सोमवार, 9 मई 2011

भ्रष्टाचार का वास्तविक जिम्मेदार कौन ??विप्लव विकल्प विकास "के द्वारा समाधान


मैंने भी सोचा की महाभारत में उतर जाऊं मगर एक कमी खटक रही थी शीर्षक में संचालक मंडल ने सिर्फ भ्रष्टाचार का कारण पूछा है मगर इस कारण को ख़तम करने का सुझाव या विकल्प नहीं माँगा ..मैंने शायद विषयांतर होते हुए कारण के साथ साथ समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश की है "विप्लव विकल्प विकास "के द्वारा ...

मित्रों ,
भ्रष्टाचार इस देश को कैंसर की तरह जकड चुका है..आज सम्पूर्ण व्योस्था पीड़ित और बीमार हो चुकी है..यदि हम आत्ममंथन  करें तो स्वतंत्रता के छह दसक बाद भी हम अपनी सम्पूर्ण जनसँख्या को स्वच्छ पीने  का पानी भी उपलब्ध  नहीं करा पाये, आम आदमी अपनी मूलभूत  आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी संघर्ष  कर रहा है..आखिर क्यूँ??
शायद हर भारतीय का उत्तर होगा भ्रष्टाचार.. हमारी भ्रष्टाचार  रूपी कैंसर से जकड़ी सम्पूर्ण व्यवस्था..और आश्चर्यजनक ये है की इस भ्रष्टाचार रुपी बीमारी का असहनीय कष्ट आम आदमी को सहना पड़ रहा है..इस विषय पर हजारों लेख लिखे जा चुके हैं.. सैकड़ो  संस्थाएं भ्रष्टाचार  के विरोध में संघर्ष का बीड़ा  उठा चुकी हैं.परन्तु परिणाम शून्य  में परिणिति है..
मित्रों यदि किसी ब्यक्ति को कैंसर  हो जाता है तो उसको चिकित्सक  कैसे ठीक करता है..संभवतः चिकित्सा के दो आयाम हैं..प्रथम उन समस्त कोशिकाओं को पहचान कर नष्ट कर दिया जाए जो कैंसर से ग्रसित हैं और द्वितीय-ऐसी व्यवस्था किया जाए जिससे कैंसर की बीमारी स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित  कर सके.. 
और शायद  यही चिकत्सा पद्धति हमारे भारतीय समाज को अपनानी होगी इस भ्रष्ट व्यवस्था को स्वस्थ करने के लिए..सर्वप्रथम हमें वर्तमान में व्याप्त भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करना होगा..परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे पास इस बीमारी को नष्ट करने वाले यंत्र भी संक्रमित हो चुके हैं..कैंसर का इलाज तो शायद कीमोथेरेपी या शल्यचिकित्सा द्वारा हो जाएगा  परन्तु भारतीय समाज में कैंसर को नष्ट करने वाले तंत्र जैसे न्यायपालिका,व्यवस्थापिका स्वतः इस बीमारी का अंग बन गए हैं..आज यही बिडम्बना है भारत की..
संविधान निर्माताओं नए जिन तंत्रों का सृजन किया भारत की व्यवस्था को स्वस्थ एवं सुदृढ़ रखने के लिए,वो आज भ्रष्टाचार के गर्त में डूब गएँ हैं..ऐसे में इस बीमारी का इलाज कैसे होगा..क्या हमारी व्यवस्था सिसक सिसक कर समाप्त हो जाएगी??नहीं...आज हमें इस व्यवस्था को पुनः परिष्कृत करना होगा..
सर्वप्रथम हमें उन तंत्रों को सुधारना होगा जो भ्रष्टाचार की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए बनायीं गयी है.  लोकपाल बिल एक ऐसा ऐसा ही माध्यम है..परन्तु लोकपाल बिल एकमात्र तंत्र है इसको संचालित करने वाली व्यवस्था कमजोर रही तो ये तंत्र भी संक्रमित हो जाएगा..और सारी व्यवस्था अनुपालन के आभाव में अप्रभावी हो जायेगी..
मित्रों ऐसा नहीं की हमारे संविधान निर्माताओं ने कोई समुचित व्यवस्था नहीं की हो..उन्होंने कोई कमी नहीं की..हमे एक जीवंत और प्रभावशाली संविधान दिया..एक सशक्त न्यायपालिका की व्यवस्था की ,एक जिम्मेदार कार्यपालिका एवं ईमानदार व्यवस्थापिका की कल्पना की.परन्तु उन महानुभावों ने आने वाले अपने पुत्रों की रूप रेखा एवं परिकल्पना करने में भारी भूल कर दी..आजादी के लिए सर्वश्व न्योछावर करने वाले वो सब आम आदमी थे..उनकी कल्पना थी कि आजादी  के बाद भारतियों पर किसी  राजा या किसी तानाशाह का शासन  हो बल्कि भारत का शासन आम आदमी के हाथ में हो ..वह आम आदमी, जो बरसों से गुलामी कि जंजीरों में जकड़ा अन्याय एवं अत्याचार सहन करता रहा..वह स्वतंत्रता के बाद स्वयं अपना शासन चलाये..उसे किसी कि कृपा का पात्र  बनना पड़े..और इसीलिए ऐसी व्यवस्था का चुनाव किया गया जो जनता के लिए,जनता के द्वारा,जनता कि व्यवस्था हो..
परन्तु यहीं पर संभवतः वो भूल कर बैठे..उन्होंने मान लिया कि इस देश में हर व्यक्ति गाँधी कि तरह आधा शरीर ढक कर देश सेवा करता रहेगा,या आने वाली हर संतान लाल बहादुर शास्त्री या राजेंद्र प्रसाद जैसी होगी..उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि संसद भवन कि जिन कुर्सियों पर त्याग एवं तपस्या के पर्याय देशभक्त विद्वानशिक्षाविद बैठे हैं कल उसी पर फूलन देवी जैसी कुख्यात दस्यु भी बैठेगी..या फिर जिस राष्ट्र का सञ्चालन शास्त्री   जी जैसे ईमानदार व्यक्ति ने किया हो ,उसी देश में करूणानिधि जैसे बेशर्म धृतराष्ट्र कि कृपा पर,इस महान राष्ट्र का प्रधानमंत्री बेचारा बन कर अपना समय काटेगा..और शायद यही भूल हमारे लिए अभिशाप बन गयी है..
संविधान में प्रधानमंत्री पद का सृजन करते समय कभी  बाबू  राजेंद्र प्रसाद ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि आने वाले समय में भ्रष्टाचार  की पोषक उनकी संताने ऐसे व्यक्ति को इस पद पर किसी बिदेशी मूल की महिला आशीर्वाद से बिठा देंगी, जिसने जनता के बीच जा कर लोकतंत्र का पाठ ही  पढ़ा हो..शायद उन्होंने ये कल्पना नहीं कि होगी कि मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रत्याशी कि योग्यता नहीं उसका बाहुबल आधार बन जायेगा..संभवतः शायद उन्होंने इसलिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कि जिससे भ्रष्टाचार के कैंसर को फैलने से रोका जा सके..

