रविवार, 29 मई 2011

अंदाज ए मेरा: आत्‍मसमर्पित नक्‍सली की कहानी........ उसी की जुबान...



उसकी उमर कोई 21 साल है। वैसे तो 21 साल की उमर कोई बडी उमर नहीं होती लेकिन इस कम उम्र में उसने काफी कुछ झेला है। उसका  नाम संध्‍या है। आज से पहले यदि उसका नाम मेरे जेहन में आया होता तो शायद उसे लेकर मन में क्रोध और नफरत का भाव आता पर आज ये भाव नहीं आ रहे... आज उस पर दया आ रही है और सोच रहा हूं कि उसने न जाने कितनी तकलीफें देखी होंगी.... क्‍या क्‍या सहा होगा.... पर अब उम्‍मीद है कि उसकी जिंदगी सामान्‍य हो जाए।
संध्‍या उर्फ शिबा जिसे नक्‍सलियों ने नाम दिया था उर्मिला.... किस इलाके की रहने वाली है स्‍थान का नाम मायने नहीं रखता पर मायने  रखता है स्‍थान का परिवेश। आदिवासी इलाका जहां की रहने वाली थी संध्‍या.... उसके गांव में अक्‍सर नक्‍सलियों की धमक होती रहती और नक्‍सलियों के बैनर पोस्‍टर गांव में लगे होते.... ऐसे ही किसी पोस्‍टर को पढकर प्रभावित होकर संध्‍या ने नक्‍सली बनने का मन बनाया। वर्ष 2005 की बात है। तब वह दसवीं कक्षा में पढती थी।  उसने गांव में रहने वाले अपने कुछ सहपाठियों से नक्‍सलियों के बारे में  बात की तो उसे पता चला  कि फलां दिन नक्‍सली गांव में बैठक लेने वाले हैं। वो भी पहुंच गई। उसने नक्‍सलियों की बातें सुनीं। क्रांति, जन जागृति और  समाज में फैले अंतर को मिटाने की बातें.... संध्‍या प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। वो पहुंच गई नक्‍सलियों के पास.... पर नक्‍सलियों ने उसे पुलिस का  मुखबिर समझा और उस पर यकायक भरोसा नहीं किया.... काफी सवाल जवाब के संध्‍या आखिर समाज को बदलने(?) का ईरादा  लेकर नक्‍सलियों के साथ हो गई। उसे नया नाम दिया गया, उर्मिला। अब उर्मिला  वहां बन गई दलम एवं मोबाइल मास एकेडमी शिक्षिका। उसका काम था  कम पढे लिखे नक्‍सलियों को पढाना और नक्‍सलियों के पोस्‍टर पाम्‍पलेट का मैटर लिखना। वो घायल नक्‍सलियों का उपचार भी करती, उन्‍हें दवाएं भी देतीं और इंजेक्‍शन भी लगाती। बाद में मास टीम को भंग कर दिया गया, पर उर्मिला का काम जारी रहा।
नक्‍सलियों के साथ रहते ही उसकी मुलाकात सुभाष से हुई। सुभाष जिसका नक्‍सली नाम आयतु था, नक्‍सलियों की दर्रकसा दलम का कमांडर था। सुभाष से उसकी शादी हो गई, लेकिन उनका वैवाहिक जीवन ज्‍यादा नहीं चला और 2007 में आयतु पुलिस के हाथ लग गया। वो अभी जेल में है। उधर जिस विचारधारा को लेकर संध्‍या नक्‍सलियों के साथ गई थी वो  हवा होने लगे और धीरे धीरे उसे समझ आने लगा कि हकीकत क्‍या है।
संध्‍या के ही शब्‍दों में, नक्‍सलियों की जिन विचारधाराओं, भगत सिंह के अधूरे सपने को साकार करने, गरीब आदिवासियों को भूमि और वनोपज का लाभ दिलाने जैसे कई काम करने वह संगठन में शामिल हुई थी लेकिन कुछ ही दिनों में उसे वास्‍तविकता का आभास होने लगा। वो कहती है कि नक्‍सली जो बातें करते हैं और   जो काम करते हैं उसमें जमीन आसमान का  अंतर है.... सब ढोंग है.... महिला उत्‍थान की बात करते हैं  पर ये सरासर गलत है।  वो कहती है कि युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर उनका शोषण किया जाता है और पार्टी फंड के नाम पर अवैध वसूली की  जाती है। वो यह भी खुलासा करती है कि नक्‍सलियों के उपरी कैडर में आंध्र प्रदेश और अन्‍य राज्‍यों के लोग  हावी हैं और छत्‍तीसगढ के आदिवासियों को  सिर्फ शोषण और काम के लिए रखा जाता है।
संध्‍या बताती है कि दल में रहने वाली महिलाओं की स्थिति तो  और भी खराब है। महिलाओं का शारीरिक शोषण किया जाता है और उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया  जाता है। बीमार होने पर ईलाज नहीं कराया जाता। वो बताती है कि परिवार वालों से मिलने नहीं दिया जाता।
छत्‍तीसगढ में सरकार ने नक्‍सलियों के पुनर्वास के लिए पुनर्वास नीति बनाई है जिसके तहत नक्‍सलियों का साथ छोडकर मुख्‍य धारा में आने वाले नक्‍सलियों को रोजगार और समाज की मुख्‍य धारा में  जुडने के लिए आवश्‍यक संसाधन दिए जाते हैं। कहीं से यह पता चलने पर उर्मिला ने नक्‍सलियों का साथ छोडने का मन बनाया और आज ही वह उनके चंगुल से छूटकर आत्‍मसमर्पण किया।
नक्‍सली दुर्दांत होते हैं... उनका कोई इमान नहीं होता..... वो वहशी होते हैं..... उनकी हरकतों से ऐसा ही लगता है लेकिन आज उर्मिला जब संध्‍या के रूप में रूबरू हुई तब समझ आया कि वहां भी शोषण और अत्‍याचार की कहानी है।

