मुहब्बतों के दायरों को यूँ कम ना कीजिये ,
जितना हो सके खुशबू को फैलने दीजीये ।
इसी की बदौलत है खुशियों की रोसनाई ,
शाम को सुबह की मुहब्बत में ढलने दीजिये ।
कर रहे भवरे शिद्दत से कलियों से आरज़ू ,
सब्र करो जनाब मुहब्बत से खिलने तो दीजिये ।
ये सारे मशायल दुनिया के हल हो जायेंगे ,
बस दिलों को दिलों से मिलने तो दीजिये ।
'कमलेश 'समझ जाएँ वो हाल-ए-दिल अपना ,
बस मुहब्बत भरे लबों को हिलने तो दीजिये ॥
रविवार, 4 सितंबर 2011
9/04/2011 12:21:00 pm
कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹
1 comment
1 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति बधाई.
श्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता.
पहेली संख्या -४४ का परिणाम और विजेता सत्यम शिवम् जी
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