अतः मित्रों हमारे समक्ष एक ही विकल्प है कि इस महान राष्ट्र को इस भयानक बीमारी से बचने के लिये कैंसर उपचार कि चिकित्सा पद्धति को अपनाना होगा..इस द्विआयामी पढ़ती को भविष्य में हम "विप्लव,विकल्प,विकासकी यात्रा के रूप में देखेंगे..सर्वप्रथम  हमें व्यवस्था में विद्यमान संक्रमित अवयवों को पहचानकर व्यवस्था से निकलना होगा.तदुपरांत ऐसी व्यवस्था की स्थापना करनी होगी कि कभी भी किसी भी परिस्थिति में ये तत्त्व पुनः व्यवस्था में  घुसने पायें..
मित्रों ये बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है..क्यूकी तंत्र के सञ्चालन कि जिम्मेदारी जिन हाथों में है वे कभी भी ऐसी व्यवस्था का निर्माण नहीं होने देंगे जो उन्हें पदच्युत करे..जरा सोचिये कि भ्रष्टाचार के प्रणेता एवं पोषक आज के राजनीतिज्ञ कभी ऐसा लोकपाल बिल बनने देंगे जो कल उनको ही कटघरे में खड़ा कर दे..क्या करुणानिधि,जयललिता,मायावती आदि आदि महामानव कभी ऐसे बिल के पक्ष में संसद में बहस एवं मतदान होने देंगे..
और आदरणीय अन्ना जी या कोई भी ऐसा सोचते है तो ये मात्र एक दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है..हाँ,यह अवश्य संभव है कि ऐसा बिल लाया जाये परन्तु उसकी कीमत ये तथाकथित लोग सिविल सोसाईटी और अन्ना जी से वसूल लें..ये कीमत हो सकती है जैसे; प्रधानमंत्री कार्यालय( पीएमओ),न्यायपालिका को इससे बाहर रक्खा जाये.या फिर लोकपाल  की न्युक्ति का अधिकार माननीय प्रधानमंत्री जी को हो और आदरणीय सतर्कता आयुक्त थामस की तरह किसी अतियोग्य व्यक्ति को इस पद पर बिठा कर इतिश्री कर ली जाये..
तो फिर विकल्प क्या है???तत्कालीन विकल्प है लोकपाल बिल को इतना सशक्त एवं स्वतंत्र बनाया जाए की इसकी परिधि में भारतीय व्यवस्था का हर हर अंग हर पहलू शामिल हो..सन्तरी से लेकर प्रधानमंत्री तक इसके भय से इतना सहमा हो की वो अपने पद का दुरूपयोग करने की दूर दूर तक  सोच सके..माल्या से लेकर मलाइका अरोरा तक हर भारतीय अपनी आय के एक एक पैसे का हिसाब देने के लिये बाध्य हो..
जरा सोचिये राजनीति करने वाले राजनेता जिनका कोई वेतन नहीं होता वो किस बूते दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में करोडो  की कीमत वाले आलिशान महलों में रहते हैं तथा करोडो की आयतित विदेशी वाहनों में घूमते हैं?? 
मुख्यमंत्री,मंत्रियों सांसदों की एक चुनाव से दुसरे चुनाव के  बरसों के अन्तराल में १० गुना से २० गुना तक संपत्ति में वृद्धि हो जाती है..जबकि देश की आर्थव्यवस्था % तक नहीं बढ़ पा रही है..अतः नयी व्यवस्था में हर व्यक्ति के आय की पूर्ण रूप से ईमानदारी के साथ जाच हों तथा उसकी अधिकारिक एवं ज्ञात आय से अधिक संपत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दी जाए..जैसे आजादी के बाद राजा महराजाओं की तमाम संपत्तियों को अधिगृहित कर लिया गया..