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सेकंड,
मिनट,
घंटा,
दिन,
महीना,
और साल.....।
न जाने
कितने कैलेंडर
बदल गए
पर मेरे आंगन का
बरगद का पेड
वैसा ही खडा है
अपनी शाखाओं
और टहनियों के साथ
इस बीच
वक्त बदला
इंसान बदले
इंसानों की फितरत बदली
लेकिन
नहीं बदला तो
वह बरगद का पेड....।
आज भी
लोगों को
दे रहा है
ठंडी छांव
सुकून भरी हवाएं.....
कभी कभी
मैं सोचता हूं
काश इंसान भी न बदलते
लेकिन
फिर अचानक
हवा का एक झोंका आता है
कल्पना से परे
हकीकत से सामना होता है
और आईने में
खुद के अक्श को देखकर
मैं शर्मिंदा हो जाता हूं
4/30/2011 02:18:00 am
Atul Shrivastava

Posted in: 


5 टिप्पणियाँ:
very nice rachna...
सुंदर बरगद का वृक्ष और सार्थक संदेश देती कविता, हम सभी बदल रहे हैं यह हमारा स्वभाव है वैसे पेड़ भी धीरे-धीरे बदल ही रहा है...
bahut sahi!
शुक्रिया आप सबका।
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बहुत ही बढिया
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