गुरुवार, 26 मई 2011

परिवार में नाराज़गी होती ही है... पलायन क्यों..?

शीघ्र होगा संचालक मंडल का गठन 
"भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" परिवार के सभी भाई-बहनों को को मेरा प्रणाम. 
दोस्तों मैंने आज जब इस ब्लॉग पर आया तो देखा हमारे दो प्रतिभाशाली युवा भाइयों के बीच  वैचारिक जंग छिड़ी हुयी है, देखा जाय तो मैं इस बात को हमेशा समर्थन देता हूँ की आपस में वैचारिक प्रतिद्वंदिता होना आवश्यक है. एक स्वस्थ परम्परा के साथ वाद-विवाद होने से निश्चित रूप से हमारा ज्ञानवर्धन ही होता है. पर तकलीफ तब होती है जब इसे लोग व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का माध्यम बना लेते है. दोस्तों हम लोंगो के अन्दर हर प्रकार की प्रवित्तिया समाहित हैं. कहा भी गया है इन्सान अच्छाईयों और बुराइयों का एक पुतला है. {अब पुतला शब्द पर बहस न करें] अहिंसक और हिंसक दोनों प्रवित्तियां हमारे अन्दर ही विराजमान है. लिहाजा हम अगर यह कहे की हम कभी गलती कर ही नहीं सकते तो साफतौर पर हम झूठ बोल रहे है. बड़े से बड़ा विद्वान भी कही न कही गलत हो सकता है. 
हमारे कहने का अभिप्राय यह है की इस मंच की स्थापना आपसी भाईचारा और प्रेम की नीव पर रखी गयी है. यही कारन है की आज तक यह मंच विवादों से परे रहा है. हा सार्थक बहस के हम सदैव पक्षधर रहेंगे. धार्मिक मुद्दों को लेकर भले ही बहस छिड़े पर आरोप-प्रत्यारोप से परे. और हम विवाद से बचे रहे इसके लिए "नियम {अवश्य पढ़े}" भी बनाये गए. दोस्तों यह मात्र एक सामुदायिक ब्लॉग ही नहीं बल्कि यह प्रत्येक भारतीय ब्लॉग लेखको का यह परिवार है. और इस परिवार को विवाद रहित बनाये रखने की जिम्मेदारी सबकी है. 
परिवार को सुचारू रूप से संचालित करने की जिम्मेदारी परिवार के मुखिया  की होती है. पर मैंने खुद को कभी भी मुखिया नहीं माना, पर अब मैं इसकी आवश्यकता समझ रहा हूँ. मैं शीघ्र ही संचालक मंडल का गठन करूँगा और चयन किये गए मित्रो को इस परिवार के बारे में आपसी सहमती बनाकर पूर्ण रूप से निर्णय लेने की स्वतंत्रता होगी. 
उम्मीद है आप लोंगो का सहयोग बना रहेगा, धन्यवाद.

14 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

hareesh ji ham bhi kal se dekh rahe hain ki aashutosh ji aur yogendra ji ke beech me vaicharik bahas chhidi hui hai man kiya ki dono ko roken kintu fir hath rook gaya ki kahin dono ke beech me fans hi n jayen aur dono se hi narajgi mol le len.aaj jab aapki post aayee to hamne bhi kuchh kahne kee himmat kee hai .aakhir kis parivar me matbhed nahi hote kahte hain ki jahan do bartan honge khatkenge hi par kya aise me ghar ko chhod dena hi samasya ka samadhan hai.main nahi manti ki jara see bat par ghar chhod dena kisi bhi samasya ka samadhan hai balki ye to palayan hai apni jimmedari se aur ham nahi mante ki aashutosh ji palayanvadi hain .aashutosh ji se ham sabhi ek bar ye nivedan karte hain ki vapas aa jao aapke bina ye manch soona hai aur jab ham sab ek hain to fir kya bat hai miljul kar samasya ka koi upukt samadhan dhoondh hi lenge.vapas aa jaiye aashutosh ji bblm ka patta patta buta buta aapki bat joh raha hai.please man jaiye .

आशुतोष की कलम ने कहा…

डाक्टर श्याम गुप्ता से क्षमा चाहूँगा अपनी इस कविता की पंक्तियों को टिपण्णी के रूप में कहना चाहूँगा..प्रस्तुत करने के लिए..