मधु कोड़ा और लालू  और शरद पवार जैसे सभी लोगों की  पिछले सालों में जो भी संपत्ति हो उसके अनुसार उनकी संपत्ति उन्हें दे कर अरबो की  लूटी हुई उनकी दौलत राष्ट्र को समर्पित कर दी जाये..क्यूकी ये भारत माता की निधि है जिसे उसके नालायक संतानों लूट कर बिदेशों में भेज रही हैं..अमेरिका इंग्लैंड एवं अन्य देशों में जमीन घर एवं होटल ख़रीदे जा रहें हैं..वास्तविकता ये है की इन तमाम लोगों को इस देश में रहने का अधिकार ही नहीं है..इन देशद्रोहियों को राष्ट्रद्रोह के अपराध के लिये निष्काषित करना होगा..
लोकपाल या लोकपाल जैसी किसी संस्था को असाधारण रूप से सशक्त करना होगा..चाहे उसके लिये कुछ भी करना पड़े संभवतः विप्लव... विप्लव ही एकमात्र उपाय है भ्रष्टाचार के कैंसर  से संक्रमित इस व्यवस्था की कीमोथेरेपी या शल्यचिकित्सा करने का.. 
परन्तु इससे भी महत्वपूर्ण है चिकित्सा की दूसरी अवस्था..जिसमें ऐसा इलाज किया जाए की बीमारी के नए जीवाणु व्यवस्था में पुनः प्रवेश  पा सके इसके लिए  रोग्प्रतिरोधी  क्षमता का विकास करना होगा.किसी भी व्यवस्था को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखने के लिए व्यवस्था के प्रवेश द्वार को पूर्ण रूप से प्रतिरोधी बनाना होगा..प्रवेश द्वार पर ऐसा फिल्टर लगाना होगा जिससे कचड़ा एवं बीमारी के रोगाणु व्यवस्था में  घुसने पायें..
इसके भी दो उपाय हैं; पहला की पानी की मात्रा इतनी ज्यादा हो की उसमें मिली हुई अशुद्धियाँ अल्प मात्रा में रह जाएँ..इसके लिए समाज को स्वच्छ जल जैसे विद्वत समाज,लेखक,वैज्ञानिक,विचारक उनको व्यवस्था में आना होगा.हमारी हार का मुख्य कारण यही है की स्वच्छ जल ने राजनीति को गन्दा नाला समझकर मुह मोड़ लिया है..परिणामस्वरूप व्यवस्था में सिर्फ गन्दगी ही रह गयी है..
दूसरा उपाय है की फिल्टर को सशक्त बनाना..ऐसा फिल्टर जिससे किसी भी तरह की गन्दगी  पर हो सके..भारत जैसे लोकतंत्र में व्यवस्था का प्रवेश द्वार है चुनाव...वर्तमान की कमजोर  चुनावी प्रक्रिया के फिल्टर से छनकर जो दूषित जल आज व्यवस्था में घुस गया है उसने सारी व्यवस्था को कैंसर से ग्रसित कर दिया है..इस चुनावी फिल्टर को सशक्त बनाना होगा..संविधान निर्माता तो निर्मल गंगाजल थे,जो गंगोत्री से निकलकर व्यवस्था को हरा भरा करते थे..और उन्होंने शायद यही कल्पना की थी की उनकी आने वाली संताने भी उसी तरह निर्मल होंगी..संभवतः उन्होंने चुनावी फिल्टर में ऐसी व्यवस्था नहीं की जो फूलन देवी मायावती,लालू,आदि को व्यवस्था में घुसने से रोक सके.. परन्तु आज हमे अपने पूर्वजों के अधूरे कार्य को पूरा करना होगा..ऐसी चुनावी व्यवस्था का निर्माण करना होगा जिसमें भ्रष्टाचार के वायरस की कोई जगह  हो..
