प्रेम किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है- पंचम -सुमनान्जलि..समष्टि-प्रेम ....जिसमें देश व राष्ट्र -प्रेम , विश्व-वन्धुत्व व मानव-प्रेम निहित ...७ गीत व कवितायें ...... देव दानव मानव, मानव धर्म, विश्व बंधुत्व , गीत लिखो देश के, बंदेमातरम , उठा तिरंगा हाथों में व ऐ कलम अब छेड़ दो.... प्रस्तुत की जायेंगीं | प्रस्तुत है .....द्वितीय कविता ...मानव धर्म...
धर्म वही तो होता है,
जो सबको धारण करता |
उसको अनुशासित करता ||
सभी को एक समान समझ,
सब की ही सेवा करना |
सम्मति से सबकी चलना,
अडिग सत्य पर रहना ||
जीव मात्र से प्रेम करें ,
यह मानव धर्म सिखाता |
जीने की धारणा यही,
है जीवन धर्म कहाता ||
सिधु सरस्वती के तीरे ,
यह गाथा गयी सुनायी |
प्रजा वहाँ पर रहती थी -
जो, वह हिन्दू कहलाई ||
बातें यही मुहम्मद ने,
सब अपनों को समझाईं |
जिन लोगों ने समझी थी,
वे बने मुसलमां भाई ||
यही विचारों का मंथन,
जब ईशा ने फैलाया |
उनका जो आदर करता ,
वह ईसाई कहलाया ||
हिन्दू, मुस्लिम, ,ईसाई-
सिख,मानव रहा बनाता |
देश, काल सुविधानुसार ,
वह जीवन मर्म सजाता ||
हिल मिल रहें प्रेम से सब,
यह हमको धर्म सिखाता |
सब धर्मों में बसती है,
मानव धर्म की भाषा ||
7 टिप्पणियाँ:
जिसमें देश व राष्ट्र -प्रेम , विश्व-वन्धुत्व व मानव-प्रेम निहित ....... देव दानव मानव, मानव धर्म, विश्व बंधुत्व , गीत लिखो देश के, बंदेमातरम , उठा तिरंगा हाथों में व ऐ कलम अब छेड़ दो...
bahut sundar rachna.
हिन्दू, मुस्लिम, ,ईसाई-
सिख,मानव रहा बनाता |
देश, काल सुविधानुसार ,
वह जीवन मर्म सजाता ||
सुन्दर रचना डॉ. श्याम जी, वास्तव में जो मजा प्रेम में है वह कही नहीं है.
हिल मिल रहें प्रेम से सब,
यह हमको धर्म सिखाता |
सब धर्मों में बसती है,
मानव धर्म की भाषा
bahut sundar v sarthak sandesh.vartman sthitiyon par bilkul khari utarti kavita.badhai.
हिल मिल रहें प्रेम से सब,
यह हमको धर्म सिखाता |
सब धर्मों में बसती है,
मानव धर्म की भाषा ||
डा श्याम गुप्ता जी नमस्ते ! बहुत सुन्दर बातें बताई हैं आपने यदि यही बातें सभी मजहब के लोग समझ लें तो सारे संसार में अमन एवं शान्ति का राज हो !
धन्यवाद कीर्ति जी, शालिनीजी, व भारतीय ब्लॉग लेखक मंच ....
--- नमस्कार मदन जी ..धन्यवाद ....सिर्फ मजहब के लोग नहीं अपितु प्रत्येक मानव मात्र ही यह मानने लगे तो मज़हब होंगे ही नहीं ..बस एक मानव धर्म....फिर आनंद ही आनंद ...
.फिर आनंद ही आनंद ..sundar rachna
धन्यवाद पूनम जी ...निर्मल आनंद ..
एक टिप्पणी भेजें