प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज, भाई-बहन, मेरा भैया, सखा , दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी
ए मेरे प्रिय दोस्त ! तुझको दुश्मनी का हक़ नहीं ।
दोस्त ही दुश्मन बने फिर क्या कोई नफ़रत करे,
दोस्त दुश्मन बन गया तो दुश्मनों से फिर क्या डर ,
दुश्मनों की दुश्मनी तो बंदगी कहलायगी ।
बेरुखी अपनों की हो तो ज़िंदगी खोजायागी ,
है मुझे मंजूर तेरी दुश्मनी प्यारी सी सब ,
है मुझे मंजूर जीवन भर तेरी नफ़रत सही ,
---प्रस्तुत है ... षष्ठ रचना....दोस्त दुश्मन .....
ए मेरे प्रिय दोस्त ! तुझको दुश्मनी का हक़ नहीं ।
तू जो दुश्मन, दुश्मनी से फिर मुझे नफ़रत नहीं ।
दोस्त ही दुश्मन बने फिर क्या कोई नफ़रत करे,
दोस्त ही दुश्मन तो कोई क्या जिए और क्या मरे ।
दोस्त दुश्मन बन गया तो दुश्मनों से फिर क्या डर ,
दुश्मनों से भी भला फिर क्यों कोई नफ़रत करे ?
दुश्मनों की दुश्मनी तो बंदगी कहलायगी ।
वो हमें उत्साह, हिम्मत जीतना सिखलायगी ।
बेरुखी अपनों की हो तो ज़िंदगी खोजायागी ,
एक पल में ज़िंदगी बस बेखुदी होजायागी ।
है मुझे मंजूर तेरी दुश्मनी प्यारी सी सब ,
पर भला क्या दुश्मनी से, दोस्ती मिट पायगी ।
है मुझे मंजूर जीवन भर तेरी नफ़रत सही ,
पर ये कहदे मुझको तेरी दोस्ती का हक़ नहीं ।।
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