मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

दोस्त दुश्मन....प्रेम काव्य...अष्टम सुमनान्जलि--..सहोदर व सख्य-प्रेम...गीत--6 ...डा श्याम

              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज,  भाई-बहन,  मेरा भैया,  सखा ,  दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात  रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी 
---प्रस्तुत है ... षष्ठ रचना....दोस्त दुश्मन .....

ए मेरे प्रिय दोस्त ! तुझको दुश्मनी का हक़ नहीं । 
तू जो दुश्मन, दुश्मनी से फिर मुझे नफ़रत नहीं ।

दोस्त ही दुश्मन बने फिर क्या कोई नफ़रत करे,
दोस्त ही दुश्मन तो कोई क्या जिए और क्या मरे ।

दोस्त दुश्मन बन गया तो दुश्मनों से फिर क्या डर ,
दुश्मनों से भी भला फिर क्यों कोई नफ़रत करे ?

दुश्मनों  की  दुश्मनी तो  बंदगी कहलायगी  ।
वो हमें उत्साह, हिम्मत जीतना सिखलायगी । 

बेरुखी अपनों की हो तो ज़िंदगी खोजायागी ,
एक पल में ज़िंदगी बस बेखुदी होजायागी  ।

है मुझे मंजूर  तेरी दुश्मनी प्यारी सी  सब ,
पर भला क्या दुश्मनी से, दोस्ती मिट पायगी  ।

है मुझे मंजूर जीवन भर तेरी नफ़रत सही ,
पर ये कहदे मुझको तेरी दोस्ती का हक़ नहीं ।।

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