हे कृष्ण मुझको बतला दो,
इस कलयुग के महाभारत में..
मैं कैसे शस्त्र उठाऊंगा…
जब नकुल भीम और कुंती को,
कौरव सेना में पाऊंगा………..


पांचाली हो या गांधारी,
या हो दुर्योधन अत्याचारी..
सब एक साथ हैं खड़े हुए….
हे कृष्ण यही है द्वन्द मेरा,
कोई कैसे इनसे युद्ध लड़े………….


हे केशव मुझको मुक्त करो,
इन धर्म सत्य की बातों से…
मुझको कुंठा से होती है,
इन गीता के उपदेशों * से….
इस युग की धर्मपरीक्षा में,
मैं अधर्मी ही कहाऊंगा…
ये नर नारी सब अपनें हैं,
मैं फिर वनवास को जाऊंगा…
तुम भी रणछोर कहाये थे,
मे तुमको ही दोहराऊंगा…
.....
Thanks Harish Bhai shalini ji...Purvanchal blog lekhak manch bhi isi pariwar ka hissa hai..kisne kaha maaen pariwar sae baahar hun.....

हरीश सिंह ने कहा…

इस मंच कोई नहीं जायेगा शालिनी जी, जहा आप जैसे लोग परिवार में शामिल है वह परिवार भंग नहीं हो सकता. मैं आपकी भावनाओ की क़द्र करता हूँ.

yogendra pal ने कहा…

मेरा भी यही कहना है कि वैचारिक मतभेद होंगे ही, उसका अर्थ यह तो नहीं कि हर बार छोड़ने के लिए कहा जाए|

आशुतोष जी का जो उद्देश्य है वही मेरा भी है, मैंने उस विद्यार्थी से कुछ जानकारियां मांगी जो उसने अभी तक नहीं दीं और ना देगा क्यूंकि वो सब मनगढंत है| और आशुतोष जी ने बिना सच को जाने ही यहाँ पर उसकी बातों को लिख दिया

या तो वह विद्यार्थी गलत है या फिर उसके अध्यापक जो भी हो अपराधी को सजा मिलनी चाहिए, आशुतोष जी ने लेख लिखा और जब मैंने उनसे सच जानने के बारे में कहा तो उनका कहना था कि विद्यार्थी को स्कूल से निकाल दिया जायेगा, आज की तारीख में स्कूल से निकाल दिए जाने पर क्या हो जायेगा? कहीं ना कहीं एडमिशन मिल ही जायेगा| कम से कम गलत बातें बोलने बाले अध्यापक को सजा तो होगी|

और उनका विरोध करने पर उनके पास कुछ कहने के लिए नहीं होता बस एक ही बात "मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो"

क्या तथ्य परक, सचाई जान कर नहीं लिख सकते?

और उस लेख में किस तर्क के आधार पर हिंदू या मुस्लिम का उल्लेख किया गया? और वो भी मुसलमान शब्द ना लिख कर बहुत ही गंदे तरीके से मुल्लों शब्द का प्रयोग किया गया, इस सब के बाद भी उनका कहना है कि हम सेकुलर श्वान हैं और वो अकेले सही हैं|

इस तरह के लेख एक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर लिखे जाते हैं, जो बहुत ही गलत है|

आशुतोष जी के अच्छे लेखों पर मैंने उनकी तारीफ भी की है पर इस तरह के लेखों पर कमेन्ट नहीं करता, पर जब फोलोवर की संख्या में स्थिरता आ गयी तो ऐसा करना पड़ा|

आज इस मंच के पास इसके समकक्ष प्रारंभ हुए मंचों से ज्यादा फोलोवर तथा सब्सक्राइबर हैं तो वो इसलिए क्यूंकि यहाँ पर स्वस्थ्य सामग्री परोसी जा रही है|

यदि आशुतोष जी उन अध्यापकों को उस स्कूल से निकलवाने के लिए प्रयत्न करें तो जानूं कि वो सच में कुरीतियों के लिए चिंतित हैं, लिख तो कोई भी सकता है