आज उत्तर प्रदेश में ग्राम सभा के चुनाव में वही व्यक्ति उम्मीदवार होने की सोच सकता है जिसके पास १० लाख रूपये हों..जो १०-२० बन्दूको का मालिक हो ..जो चुनाव से पूर्व हार मतदाता हो उपयुक्त गिफ्ट दे सके.जरा सोचिये ये तो ग्राम प्रधान के चुनाव की परिस्थितियाँ  हैं विधायक  सांसद के चुनाव में क्या होगा???आज चुनाव पूर्णरूपेण एक व्यापार  बन गया है..आप किसी तरह जोड़ तोड़ कर निवेश कर दीजिये अगली 
कई पीढ़ियों तक उसका लाभांश आप को मिलता रहेगा...पिछले दिनों एक चैनेल के आदरणीय पत्रकार ने अन्ना हजारे से प्रश्न किया की क्यों नहीं आप  चुनाव  जीत  कर व्यवस्था में आते हैं,और क्यूँ नहीं देश का सुधार कर सकते हैं..इस हास्यास्पद प्रश्न  पर  आप की क्या प्रतिक्रिया होगी?? शायद वही जो अन्ना हजारे की थी..अरसठ हज़ार रूपये की संपत्ति का मालिक क्या आज के  भारत में चुनाव में खड़े होने का स्वप्न देख सकता है??? जाति धर्म पैसे आदि की संकीर्ण जल में उलझा हुआ मतदाता अन्ना हजारे को वोट देगा या शरद पवार और विजय माल्या को???
फिर आप क्या उम्मीद करते हैं..किसी विचारक ने कहा था की राजा एवं सैनिक का विवाह नहीं होना चाहिए..क्यों?? उस विचारक का संभवतः समाज के ये तीन संरक्षक यदि विवाह,परिवार के लोभ में  पड़ जायेंगे तो अपने कर्तव्यों का निर्वाह ठीक ढंग से नहीं कर पाएंगे..
मैं इसका समर्थक तो नहीं हूँ पर इतना जरुर मानता हूँ की आज की वर्तमान चुनावी व्यवस्था में एक ऐसा चक्र चल रहा है की जिसके पास अथाह संपत्ति होगी वो चुनाव जीतकर कानून बनाने के हक़दार होंगे और वे वही कानून बनायेंगे जो उनकी और उनके तथाकथित आर्थिक साम्राज्य की रक्षा और उन्नति करे..फिर इस कुचक्र में सत्ता हर चुनाव में आम आदमी से दूर होती जाती है.८० के दशक में लखपति सांसद होते थे,९०न के दसक में करोडपति सांसद बनने लगे..आर अब तो १०० करोड़ और १० हज़ार करोड़ वाले सांसद बनने लगे..तो क्या यही है भारत का लोकतंत्र जो लोगों के लिए,लोगो के द्वारा,लोगों का तंत्र है???फिर सामंतवादी या तानाशाही व्यवस्था और आज के हमारे लोकतंत्र में क्या अंतर है?अजित पवार,राहुल गाँधी,उद्धव ठाकरे,अखिलेश यादव,और  जाने कितने लोकतंत्र के राजकुमार संसद में बैठते हैं,कानून बनाने के लिए..इनकी क्या योग्यता है जो करोडो भारतियों में नहीं है??शायद यही की इनके माता पिता इस देश पर हुकूमत कर चुके हैं,और ये उन आदरणीय एवं योग्य माता पिता के घर में पुत्र या पुत्री बनकर  गये..तो फिर क्या फर्क है हमारे देश के राजकुमारों और गद्दाफी पुत्रों में...माफ़ करें मैं  बार बार राजकुमार शब्द इस्तेमाल कर रहा हूँ हलाकि ये शब्दावली लोकतंत्र की नहीं है,मगर इन लोगों ने लोकतंत्र को राजशाही बना के ही रखा है..कुछ तथाकथित लोकतान्त्रिक विचारकों को मेरी यह तुलना अनुचित लगे परन्तु यही कटु सत्य है भारतीय लोकतंत्र का ....
