तुत की जायेंगीं | प्रस्तुत है...सप्तम रचना.... ...नव तराने ...
ऐ कलम ! अब छेड़ दो तुम नव तराने ,
पीर दिल की दर्द के नव आशियाने |
आसमानों की नहीं है चाह मुझको ,
मैं चला हूँ बस जमीं के गीत गाने ||
आज क्यों हर ओर छाई हैं घटाएं ,
चल रहीं हर ओर क्यों ये आंधियां |
स्वार्थ लिप्सा दंभ की धूमिल हवा में ,
लुप्त मानवता हुई है कहाँ जाने ||
तुम करो तो याद कुछ दायित्व अपना ,
तुम करो पूरा सभी दायित्व अपना |
तुम लिखो हर बात मानव के हितों की,
क्या मिलेगा भला प्रतिफल , राम जाने ||
तुम मनीषी और परिभू स्वयंभू हो ,
तोड़ कारा सभी वर्गों की गुटों की |
चल पड़ो स्वच्छंद नूतन काव्य पथ पर,
राष्ट्र हित उत्थान के लिखदो तराने ||
हर तरफ समृद्धि सुख की ही धूम है,
नव-प्रगति, नव साधनों की धूप फ़ैली |
चाँद तारों पर जा पहुंचा आदमी है,
रक्त-रंजित धरा फिर भी क्यों ,न जाने ?
व्यष्टि सुख में ही जूझता हर आदमी,
हित समष्टि न सोच पाता आदमी अब |
देश के अभिमान, जग सम्मान के हित,,
देश के उत्थान के लिख दो तराने ||
राष्ट्र-हित सम्मान के लिख दो तराने,
आज नव उत्थान के लिख दो तराने |
तुम लिखो तो बात मानव के हितों की,
फल व प्रतिफल ,तुम न सोचो, राम जाने ||
मैं चला हूँ इस जमीं के गीत गाने|
पीर दिल की दर्द के नव आशियाने |
ऐ कलम ! अब छेड़ दो तुम नव तराने || ----क्रमश ..षष्ठ सुमनांजलि....रस-श्रृंगार...
1 टिप्पणियाँ:
sundar rachan.....
एक टिप्पणी भेजें