हरीश सिंह ने कहा…

अच्छी कविता है आशु जी, कौरव और पांडव हर युग में अलग ही रहेंगे. उस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है. लोग दिन को आपस में लड़ते थे पर शाम को आपस में मिलकर हालचाल भी लेते थे. हमेशा सत्य के लिए अपने सत्कर्मो पर अडिग रहे. कभी किसी के ऊपर बेवजह आरोप न लगाये और न ही अपने ऊपर लगाने दे. ताकि हम सब किसी मोड़ पर मिले तो नजरे नहीं चुरानी पड़े. लिहाजा हमेशा सत्य के साथ रहे, अधर्म न करे और न सहे. हिंसा न करे और न सहे. सच हर युग में परेशान होता रहा है पर पराजित कभी नहीं होता. हमारा स्वाभिमान तभी सुरक्षित है जब हम अपने ऊपर किसी को अंगुली उठाने का मौका न दे. http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_7781040_1.html जरा इस लिंक को देखिएगा. ८० देशो में विश्व हिन्दू परिषद् कार्य करता है. पर किसी देश में अंगुली नहीं उठी. लेकिन भारत में हमेशा अंगुली उठती है. क्यों आप भी जानते है हम भी. और वे भी जो कुछ बोलना नहीं जानते. पर सच क्या है सब जानते है. बाकी आप समझदार है. बस खुद के ऊपर नियंत्रण रखा करे, आवेश में हम दिल से काम लेते है पर दिमाग को सक्रिय रखे.
योगेन्द्र जी की बात अपने जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं. वे हमारे साथ इसीलिए है क्योंकि हम लोंगो के विचार मिलते है. आप के लिए योगेन्द्र जी का गाना "मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो" सटीक बैठ रहा है. यदि हम प्रमाणित बाते लिखेंगे तो सार्थकता बनी रहेगी. किसी को अंगुली उठाने का मौका न मिले यही उचित है. आप दोनों अपनी जगह सही है, बस उत्तेजना पर काबू रखे, यह मंच के लिए लाभप्रद है.

आशुतोष की कलम ने कहा…

हरीश जी??
की आप अप्रत्यक्ष रूप से ये कहना चाह रहें हैं की..मैं अप्रमाणिक लिखता हूं..क्या आप को नहीं लगता एक घटना विशेष को मुद्दा बनाकर मुझे लक्ष्य बनाया जा रहा है...उस बालक के स्कूल या घर दोनों पर बात पहुचेगी तो शारीरिक और मानसिक यातना के दौर से गुजरेगा वह...
..
समस्या किस बात से है आशुतोष से ,मुल्ला लिखने से, या उस बालक की आप बीती पर ....अगर बात इसकी ही है की मैंने उसकी भावनाए क्यों लिखी बिना उसके घर में जा कर उसके घर का माहौल बिगाड़े बिना तो मैं अपराधी हूं..
आप मुझे सूली पर लटका दे मगर में एक बालक का विश्वास नहीं तोड़ सकता..अगर आज मैंने ऐसा किया(उसके घर गया या स्कुल) तो आज के बाद वो भी सेकुलर ............लोगों की श्रेणी में खड़ा दिखेगा..क्यूकी हमारे जैसो को तो वो दोमुही बाते करने वाला समझेगा..
मैं हरगिज ही हिंदुत्व की बात करने वाले एक नवोदित बालमन को ऐसा कष्ट नहीं दूंगा..चाहे मेरा कितना भी अपमान हो..हमारे आराध्य ने तो गरल को पि लिया था...कुछ तो अनुसरण कर ही सकता हूं..
बार बार क्यों मुझे क्यों नए नए विशेषण दिए जा रहें हैं इस मंच पर...मेरे जो भड़ास थी मैंने तो यहाँ नहीं लिखा ...जिसे लिखना है अपने ब्यक्तिगत मंच पर लिखे..
" मुझे नहीं लगता की मैं मायके चली जाउंगी ,तुम देखते रहियों विशेषण उपयुक्त है..मगर आप को लगता है तो शायद नियमानुकूल ही होगा"
मैंने नहीं कहा न ही कहूँगा की

" मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है..क्या मेरे हक में फैसला देगा"....

आशुतोष की कलम ने कहा…

मुल्ला और मुस्लमान में अंतर:

मुसलमान : इश्लम में आस्था रखने वाला ब्यक्ति

मुल्ला १ मुसलमानी धर्म-शास्त्र का आचार्य या विद्वान।
२. मकतब में छोटे बच्चों को पढानेवाला मुसलमान शिक्षक।

उम्मीद है बंधुओं को मुल्ला और मुसलमान का अंतर मिल गया होगा..


