बाजारवाद वर्तमान समय में सर्वोपरी है । हमें सिर्फ लाभ होना चाहिए चाहे उसके बदले नैतिकता ही क्यों ना दाव पर हो । पूंजीवाद का ऐसा दौर भी आयेगा कभी सोचा ना था । मनोरंजन की शुरुआत की गई मानवजीवन से नीरसता दूर करने के लिए , बाद में इसका स्वरुप थोड़ा बदला । मनोरंजन के साथ.साथ इसका प्रयोग संदेश वाहक के रुप में भी किया जाने लगा । कहानी, नाटक कथा आदि इसके प्रमुख स्त्रोत रहे । धीरे-धीरे विज्ञान ने प्रगति की जिसके चलते सूचना तंत्र का मोह रुपी मकड़जाल घर-घर में पहुँच गया । विज्ञान की प्रगति प्रशस्ति के योग्य है, जिसकी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए लेकिन तब जब वह प्रगति हमारे सांस्कृतिक व पारिवारिक मूल्यों को विकास के पथ की ओर ले जाए ना कि पतन की ओर । आज मनोरंजन के नाम पर घर-घर में अश्लीलता परोसी जा रही है। 1982 में एशियाड के दौरान बड़े-बड़े स्टेडियम बने। उन्ही के साथ भारत में रंगीन टेलीविजन आने लगे। पहले इनके दाम ज्यादा थे किंतु प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने की वजह से इनके दामों में अपार कमी आई और इनकी पहुँच घर-घर में हो गई । शुरूआती दौर में मात्र दो चैनल आते थे और रामायण,महाभारत जैसे महाग्रंथों पर आधारित धारावाहिको का प्रसारण होता था, तब मैं बहुत छोटा था, लोग बताते हैं कि जिस समय रामायण या महाभारत का प्रसारण होता था सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था , क्या हिंदू क्या मुस्लिम क्या ईसाई सब इंतजार में लगे रहते थे कि कब रामायण शुरु हो ।
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
मनोरंजन बनाम अश्लीलता---------मिथिलेश
2/18/2011 10:41:00 am
Mithilesh dubey
10 comments
एक वह युग था और एक आज का दौर हैं । आज धारावाहिक, सिनेमा वह सब दिखा रहा है जो हमारे संस्कृति के विरुद्ध है । धारावहिकों, फिल्मों में खुले यौन संबंध , विवाह से पूर्व यौन संतुष्टि इन सबकी वकालत की जा रही है। सारा समाज ही गंदा नजर आ रहा है। अब जब भारत विकास के पथ पर अग्रसर है जाहिर सी बात है विकास का दौर हर क्षेत्र में चलेगा। अभी हाल ही में एक फ़िल्म आई नो वन किल्ड जेसिका फिल्म ने सारे रिर्काड तोड़ दिए फूहड़ता के। पहले फिल्मों में जब गालियां या कुछ अनुचित शब्दों का प्रयोग होता था तब बीप की आवाज आती थी लेकिन अब ये सूक्ष्म पर्दा भी ना रहा। हमारी युवा पीढ़ी अक्सर इन फिल्मों की नकल करने की कोशिश में रहती है । मनोरंजन के नाम पर टीवी और फिल्मों के माध्यम से जो कुछ परोसा जा रहा है उसपर स्वस्थ चिंतन अतिआश्यक हो गया है । आज की नवजात पीढ़ी समय से पहले जवान हो रही है , उसे हिंसा , अश्लीलता तथा फंटासी में ही चरम आनंद मिल रहा है। पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं घटी जो फिल्मों से प्रेरणा स्वरुप की गई । हमारा देश अपने संस्कृति अपने संस्कारो के लिए जाना जाता है। हमारे यहॉं की संस्कृति परिवारवाद पर टीकी है लेकिन पाश्चात्य सभ्यता के चोचलों ने इसे बाजारवाद ला बिठाया है । जहॉं टीवी पर धरावाहिको और रिएलिटी शो के माध्यम से सुंदरियों की खोज की जी रही है वहीं फिल्मों के माध्यम से लड़कियां पटाने के तौर तरीके सिखाए जा रहे हैं। वाजारवाद चारो तरफ छाया है , सेक्स ही सब कुछ रह गया बाकी सब गौण ।
