रविवार, 4 सितंबर 2011



मुहब्बतों के दायरों को यूँ कम ना कीजिये ,
जितना हो सके खुशबू को फैलने दीजीये ।

इसी की बदौलत है खुशियों की रोसनाई ,
शाम को सुबह की मुहब्बत में ढलने दीजिये ।

कर रहे भवरे शिद्दत से कलियों से आरज़ू ,
सब्र करो जनाब मुहब्बत से खिलने तो दीजिये ।

ये सारे मशायल दुनिया के हल हो जायेंगे ,
बस दिलों को दिलों से मिलने तो दीजिये ।

'कमलेश 'समझ जाएँ वो हाल-ए-दिल अपना ,
बस मुहब्बत भरे लबों को हिलने तो दीजिये ॥


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