ये मेरी परिभाषा नहीं है ....इसे शब्दकोष से मान्यता है...एक मर्यादित शब्द आशुतोष के मुह से निकलते ही अमर्यादित हो गया..


१ न ही मैंने लखा है..

काकर पत्थर जोड़ के, मस्जिद लिए बनाय। तो चढी मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा हुआ खुदाय॥ ...

इसमें भी मुल्ला शब्द है...

२ 18वीं शती ईसवी में बलोच भाषा के प्रेम कवियों में मुल्ला फ़ाज़िल सीमक, मुल्ला करीमदाद, इज्ज़त पंजगोरी, मुल्ला बहराम, मुल्ला कासिम तथा मलिक दीनार के नाग अग्रगण्य हैं। ये भी आशुतोष नहीं कहता है ये भी इतिहास है


अब कैसे मुल्ला अभद्र हुआ ...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

हाहाहहाहा मैंने भी सुबह जब ये सब पढा तो हैरानी हुई, क्योंकि आलोचना की आड में हमले शुरू हो गए। देखिए ये सही है कि यहां ये तो नहीं चल सकता कि

तुम मुझे पंत कहो और मै तुम्हे निराला..

लेकिन हां आलोचना की आड़ दुर्भावना नहीं छिपी होनी चाहिए। मुझे लगता है कि जो बात यहां कही गई उसमें शालीनता होती तो कोईओ दिक्कत नहीं थी, लेकिन शालीनता ना होने की वजह से मामला यहां तक पहुंचा। मुझे उम्मीद है कि इस पूरे विवाद में किसी भी तीसरे की जरूरत नहीं है, आशुतोष और योगेंद्र खुद संवेदनशील हैं और ब्लागर्स साथियों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए एक बार फिर दोस्ती का हाथ खुद आगे बढाएंगे।

yogendra pal ने कहा…

@महेंद्र जी: दुश्मनी जैसी कोई बात ही नहीं है, आशुतोष जी की भावनाएं अच्छी हैं और उनके विचार भी सिर्फ हम दोनों का सोचने का तरीका अलग अलग है|

और मुझे तो आशुतोष जी से कोई शिकायत नहीं है सिर्फ इतना ही कहना है कि जज्बाती हो कर ना लिखें पहले सच को जान लें|

बाकी सब ठीक है|

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

@महेंद्र जी: दुश्मनी जैसी कोई बात ही नहीं है...

मेरे कमेंट में कहीं दुश्मनी शब्द का इस्तेमाल ही नहीं है भाई योगेन्द्र जी। और सोचने का तरीका अलग अलग होना ही चाहिए। मैंने तो सिर्फ ये कहा कि आप लोग खुद ही इस पूरे मसले को अच्छी तरह से निपटा लें तो ज्यादा बेहतर है।

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

दुश्मनी शब्द मैंने "दोस्ती का हाथ बढायेंगे" के सन्दर्भ में लिखा था, यदि आपको बुरा लगा तो क्षमा चाहूँगा

rubi sinha ने कहा…

rahiman dhaga prem ka, mat todo chatkay.

Ravi Srivastava ने कहा…

एक अलग दृष्टिकोण और अच्छे सोचा. लेकिन भारत में भ्रष्टाचार के लोगों के लिए कुछ नया नहीं है. वे इसे भर में आ हर रोज. यह अनजाने में किया गया है कई बहुत ही इस लेख में विभिन्न विचार और विशेष रूप से "राज्य समस्या पैदा कर रहा है means.Its द्वारा प्रोत्साहित किया. अन्य लोगों में, समस्या, लोगों को "अद्भुत लाइनें नहीं बताने की बुराई नहीं है.

Ravi Srivastava ने कहा…

यह मुझे आश्चर्य नहीं है. मैंने कई बार बड़ी भारतीय कंपनियों की सफलता के बारे में सोच रहा है. क्या यह सच है कि एक बार वे इन इस अनुच्छेद में वर्णित बाधा दौड़, कि वे प्रतियोगिता के द्वारा अभारग्रस्त विकसित कर सकते हैं अतीत मिलता है?

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