बुधवार, 30 मार्च 2011

दो प्रेरक विचार....डा श्याम गुप्त.....

१- पाप-पुण्य--
" अष्टादश पुराणांयां सारं सारं समुधृतम |
परोपकार: पुण्याय:, पापाय पर पीडिनम ||"----श्रीमद भगवद गीता ...
             ----अट्ठारह पुराणों का सार व अन्य सारे शास्त्रों आदि में उद्धरित बातों के सार का सार यही है  कि, परोपकार ही पुन्य है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाना ही पाप है |

२-दुःख---
"भैषज्यमेतम दुखम ,यदेन्नानुचिन्तयत |"---गीता ..
              -----दुखों का चिंतन न करना ही दुःख निवारण की औषधि है |

6 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

dr sahab ,
is me font me kuchh kami aa rahi hai kripya sudharen anyatha aapki mahtvapoorn post se hame vanchit rahna padega.

shyam gupta ने कहा…

शालिनी जी क्रपया बतायें कि क्या कमी आरही है...क्योंकि मेरे लेपटोप में तो ठीक दिख रहाहै...कैसे पता चले क्या कमी है...

हरीश सिंह ने कहा…

डॉ. साहब बहुत ही धन्यवाद. बहुत ही सार्थक विचार व्यक्त किया आपने. वास्तव में इसे ही हम सच्चा धर्म मिनते है. यदि दूसरे के हित को हम अपना धर्म मान ले तो दूसरे को पीड़ा पहुंचा ही नहीं सकते. आपकी इसी बात पर मैं महाभारत के विजेता की घोषणा करता हूँ. मैंने सभी के पास मेल भेजा लेकिन मुझे किसी ने सलाह नहीं दी. पर आप के इस वाक्य को मैं सलाह मानकर शिखा और शालिनी कौशिक दोनों बहनों को विजेता घोषित करता हूँ. क्योंकि आप और अनवर भाई ने अलग अलग फैसले दिए हैं. पर इन दोनों अपनी बहनों को विजयी घोषित कर रहा हूँ. आप दोनों के फैसले के साथ विधिवत घोषणा पोस्ट के माध्यम से करूँगा. आपका आभार.

हरीश सिंह ने कहा…

यहाँ भी आयें.....
डंके की चोट पर

आशुतोष की कलम ने कहा…

परहित सरिस धर्म नहिं भाई " ..
"पर पीड़ा सम नहिं अधमाई "

ज्ञानवर्धक,
जरुरत है निजी जीवन में अपनाने की इसे..

आशुतोष की कलम ने कहा…

परहित सरिस धर्म नहिं भाई " ..
"पर पीड़ा सम नहिं अधमाई "

ज्ञानवर्धक,
जरुरत है निजी जीवन में अपनाने की इसे..

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