सोमवार, 6 जून 2011

सोचें और फिर कुछ करें


आजकल सडको पर जब हम जाते हैं तो झोले लटकाए टीका लगाये कभी गंदे कपड़ों में तो कभी साफ कपड़ों में कुछ आदमी और कुछ औरतें दिखाई दे जाती हैं.कभी कभी बच्चे भी दिखाई देते हैं और इन सभी का एक ही मकसद होता है जहाँ से भी मिले जैसे भी मिले पैसे बटोरना.हमारे घर के पास कुछ दुकाने  हैं और दोपहर १२-०० बजे के करीब वहां ५-६ लोग आते हैं और हर दुकान में घुसते हैं और जो निश्चित कर रखे हैं १-१ रुपैया लेकर निकलते हैं.ऐसे जैसे शहरों में हफ्ता बंधा होता है ऐसे ही कस्बों में लगता है कि हर दिन का दुकानदारों पर कुछ जुर्माना बांध दिया गया है.अभी कल ही की बात है हम अपने डॉ.अंकल के क्लिनिक पर थे कि एक औरत वहां आई और उसने उनसे कुछ कहा भी नहीं और वे अपने मेज की दराज में कुछ ढूँढने लगे.थोड़ी देर में हमने देखा कि वे उसे दो रूपए देकर उससे एक रूपया ले रहे थे.ऐसा लगा कि ये उनकी क्लिनिक का भी रोज़ का ही प्रचलन हो गया है.
और हम और आप दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि जब हम एक को मांगने पर इस तरह पैसे देते हैं तो उसे देख दुसरे का भी हाथ अपनी और अनचाहे ही बढवा लेते हैं.हम अपने यहाँ घर से किसी भी मांगने वाले को पैसे नहीं देते हाँ अगर कोई भूखा दिखाई देता है तो उसे ज़रूर कुछ खाना दे देते हैं और और इसका ही ये परिणाम है कि हमारे घर इस तरह के लोगों का ताँता नहीं लगता जबकि पास पड़ोस में झोले लटकाए हठे-कट्टे दिखाई देते है रहते हैं .ये तो हम सभी जानते हैं कि ये लोग केवल मांगने के लिए ही नहीं घुमते हैं बल्कि इनका मकसद जैसे भी हो कुछ हासिल करना होता है और इस तरह हम इन्हें स्वयं योगदान दे रहे हैं.एक बार तो हमारे घर में एक औरत कुछ मांगने को घुसी मैंने उसे बाहर ही मना कर दिया और अन्दर आ गयी किन्तु हमारा घर ऐसे है कि उसका गेट कभी दिन में बंद नहीं होता तो वो मेरे अन्दर आने पर घर के और भी अन्दर जाने लगी मैंने उसे रोका तो वो भड़क कर बोली-कमबख्त टोक दिया ''भला मैं उसे अपने घर में जाने से रोक रही थी या उसके किसी प्लान में रोक लगा रही थी''.आज कल ऐसे घटनाएँ बढरही हैं और ये हमारी भलमनसाहत और लापरवाही ही है जो घरो में लूट डकैती की घटनाये बढ़ा रही है एक ओर तो हम इन लोगों को पैसे देकर समाज में भिखारी बढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर इन्हें अपने घरों में घुसने के नए रस्ते दिखा रहे हैं .इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूरे परिवार के सफाए की घटनाये बढ़ रही हैं और इन सभी घटनाओ में हमारी लापरवाही भी एक महत्वपूर्ण तत्त्व है ऐसे में हमें अगर अपने घरों में ऐसी घटनाये रोकनी हैं और समाज को भिखारियों से बचाना है तो इन्हें पैसे दे पुण्य कमाने की प्रवर्ति पर रोक लगानी होगी.
         शालिनी कौशिक 

9 टिप्पणियाँ:

मदन शर्मा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मदन शर्मा ने कहा…

आपने बिलकुल सही लिखा है.
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sateek likha hai aapne .badhai

गंगाधर ने कहा…

आपने बिलकुल सही लिखा है.

kirti hegde ने कहा…

sarthak lekh

rubi sinha ने कहा…

gr8

kavita verma ने कहा…

sabhi ko aage aana hoga ...sahi kah aapne..

poonam singh ने कहा…

sundar rachna aabhar

Shikha Kaushik ने कहा…

AAP SABHI KA BAHUT BAHUT DHANYAWAD.

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