शुक्रवार, 16 मार्च 2012

कुम्भकर्णी नींद में सोयी सरकार जागो !


    



ये  कैसा  लोकतंत्र  है   जिसमे   जनता   द्वारा   चुनी   गयी   सरकार   न तो  खुद  पर्यावरण से  जुड़े  मुद्दे  पर  ध्यान  देती  है  और  न ही  पर्यावरणविदद   जब   उनका   ध्यान इस  ओर  आकर्षित  करते  हैं  तब . प्रो. जी.डी अग्रवाल जी  द्वारा गंगा की अविरलता और नरोरा से प्रयाग तक न्यूनतम प्रवाह की मांग को लेकर मकर संक्रांति से   किये   जा  रहे  आमरण  अनशन की  सरकार द्वारा  अनदेखी  करना सरकार  की  संवेदनहीनता को उजागर करता है .इसी मुद्दे पर मेल पर सिराज केसर जी द्वारा यह जानकारी साझा की गयी है जो  किसी भी भारत वासी को यह अहसास कराने के लिए काफी है कि एक प्रबुद्ध पर्यावरणशास्त्री   के प्राणों तक की सरकार को परवाह नहीं है -


                    मित्रों! क्या किसी की मृत्यु पर शोक जताने की रस्म अदायगी मात्र से हमारा दायित्व पूरा हो जाता है? गंगा के लिए प्राण देने वाले युवा संत स्व. स्वामी निगमानंद उनके बलिदान पर शोक जताने वालों की बाढ़ सी आ गई थी। समाचार पत्रों ने संपादकीय लिखे। चैनलों ने विशेष रिपोर्ट दिखाई। स्वयंसेवी जगत ने भी बाद में बहुत हाय-तौबा मचाई। गंगा एक्सप्रेसवे भूमि अधिग्रहण के विरोध में रायबरेली और प्रतापगढ़ में मौतें हुईं। मिर्जापुर में किसानों पर लाठियां बरसी। मंदाकिनी के लिए गंगापुत्री बहन सुशीला भंडारी जेल में ठूंस दी गईं। राजेंद्र सिंह जी के उत्तराखंड प्रवेश पर उत्तराखंड क्रांति दल ने उत्पात मचाया। हम तब भी चुप्पी मारे बैठे रहे। क्या यह जरूरी नहीं हैं कि राष्ट्र के लिए.. हमारी साझी विरासत को जिंदा बनाये रखने के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वालों के जीते - जी हम उनके साथ खड़े दिखाई दें?

मित्रों! संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नये नामकरण वाले प्रो. जीडी अग्रवाल का जीवन एक बार फिर संकट में है। गंगा की अविरलता और नरोरा से प्रयाग तक न्यूनतम प्रवाह की मांग को लेकर  वह मकर संक्रान्ति से अनशन पर हैं। माघ मेला, प्रयाग में एक महीने के अन्न त्याग, मातृ सदन- हरिद्वार में पूरे फागुन फल त्याग के बाद अब चैत्र के माह का प्रारंभ होते ही 9 मार्च से उन्होंने जल भी त्याग दिया है। उनकी सेहत लगातार नाजुक हो रही है। चुनावी शोर में मीडिया ने भी उनकी महा-तपस्या की आवाज को नहीं सुनी। बीते दो माह के दौरान शासन ने भी जाकर कभी उनकी व्यथा जानने की कोशिश नहीं की। शासन तो अब भी नहीं चेता है। प्रशासन ने जरूर तपस्वी की आवाज बंद करने के लिए 10 मार्च की रात उन्हें जबरन उठाकर कबीर चौरा अस्पताल, वाराणसी पहुंचा दिया गया है। हालांकि स्वामी ज्ञानस्वरूप जी को गंगा के लिए प्राण देने में तनिक भी हिचक नहीं है। उनकी प्रतिज्ञा दृढ़ है। लेकिन क्या हम उनके प्राण यूं ही जाने दें? 


http://hindi.indiawaterportal.org/node/37295 


                                     कुम्भकर्णी नींद में सोयी सरकार को जगाने के लिए हम सभी को अपने स्तर से प्रयास करने चाहिए  क्योंकि अग्रवाल जी द्वारा किया जा रहा अनशन पूरी मानवजाति  के हितार्थ में ही है .


                                                                     शिखा कौशिक 

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