''धोखा ''-एक लघु कथा
''चलो घर से भागकर शादी कर लेते हैं !'' रोहित के यह कहते ही ज्योति का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.भावनाओं और क्रोध दोनों को संयमित करते हुए ज्योति कड़े शब्दों में बोली ''वाह !रोहित क्या यही तरीका है अपने सपनों को पूरा करने का ?अगर मेरे माता-पिता समाज के उलाहने सह भी लेंगे तो क्या मैं खुद को कभी माफ़ कर पाऊँगी उन्हें धोखा देने के लिए और ....मेरा भाई ...वो तो जहर ही खा लेगा .'' ......''तो फिर वे मेरे और तुम्हारे विवाह को राजी क्यों नहीं होते ?रोहित झुंझलाते हुए बोला ....''ये प्रश्न तो मैं भी तुम से कर सकती हूँ ...आखिर तुम्हारे माता-पिता क्यों तैयार नहीं हैं और ..........फिर तुम कैसे उनकी खिलाफत करकर ये विवाह करना चाहते हो?आखिर एक ऐसी लड़की को वे कभी ''बहु'' का सम्मान कैसे दे पाएंगे जो अपने माता-पिता की इज्जत को मिटटी में मिलाकर घर से भागी हो .'' ज्योति के प्रश्न के उत्तर में रोहित उदास होता हुआ बोला ''तो क्या अपनी प्रेम-कहानी का अंत समझूं ?''.....''नहीं अब तो यह कहानी शुरू हुई है .हमें न घर से भागना है और न घुटने टेकने हैं .हमें बस अपने परिवार से धोखा नहीं करना है .''आँखों से आश्वस्त करती ज्योति ने अपना पर्स उठाया और रोहित से विदा ली .अभी ज्योति को गए एक घंटा ही हुआ था की रोहित के मोबाईल पर उसकी कॉल आई .सुनकर रोहित हक्का-बक्का रह गया .उसने पास खड़ी अपनी बाइक स्टार्ट की और ज्योति के घर की ओर दौड़ा दी .ज्योति के घर पहुँचते ही बाहर खड़ी एम्बुलेंस देखकर उसके हाथ-पैर सुन्न पड़ने लगे .ज्योति को घर के अन्दर से उसके पिता व् भाई किसी तरह सहारा देकर एम्बुलेंस तक ला रहे थे .रोहित ने बाइक वहीँ छोड़ी और उसी ओर बढ़ लिया .ज्योति के करीब पहुँचते ही वो सबकी परवाह छोड़ कर उसे झंकझोरते हुए बोला ''ज्योति ये तुमने क्या किया ?तुम तो किसी को धोखा नहीं देना चाहती थी फिर जहर खाकर मुझे क्यों धोखा दिया ?...ज्योति थोडा होश में आते हुए बोली ....''रोहित मैंने तो सबका मान रखना चाहा था ......पर...मेरे माता-पिता ने ही मुझे धोखा दे दिया ...ये मेरे मना करने पर भी मेरा रिश्ता कहीं ओर तय कर आये .....मैं उस नए बंधन को भी धोखे में नहीं रखना चाहती थी ...और ..इसीलिए ये जहर ......'''यह कहते -कहते ज्योति निष्प्राण हो बुझ गयी .
शिखा कौशिक
10 टिप्पणियाँ:
कहानी अच्छी है, पर ऐसे कदम (भागने का अथवा जहर खाने का) इंसान नासमझी में ही उठाता है|
मार्मिक अंत ..
---ऐसे कदम कमजोर व अज्ञानी लोग उठाते हैं...ज़माने से लडने की इच्छा-शक्ति नहीं तो प्रेम नहीं करना चाहिए...बस ज़िंदगी का साथ निभाते जाना चाहिए....
----अपनी कहानी को पुनः लिखिए अच्छे अंत के साथ ... ये तो एक समाचार भर है जो आजकल काफी दिखाई/सुनाई पडता है....
--प्रेम यदि है तो--तो हीर-रांझा, सोनी-महिवाल , रूप-बसंत जैसा होना चाहिए....
ye kahani ek sabak hai un kathor mata -pita ka liye jo apne bachche ki bhavnaon ke sath khilvad karte hain aur jhoothe samajik bandhan ko to mante hain aur jite jagte apne bachche ki bhavnaon ko koi mahtava nahi dete .aapki kahani sachchai byan karti hai us kshetra ki jahan aap rahti hain aur jahan aise kisse aaye din ghat rahe hain aur samachar patron me jinke kisse byan kiye ja rahe hain .
dr,shyam ji ek kahani ka ant palatne se kya hoga jab taq samaj purane aadim soch ka anusaran karta rahega.
jo bhi ho kam se kam ise sachchi mohabbat kahenge, warna aajkal to .....
khair
behad achchhi rachna !!!
marmik ant....
किस किस को मनाओगे जी, कोई तो रूठेगा ही... और आपके मरने से समस्या का हल तो नहीं निकल जाता। मां बाप की मर्जी की तरह ही.. ये आदर्शवादी रूमानी प्रेम का ढोंग ढकोसला भी त्याज्य है।
---यदि बच्चों की भावना व प्रेम सच्ची है तो वे डटकर सामने खड़े हों ....अपना निश्चय बताएं ...जो भी मुश्किल सामने आये सहें ...प्रेम की सच्ची रीति निभाएं .....आत्मह्त्या तो समाज को बदलने से रही....
---माँ बाप तो सदैव जो उन्हें सामयिक उचित लगता है वही करते हैं...वे अपने स्थान पर ठीक ही होते हैं...आप यदि समाज को बदलना चाहते हैं तो कष्ट सहिये न कि आसान मौत और कानूनन अपराध व नैतिक मूल्य में पाप.. ---आत्महत्या
---कहानी के अंत को साहसिक करने से समाज सोचने को मजबूर होगा....आत्महत्या से नहीं ....
कहानी बहुत अच्छी है.............बहुत मार्मिक..................और बहुत अर्थों में यथार्थ भी
dr. shyam gupta se sahmat.
achchhi kahani......
एक टिप्पणी भेजें