मित्रों, तो क्या हम उसी तरह असहाय और निरीह हो कर इस व्यवस्था को चलने दे..शायद नहीं..हमे ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिसमें एक इमानदार गरीब विद्वान २५ वर्षीय भारतीय युवक राहुल गाँधी या सुप्रिया सूले अथवा अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव में उम्मीदवार बनकर जीतने की क्षमता रखता हो..आप में से अधिकांश मेरे इस वक्तव्य पर हस पड़ेंगे ..परन्तु हमारे संविधान निर्माताओं ने यही कल्पना की थी..आज हमें इस व्यवस्था को परिवर्तित करना होगा परन्तु यह अत्यंत ही जटिल एवं कठिन कार्य है..
मात्र लेख लिखने और भाषण  देने से यह नहीं होगा ..क्यूंकि  लोकतंत्र के ये राजकुमार किसी भी ऐसी सोच को पनपने से  पहले ही लोकतंत्र की दुहाई दे कर समूल नष्ट कर देंगे..परन्तु क्या हम हार मान लें..हजारों बर्षों की गुलामी के बाद मिली स्वाधीनता को उन मुट्ठीभर राजकुमारों के हाथ सौंप कर बैठ जाएँ??शायद नहीं...हमें फिर  उठाना होगा और पुनः एक बार स्वाधीनता का महायज्ञ करना होगा..जिसका नाम मैंने "विप्लव" दिया है..चूँकि में कानून का ज्ञाता नहीं हूँ परन्तु मैं अनुरोध करूँगा कानून के विद्वानों का जो हमारे साथ आयें और भारत के संविधान की आत्मा के अनुरूप एक ऐसे कानून का प्रारूप तैयार करें जिसके फिल्टर से कोई भी गन्दगी हमारी व्यवस्था में  घुसने पाए..हमें ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे भारतीय लोकतंत्र  का चुनावी अपहरण इस राजकुमारों सामंतों धनाढ्यों एवं बाहुबलियों  द्वारा  हो..
मेरा करबद्ध निवेदन हैं उच्चतम और उच्च न्यायलय के तमाम विद्वान राष्ट्रभक्त न्यायधीशों एवं अधिवक्ताओं कानूनविदों एवं संविधान विशेषज्ञों से की ये सभी लोग  लोकतंत्र का अपरहरण रोकने में आगे आये और सहायता करें सामान्य जनमानस की..आप सब संबल हैं आप सब आइये एक मंच पर जिसे हम "विकल्प" कहेंगे,एवं भारतीय चुनाव प्रक्रिया को आम आदमी के लिए बनाने का  प्रयास करेंगे..एक ऐसी व्यवस्था हो जिसमें कोई भी भारतीय इस प्रक्रिया में भाग ले सके मतदाताओं को मताधिकार उपयोग करने का अधिकार हो दुरूपयोग करने का नहीं..राजकुमारों और महारानियों की शराब और कबाब द्वारा इस भारतीय लोकतंत्र का भविष्य  तक किया जाए..मित्रों हम एक बार ऐसा चुनावी "विकल्प" तैयार कर लें उसके बाद इस सशक्त फिल्टर को इस तरह व्यवस्था में प्रतिस्थापित किया जाए की कोई भी प्रदुषण इस व्यवस्था को बीमार  कर सके .. फिर "विकास"  के पथ पर हम अग्रसर हो पाएंगे ..यह एक मुश्किल एवं लम्बा संघर्ष है परन्तु हम अवश्य लड़ेंगे..अपने राष्ट्र के लिए उस स्वाभिमान के लिए जिसके लिए हजारों भारतियों ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया ..
शायद हमें विप्लव करना पड़े..और फिर एक विकल्प प्रस्तुत करना पड़े तभी हमारे राष्ट्र का विकास संभव है...
जय हिंद 





