प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | षष्ठ सुमनान्जलि में रस -श्रृंगार के गीतों को पोस्ट किया गया था | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच गीतों को रखा गया है ....बेटी, पुत्र, पुत्र-वधु , माँ, बेटे का फोन .......| प्रस्तुत है तृतीय गीत ...पुत्र वधू......
पुत्रवधू, कुलवधू हमारे-
मन में बिटिया बन कर रहती,
सदा हमारे साथ ||
तुम हो प्रिय सुत की प्रिय भामिनि,
प्रिय मन का आभास |
सदा रहो तुम अचल प्रेम में ,
अटल प्रेम विश्वास |
मन मंदिर में बेटी बनकर,
सदा हमारे पास ||
तुम हो पुत्री गौरव-कुल की,
पति कुल का विश्वास |
प्रीति-रीति पर चलते रहना,
रखना कुल के लाज ||
मन में रहती बिटिया बनकर ,
सदा हमारे साथ ||
दूर देश से आकर तुमने,
इस कुल को अपनाया |
बना रहेगा तेरे ऊपर,
प्यार का ये साया |
सुख में दुःख में सदा रहेंगे,
हे प्रिय! तेरे साथ |
मन में रहना बेटी बनकर ,
सदा हमारे पास ||
1 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना ..!
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