7 टिप्पणियाँ:

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने, ऐसा ही होता है|

जिसका निशाना बनते हैं संध्या जैसे भावनात्मक लोग जो सच की जांच पड़ताल नहीं करते|

संध्या जैसे और ना जाने कितने होंगे, ये तो वहाँ से निकल आयीं पर बाकी लोग ना जाने निकल पाएंगे या नहीं

kavita verma ने कहा…

yuvaon ka is tarah ke bhulave me aa kar apni jindagi barbad kar lena shochniya hai.sarkar aur swayam sevi santhaon ko in logo ke purutthan ke liye kam karna chahiye..

shyam gupta ने कहा…

सही दिशा व मार्गदर्शन का अभाव ही युवाओं को इस मार्ग पर धकेलता है...

rubi sinha ने कहा…

सच कहा आपने युवाओ को बरगलाकर ऐसे कार्यो में शामिल किया जाता है. यही हाल कश्मीर और पाकिस्तान में मुस्लिम युवाओ का भी होगा जिन्हें इस्लाम की आयतों के नाम पर धर्मभ्रष्ट बनाया जा रहा है.

गंगाधर ने कहा…

उचित मार्गदर्शन के बिना युवा पथभ्रस्त हो रहा है.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

कोई भी संगठन जब बनता है तब उसके उद्देश्‍य कुछ और होते हैं और कुछ दिनों बाद ही उसका आन्‍तरिक स्‍वरूप बदल जाता है। युवाओं में देश के लिए कुछ करने का जज्‍बा होता है, इस कारण वे ऐसे भाषणों से उनकी ओर चले जाते हैं लेकिन जब असलियत पता लगती है कि उद्देश्‍य तो अब पीछे छूट गया है तब दुख के अलावा कुछ नहीं शेष बचता। ऐसी ही कहानियां समाज के समक्ष आनी चाहिए जिससे वास्‍तविकता का ज्ञान हो।

Shankar "Shashp" ने कहा…

Aapka kahana sahi hai. Mere rajya me aaye din nakshali aatmasamarpan kar rahe hai, jinme mahilayen bhi hain. Unki kahani bhi kamobesh sandhya ki kahani hi hai. Maine apne 'Blog' me is sambandh me likh chuka hun. Main aapse sahamat hun.Aaj ke Nakshali 'Dhongi Krantikari gunde' ho gaye hain. Levi lena, Lutna aur us Dhan ko Prabhawshali Naxali Netayon dwara aish karte huye apne bhawishya ko sankrakshit karna hi raha gaya hai.Sainkro ka shoshan karke hi kuchh log bina mehanat ke aish kar sakte hai.

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