5 टिप्पणियाँ:

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak v sateek aalekh.

Shalini kaushik ने कहा…

aapke aalakh jaise aalekh hi is disha me atulniy mahtavpoorn yogdan de sakte hain matr doshi kaun dekhne se dosh door nahi hota jab taq use door karne ke upay n kiye jayen sarthak aalekh.aabhar.

तेजवानी गिरधर ने कहा…

सटीक विचार है, मगर भ्रष्टाचार का कारण हमारे स्वयं के भीतर मौजूद है, आम आदमी भ्रष्ट है, पूरी व्यवस्था भ्रष्ट है, उसमें से भ्रष्ट नेता, भ्रष्ट अफसर, भ्रष्ट व्यापारी, भ्रष्ट पत्रकार ही पैदा होते हैं

हरीश सिंह ने कहा…

आशुतोष जी अच्छी पोस्ट, हमने सिर्फ कारण कहा निवारण इसलिए नहीं की लम्बा विषय हो जाता, जिसे अलग से भी दिया जा सकता था, पर भाई आप क्रन्तिकारी ठहरे, और वह भी आशुतोष -- तांडव तो करेंगे ही.
--

आशुतोष की कलम ने कहा…

आप सभी का धन्यवाद कृति पसंद के लिए..
हरीश भाई@ कुछ दिन पहले मिअने एक कविता लिखी थी लोकतंत्र पे....डाक्टर श्याम गुप्ता जी की टिपण्णी थी की कवि को इसका उपाय भी बताना चाहिए की आगे क्या किया जाए,,
बस याद आया की श्याम गुप्ता जी निर्णायक मंडल में भी है तो बिना उपाय के लेख को कैसे पूर्ण मानेंगे ..इसलिए उपाय भी लिख डाला

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