प्रेम किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है- पंचम -सुमनान्जलि..समष्टि-प्रेम....जिसमें देश व राष्ट्र -प्रेम , विश्व-वन्धुत्व व मानव-प्रेम निहित ...७ गीत व कवितायें ...... देव दानव मानव, मानव धर्म, विश्व बंधुत्व , गीत लिखो देश के, बंदेमातरम , उठा तिरंगा हाथों में व ऐ कलम अब छेड़ दो.... प्रस्तुत की जायेंगीं | प्रस्तुत है .....तृतीय कविता ......
..विश्व बंधुत्व .......
बृक्ष वही तो कहलाते हैं,
वही प्रशंसा भी पाते हैं |
सोते बसते छाया में मृग,
और जहां पक्षी आते हैं ||
मरकट गण जिनकी डालों पर,
को अपना सर्वस्व लुटाते ||
मानव हो या बृक्ष, देव बन,
जो सबको देता रहता है |
सभी प्राणियों को सुख देता,
सबका प्रिय भाजन बनता है ||
विश्व प्रेम की ज्योति जलाकर ,
वही प्रेम का दीप जलाता |
विश्व प्रेम वाहक बनता है,
जग को आलोकित कर जाता ||
..विश्व बंधुत्व .......
बृक्ष वही तो कहलाते हैं,
वही प्रशंसा भी पाते हैं |
सोते बसते छाया में मृग,
और जहां पक्षी आते हैं ||
मरकट गण जिनकी डालों पर,
उछल उछल हरषाते रहते |
कीट-पतंगे जिनपर पलते ,
भौंरे पुष्पों का रस लेते ||
खगकुल जिनके तरुशिखरों पर,
जीवन का संगीत सुनाते |
विश्व प्रेम हित सभी प्राणियों-को अपना सर्वस्व लुटाते ||
मानव हो या बृक्ष, देव बन,
जो सबको देता रहता है |
सभी प्राणियों को सुख देता,
सबका प्रिय भाजन बनता है ||
विश्व प्रेम की ज्योति जलाकर ,
वही प्रेम का दीप जलाता |
विश्व प्रेम वाहक बनता है,
जग को आलोकित कर जाता ||
2 टिप्पणियाँ:
sandar prastuti.
खुश हुई यह कविता पढकर
जय जगन्नाथ
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