कुकल्पनाओं पर आधारित धारावाहिकों, फिल्मों को तवज्जों दी जा रही है । धारावाहिको में महिलाओं को कुचक्र रचते हुए दर्शाया जा रहा है, फिल्मों में गालियां बकते हुए, जिससे नारी की भाव-संवेदना समर्पण की गरिमा एक ओर एवं विघटनकारी स्वरुप दूसरी ओर हावी हो रहा है। मनोरंजन के नाम पर जो कुछ परोसा जा रहा उससे हमें हैरानी नही होनी चाहिए कि अगर हम अपनी भारतीयता की पहचान खो दे । जरुरी है अश्लीलता को पाबंद किया जाए तथा ललित कलाओं को फिर से पुनर्जीवित कि जाए, टीवी और फिल्मों के माध्यम से सामाजिक नवचेतना का संचार किया जाए।
10 टिप्पणियाँ:
@ भाई मिथिलेश दुबे जी ! पोस्ट आपकी अच्छी है लेकिन आप इस बात पर भी गौर करें कि देवी देवताओं की अर्द्धनग्न और फुल नग्न मूर्तियाँ भारत में प्राचीन काल से ही बनती आ रही हैं । इस विषय में मैंने भाई तारकेश्वर गिरी जी से भी आज यह कहा है कि आप पोस्ट को ध्यान से नहीं पढ़ते और जो मन में आए लिख डालते हैं ।
भाई मैंने तो पूरी पोस्ट में कहीं भी वेद और रामायण का नाम तक नहीं लिया ।
अपने पूर्वजों को नंगा मैं नहीं करता बल्कि आप करते हो और आप ही देखते हो । शिवजी के लिंग आप बनाते हो और फिर पूरे परिवार के साथ देखते भी आप ही हो । कैलेंडर्स पर 'मेनका और विश्वामित्र' को प्रेमालाप करते हुए भी आप ही छापते हो । जिस भी देवी की मूर्ति या उसका चित्र बनाते हो तो उसका पेट और सिर क्यों नहीं ढकते ?
सिर ढकना भारतीय नारी की परंपरा रही है सदा से जिसका पालन इन देवियों ने भी किया होगा तो फिर इन देवियों के सिर से कपड़ा आपने उतारकर इन्हें नंगा मैंने किया है या आपने ?
मुस्लिम इतिहास में ऐसे कई बादशाह , नवाब और ज़मींदार गुज़रे हैं जिन्होंने अपनी अय्याशी में हिन्दू राजाओं को पछाड़ने की पूरी कोशिश की है । जब कोई मुसलमान मेरे सामने उनकी डींग हाँकेगा तो मैं ज़रूर बताऊंगा कि उनकी काली करतूतें क्या थीं ?
आज भी सऊदी अरब आदि देशों के बादशाह हुस्नी मुबारक जैसे ख़ुदग़र्ज़ हैं ।
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पर
बहुत सुन्दर सत्य व शिवं पोस्ट है, मिथिलेश....
---सही है मूर्तियों और समाज के सामने जिन्दा नन्गे घूमने में फ़र्ख होता है....
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
फिल्म एवं टी.वी.पर जो दिखाया जाता है वह साम्राज्यवादी कुचक्र है. रामायण तथा महाभारत सीरियल भी ढोंग -पाखंड परोसते थे.इंसान को गुमराह करते थे और कुछ नहीं.
achchhi post
सही विश्लेषण ,अच्छी प्रस्तुति
देवियों के सिर से कपड़ा---
--देवियां सिर पर कपडा नहीं रखती ..हटाने का सवाल ही कहां है..... उस समय घूंघट आदि जैसी प्रथा का आविष्कार नहीं हुआ था....
यह एक विस्तृत दृष्टकोण के साथ विचार करने का विषय है...हम लिंगोपासना, नागा साधुओं. दिगम्बर जैनाचार्यों के गंगा-जमुनी धार्मिक-वैचारिक परिवेश में रहते हैं अत: हमें संकुचित ढंग से नहीं सोचना चहिए। हम विरोध उसका करें जो निरथर्क हो और समाज के हित में न हो...
भारतीय संस्कृति को गन्दा करने वाले आपत्तिजनक टीवी प्रोग्राम के खिलाफ आवाज उठायें
आज कल कुछ टीवी चंनेल्स के प्रोग्राम्स (जैसे MTV roadies, Big Boss आदि ) ने भारतीय संस्कृति को बर्बाद करने का ठेका ले रखा हैं ये चंनेल्स है जैसे
MTV,
V Channel,
UTV Bindass,
अगर आप एसे टीवी प्रोग्राम से विचलित व् परेशान है जो भारतीय यूवाओ को पश्चिमी संस्कृति की गंदगी व् अश्लिलिलता की तरफ धीरे धीरे धकेल कर भारतीय संस्कृति को बर्बाद कर रहे हैं तो आप उनके खिलाफ आवाज NATIONAL BRODCASTING ASSOCIATION में आवाज उठा सकते हैं
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